नीरज कुमार सिंह-
मोतिहारी: जिले के पताही थाना परिसर में महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिन पर थाना अध्यक्ष विकास तिवारी, अंचल अधिकारी रोहित कुमार की संयुक्त अध्यक्षता में जन्म उत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जहां थानाध्यक्ष ने 5 किलो का केक काटकर गांधी जी और लाल बहादुर शास्त्री जी के आदर्शों पर चलने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समझने का दिन है ना कि ऐसे ही बीता देने का। इन दोनों महापुरुषों के जयंती हर भारतीय के लिए काफी मायने रखता है, जो हर भारतीय हैं। उनके लिए काफी गौरव की बात है। यह गांधीजी को समझने का दिन है। ऐसा नहीं कि महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी की प्रतिमा पर जाएं और उन्हें माल्यार्पण करें और उनके आदर्शों को वही पर छोड़कर चले आए? क्या आज का दिन हम इसी प्रकार से मनाएं महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर नाना प्रकार का आयोजन करें, लेकिन जो गांधी और शास्त्री जी के आदर्श हैं। उनके आदर्श को स्थल पर ही छोड़ दें ऐसा कर रहे हैं। तो गांधी और शास्त्री के जीवन चरित्र के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं।
गांधी जी ने अपने लिए कुछ नहीं किया वह संपूर्ण जगत संपूर्ण मानवता के लिए उनका जीवन रहा है।मानवता और जाति को उन्होंने भिन्न किया ही नहीं। अपनी बातों को इस प्रकार से नहीं रखा किसी को उन पर अंगुली उठा सके उनका जीवन सादगी भरा और मानव मात्र के लिए रहा है। चंपारण यात्रा के दौरान उन्होंने अंग्रेजों द्वारा तीन कठिया प्रथा अंग्रेजी विरुद्ध अहिंसात्मक आंदोलन के साथ आवाज बुलंद किया था। आज के युवा उनके आदर्शों को भूल रहे हैं। उनके आदर्शों पर चलकर ही सही मायने में उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगा। गांधी और शास्त्री के विचारों पर उन्होंने कहां की मां को नहीं बताया था कि वो रेल मंत्री हैं। कहा था कि “मैं रेलवे में नौकरी करता हूं”। वह एक बार किसी कार्यक्रम में आए थे जब उनकी मां भी वहां पूछते पूछते पहुंची कि मेरा बेटा भी आया है, वह भी रेलवे में है।
लोगों ने पूछा क्या नाम है जब उन्होंने नाम बताया तो सब चौंक गए ” बोले यह झूठ बोल रही है”।
पर वह बोली, “नहीं वह आए हैं”।
लोगों ने उन्हें लाल बहादुर शास्त्री जी के सामने ले जाकर पूछा,” क्या वही है?”
तो मां बोली “हां वह मेरा बेटा है”
लोग मंत्री जी से दिखा कर बोले “क्या वह आपकी मां है”
तब शास्त्री जी ने अपनी मां को बुला कर अपने पास बिठाया और कुछ देर बाद घर भेज दिया।
तो पत्रकारों ने पूछा “आपने उनके सामने भाषण क्यों नहीं दिया”
तो वह बोले-मेरी मां को नहीं पता कि मैं मंत्री हूं। अगर उन्हें पता चल जाए तो वह लोगों की सिफारिश करने लगेगी और मैं मना भी नहीं कर पाऊंगा।….. और उन्हें अहंकार भी हो जाएगा। इस तरह दोनों महापुरुषों के आदर्शों पर चलकर ही सही मायने में सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस दौरान दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार नीरज कुमार , पत्रकार शशी रंजन अभिराम कुमार, अपर थानाध्यक्ष गंगादयाल ओझा, बिरसा उरांव, सेफ और बीएमपी के जवान शामिल थे। मुखिया संघ के अध्यक्ष अनिल सिंह, मुखिया अजय कुमार सिंह, कृष्ण मोहन सिंह, पूर्व मुखिया उपेंद्र पांडेय, समाजसेवी आमोद नारायण कुवर, चुन्नू सिंह, दरोगा गंगा दयाल ओझा, बिरसा उरांव, श्याम नंदन दास, जलेश्वर भगत सुनील सिंह, शिव जालंधर सिंह, राघव सिंह चौहान, अशोक तिवारी, चुमन सिंह, कुमुद रंजन, चंदन साह, दिनेश राम, मोहन कुमार, अरुण तिवारी, पूर्व मुखिया अभय तिवारी, सुधीर सिंह, जितेन्द सिंह, सहित सौकड़ों बुद्धिजीवी एवं समाजसेवी राजनैतिक दलों के लोग उपस्थित थे।