प्रवासियों का दर्द : पंखे में बैठने वाले कुदाल लेकर लिख रहे हैं पर्यावरण संरक्षण की गाथा

प्रवासियों का दर्द : पंखे में बैठने वाले कुदाल लेकर लिख रहे हैं पर्यावरण संरक्षण की गाथा

Reported By BORDER NEWS MIRROR
Updated By BORDER NEWS MIRROR
On
बेगूसराय। लॉकडाउन से उत्पन्न स्थिति के मद्देनजर कई दर्द लिए अपने घर लौटे प्रवासियों ने अब बिहार के विकास की कहानी लिखनी शुरू कर दी है। परदेस में भले ही कोई काम करते हों लेकिन गांव आते ही अधिकांश महिला-पुरुषों ने कुदाल थाम लिया है। सरकार द्वारा इसके लिए बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन के […]
बेगूसराय। लॉकडाउन से उत्पन्न स्थिति के मद्देनजर कई दर्द लिए अपने घर लौटे प्रवासियों ने अब बिहार के विकास की कहानी लिखनी शुरू कर दी है। परदेस में भले ही कोई काम करते हों लेकिन गांव आते ही अधिकांश महिला-पुरुषों ने कुदाल थाम लिया है। सरकार द्वारा इसके लिए बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन के कार्य किए जा रहे हैं। हालांकि इसमें परदेस से लौटे प्रवासियों में से दस प्रतिशत को भी काम मिलने की गुंजाइश नहीं है। हालांकि जिन्हें मिल रहा है वह खुश हैं और तन-मन से समर्पित होकर एक नई गाथा लिखने को बेताब हैं। यह ना केवल सड़क बना रहे हैं, मकान बना रहे हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी बेहतरीन काम कर रहे हैं। करीब-करीब सभी पंचायतों में कार्य शुरू हो चुका है। 
जल, जीवन और हरियाली जैसे महत्वाकांक्षी अभियान को सफल बनाने के लिए जिला प्रशासन ने बाहर से आए श्रमिकों के श्रम शक्ति का उपयोग करना शुरू किया है। स्कूलों में रूफ टॉप हार्वेस्टिंग के कार्य हो रहे हैं, तो गांव में पोखर-नहर का जिर्णोद्धार और नया निर्माण शुरू कर दिया गया है। पांच हजार से अधिक श्रमिकों को अब तक काम मिल चुका है। 15 हजार से अधिक प्रवासियों का स्किल कराया जा चुका है ताकि उन्हें अपने स्किल के अनुसार काम दिया जा सके। करीब तीन हजार जॉब कार्ड बनाए जा चुके हैं। सिर्फ मनरेगा में इस वित्तीय वर्ष के दौरान पांच लाख 37 हजार 271 मानव दिवस का सृजन किया गया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना, मुख्यमंत्री ग्रामीण पेयजल निश्चय योजना, हर घर नल का जल योजना का कार्यारंभ तेजी से किया गया। जहां कार्य शुरू नहीं हुए हैं वहां शुरू करने की प्रक्रिया जारी है। हालांकि शुरू किया गया काम ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर साबित हो रहा है।
काम सिर्फ श्रम शक्ति के बल पर हो इसके लिए सभी जिला स्तरीय पदाधिकारी लगातार योजनाओं का निरीक्षण भी कर रहे हैं। इसके बावजूद कई ऐसे जगह हैं जहां जनप्रतिनिधि, अधिकारी और ठेकेदार की मिलीभगत से मजदूरों से काम कराने के बदले मशीन का उपयोग किया जा रहा है, इससे श्रमिकों में आक्रोश भी है। बलिया के श्रमिक रामभरोस पासवान और प्रतापी यादव ने बताया कि हम लोग पैदल गांव आए थे। क्वारेंटाइन की अवधि पूरी करने के बाद प्रशासन ने जॉब कार्ड दिया और अब काम कर रहे हैं। पहले मांगने पर भी जॉब कार्ड नहीं मिलता था लेकिन अब आते ही जॉब कार्ड मिल गया है तो परदेस नहीं जाएंगे। मनरेगा में साल में 100 दिन भी काम मिल गया तो गांव में ही रहकर काम करेंगे, साल के शेष दिनों में खेतों में मजदूरी करके गुजर बसर होगा लेकिन इन्हें दर्द भी है कि बाहर से आने वाले सभी लोगों को काम नहीं मिल रहा है, जब काम नहीं मिलेगा तो आखिर यह लोग क्या करेंगे।
मनरेगा के काम में लगे विनोद कुमार कहते हैं कि दिल्ली में एक प्रॉपर्टी डीलर के यहां मुंशीगिरी का काम करते थे। दिनभर दुकान पर रहना और ग्राहकों को जमीन दिखाने के साथ-साथ उनके यहां तक सीमेंट, रेत (बालू), बजरी (गिट्टी), सरिया (छड़) भिजवाना तथा कोई नहीं मिले तो खुद पहुंचाना काम था। उसने सोचा भी नहीं था कि फिर से गांव जाकर कुदाल चलाना पड़ेगा। लेकिन हालत ऐसी बन गई की दिल्ली से 17 दिन में पैदल गांव पहुंचा और अब यहां कुदाल थाम लिया है। गम नहीं है कि पंखे में बैठने के बदले धूप में पसीना बहाकर कुदाल चला रहे हैं। सरकार व्यापक पैमाने पर रोजगार की व्यवस्था करे तो कोई भी श्रमिक परदेस नहीं जाएगा। हालांकि अनलॉक शुरू होते ही दिल्ली से मालिक ने फोन किया है लेकिन जब मालिक और दिल्लीवासियों ने संकट की घड़ी में आसरा नहीं दिया तो अब हम भी नहीं जाएंगे।
Tags:

Related Posts

Post Comment

Comments

राशिफल

Live Cricket

Recent News

Epaper

मौसम

NEW DELHI WEATHER