प्रवासियों का हौसला देख जेठ की तपती धूप भी हो गई है पस्त

प्रवासियों का हौसला देख जेठ की तपती धूप भी हो गई है पस्त

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बेगूसराय। कोरोना के संक्रमण चेन को तोड़ने के लिए जारी देशव्यापी लॉकडाउन लोगों को विविध रूप दिखा रहा है। कोई घर आने के लिए रो रहा है, तो कोई रोटी के लिए परदेश में परेशान है। दूसरे प्रदेश में फंसे श्रमिकों, छात्रों समेत अन्य को उनके घर तक पहुंचाने के लिए सरकारें स्पेशल रेलगाड़ी चला […]

बेगूसराय। कोरोना के संक्रमण चेन को तोड़ने के लिए जारी देशव्यापी लॉकडाउन लोगों को विविध रूप दिखा रहा है। कोई घर आने के लिए रो रहा है, तो कोई रोटी के लिए परदेश में परेशान है। दूसरे प्रदेश में फंसे श्रमिकों, छात्रों समेत अन्य को उनके घर तक पहुंचाने के लिए सरकारें स्पेशल रेलगाड़ी चला रही है। लेकिन इन सारी कवायद के बावजूद पैदल अपने घर जाने वाले लोगों का काफिला थम नहीं रहा है। सिर्फ बेगूसराय से प्रत्येक दिन पूर्वोत्तर बिहार समेत देश के अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के कोने-कोने में जाने के लिए सैकड़ों लोग पैदल जा रहे हैं। जेठ की इस तपती धूप में जहां लोगों को अपने घर में भीषण गर्मी का एहसास हो रहा है। वहीं, यह प्रवासी श्रमिक दिन रात लगातार चल रहे हैं। सड़क पर रात में ना तो सांप समेत अन्य जीव-जंतुओं की चिंता है और ना ही दिन में सूर्य के प्रचंड ताप की। समान का भारी बोझ उठाए, पांव पैदल ये प्रवासी लगातार अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जा रहे हैं। इनकी हालत यह है कि खाली पेट चल रहे हैं, रास्ते में कोई खिला दिया तो खा लिए। रास्ते के चाय दुकानदार पैसा देने के बाद भी चाय नहीं देते हैं, ऐसा ही नजारा शुक्रवार को दिखा बेगूसराय में हर-हर महादेव चौक से लेकर ट्रैफिक चौक तक। जालंधर से अररिया जाने के लिए सात मई को पचास से अधिक मजदूरों का चला जत्था शुक्रवार को बेगूसराय पहुंचा। यहां हर-हर महादेव चौक के समीप एक चाय दुकान पर पहुंचे तो भगा दिया गया, ज्ञान भारती, सुभाष चौक एवं पावर हाउस चौक के समीप भी चाय दुकानदार ने रुकने नहीं दिया। इससे यह लोग काफी परेशान हो गए। बस स्टैंड में संचालित आपदा राहत केंद्र के संबंध में भी इन लोगों को किसी पुलिस या पब्लिक ने नहीं बताया तो भूखे पेट ही खगड़िया की ओर बढ़ गए। पैदल जा रहे रामरतन, शोभा, मंगरु, रामविनय आदि ने बताया कि जालंधर में जहां चमड़़ा फैक्ट्री में काम करते थे वहां लॉकडाउन के बाद ना खाने की व्यवस्था और ना ही रहने की व्यवस्था थी। किसी तरह एक महीना से अधिक बिताने के बाद पैदल ही चल पड़े हैं। हम लोग परिश्रम की कमाई खाते हैं, काम करने के दौरान फैक्ट्री के अंदर जाड़े में भी गर्मी का एहसास होता है। हम श्रमिक अपने श्रम के आगे गर्मी को पछाड़ चुके हैं। जज्बा घर जानेे का है तो क्या बिगाड़ लेगी जेेठ की यह तपती धूप। 

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