बेगूसराय में बर्बाद हो गई करोड़ों की लीची

बेगूसराय में बर्बाद हो गई करोड़ों की लीची

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बेगूसराय। कोरोना के कहर से बचने के लिए जारी देशव्यापी से लॉकडाउन से बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। लेकिन सबसे अधिक प्रभाव किसानों पर पड़ा है, कोरोना ने अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी है। किसानों पर दोहरी मार पड़ी है, गेहूं और दलहन बर्बाद होने के बाद अब लीची की फसल पूरी तरह से बर्बाद […]

बेगूसराय। कोरोना के कहर से बचने के लिए जारी देशव्यापी से लॉकडाउन से बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। लेकिन सबसे अधिक प्रभाव किसानों पर पड़ा है, कोरोना ने अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी है। किसानों पर दोहरी मार पड़ी है, गेहूं और दलहन बर्बाद होने के बाद अब लीची की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गईं है। इस दोहरी मार से बेगूसराय के लीची उत्पादक किसानों को करोड़ों का घाटा हुआ है। ना तो फल बड़ा हुआ और ना ही व्यापारी आए, जिसके कारण छोटी-छोटी लीची के फल ही गिर रहे हैं, सड़ रहे हैं। उत्पादक किसान आंखों के सामने बर्बाद हो रहे फल को देख छाती पीटकर रो रहे हैं, लेकिन इस दर्द कोई समझ नहीं रहा है। बिहार में मुजफ्फरपुर के बाद बेगूसराय लीची उत्पादन का सबसे बड़ा हब है। यहां बदलपुरा, मटिहानी, हनुमानगढ़ी और मनिअप्पा के किसान करीब तीन हजार एकड़ में लीची की खेती करते हैं। पेड़ पर मंजर आने के साथ ही दूरदराज के व्यापारी आ जाते थे और सौदा तय कर लिया जाता था। गुणवत्ता के कारण यहां की लीची स्थानीय बाजार के साथ-साथ लखीसराय, मुजफ्फरपुर, पटना, समस्तीपुर, खगड़िया, और बरौनी जंक्शन से एसी ट्रेन में बुक होकर दिल्ली, कोलकाता और मुंबई तक जाता था। जहां से उसका पैकिंग कर देश-विदेश के जूस फैक्ट्री में भेजा जाता था। इस वर्ष भी सीजन आने से पहले किसानों ने अपने लीची बगान में कड़ी मेहनत किया, जुताई के बाद सिंचाई भी की गई। लेकिन मंजर आते ही लॉकडाउन हो गया, जिसके कारण दवा नहीं मिलने से समय पर छिड़काव नहीं हुआ। लॉकडाउन हो गया तो कहीं से भी कोई व्यापारी नहीं आया, इसके बावजूद किसान उस पर लगातार मेहनत करते रहे। इसी बीच मौसम में लगातार हुए बदलाव से लीची का फल बड़ा नहीं हुआ और अब समय आ गया तो छोटा फल पकने लगा। पक रहे करीब-करीब तमाम फलों में कीड़े लग गए हैं। लीची ना तो बाहर जा पा रहा है और ना ही स्थानीय व्यापारी बगान तक पहुंच रहे हैं। फल बर्बाद होता देख लीची उत्पादक किसानों ने खुद से तोड़कर बाहर भेजने की तैयारी कर दी। लेकिन भेजने का कोई साधन नहीं मिल रहा है, इसके बाद भी किसान बगान में रो-रो कर लीची तोड़ने में लगे हुए हैं। बदलपुरा के किसान शुभम शौर्य भी सात एकड़ में लीची की खेती करते हैं। लेकिन एक तो मात्र दस प्रतिशत के बराबर ही फल लगा और जो फल लगा वह बर्बाद हो रहा है। शुभम शौर्य, मुन्ना महतों, गणेश सिंह, विक्रम कुमार, रमेश सिंह आदि लीची उत्पादक किसानों ने बताया कि कोरोना का कहर, मौसम की मार और सरकार की नीति ने हम लोगों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। कर्ज लेकर मेहनत किया था, उम्मीद थी कि फसल अच्छा होगा तो बेटा-बेटी का एडमिशन बड़े शहर के अच्छे कॉलेज में कराएंगे, बेटी का विवाह करेंगे, कुछ पैसा बचाकर अगले सीजन-अगली फसल की तैयारी करेंगे। लेकिन अब ना तो महाजन का कर्ज लौटा सकेंगे और ना ही बेटी की शादी होगी। अगली फसल कैसे करेंगे यह भी भीषण समस्या बन गई है। सरकार हम किसानों की पुकार सुन ले और क्षतिपूर्ति करे, वर्ना यही हाल रहा तो बिहार फेमस लीची का यह हब धीरे-धीरे बर्बाद हो जाएगा। किसानोंं का कहना है कि जब आर्थिक पैकेज की घोषणा हो चुकी है। करोड़ों-अरबों खर्च कर प्रवासियों को लाया जा रहा है तो किसान सरकार को हम किसानों की करुण पुकार भी सुननी चाहिए। अन्यथा हम लोगों के सामने आत्महत्या करने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचेगा। 

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