सागर सूरज
मोतिहारी: अतिक्रमणकारी एवं भू-माफिया जल श्रोतों को भी बकसने का नाम नहीं ले रहे है। अभी मोतीझील की जमीन पर स्थित अतिक्रमण हटाने की कवायद शुरू ही हुई थी कि जिलाधिकारी रमन कुमार के चंद दिनों की छुट्टी पर जाने का लाभ लेते हुये भू-माफियाओं ने शहर के उतरी क्षेत्रों के जीवनदायनी कही जाने वाली एक बड़ी नहर की कई एकड़ जमीन को रातों- रात अतिक्रमित कर उक्त सरकारी नहर के अस्तित्व पर ही प्रश्न-चिन्ह खड़ा कर दिया है।
सनद रहे कि मामला मोतीहारी के कोल्हुवरवा के एक 60 फिट चौड़ी नहर का है, जो राधा नगर होते हुये जानपूल चौक मे जा मिलती है और उसके बाद वही नहर मोतीझील से जा मिलती है। ये नहर कुंवारी देवी इलाके मे आए बाढ़ से उस इलाके के लगभग 3 लाख लोगों को पानी से तो बचाता ही था साथ ही नाले का पानी निकालने का भी एक बड़ा माध्यम था।
बताया गया की पिछले दिनों जिलाधिकारी रमन कुमार के छुट्टी पर जाते ही एक साथ कई ट्रैक्टर और जेसीबी लगाकर मिट्टी भराई कर इस नहर के अस्तित्व को लगभग खत्म कर दिया गया है। 60 फिट की चौड़ाई से यह नहर कई जगह महज 3 से 4 फिट तक बच गयी है। दो- दो हयूम पाइप लगा कर दोनों तरफ के बचे ज़मीनों को भूमाफियायों के द्वारा ऊंचे दामों पर बेंचा भी जा रहा है। नकछेद टोला के पास स्थित एक पुराने पूल से गुजरने वाली पानी को भी अवरुद्ध कर दिया गया है।
बताया गया कि मामले मे स्थानीय दबंग लोग लगे है जिसको कुछ अधिकारियों एवं सफेदपोशों का भी सह प्राप्त है। उक्त नहर को क्रमबद्ध तरीके से अतिक्रमण करने का बिरोध शहरवासी 2014 से ही कर रहे है, परंतु कुछ भ्रष्ट पदाधिकारियों के कारण अतिक्रमण नहीं रुक सका और इस ताबूत मे अंतिम कील तब ठोकी गयी जब जिलाधिकारी मोतीझील अतिक्रमण अभियान के दौरान ही छुट्टी पर चले गए।
जानकारी के अनुसार सबसे पहले योगेंद्र पांडे, राजू पटेल आदि मुहल्लावासियों ने मोतीहारी के भूमि सुधार उप-समाहर्ता को एक पत्र देकर मामले से अधिकारियों को अवगत करवाना शुरू किया। तब भी तत्कालीन अंचलाधिकारी समीर कुमार को अतिक्रमण रोकने का आदेश दिया गया था। मामले मे कोई कार्रवाई ना देख कर चांदमारी मुहल्ला के विजय कुमार सिन्हा ने अतिक्रमण को रोकने एवं हटाने को लेकर पटना उच्च न्यायालय मे एक जनहित याचिका 2014 मे ही दायर किया।
मामले मे दिनांक 25 फरवरी, 2014 को मोतीहारी के जिलाधिकारी को कोर्ट ने आदेश दिया कि वो नहर कि जमीन पर स्थित अवैध कब्जे को हटाये एवं अवैध निर्माण को भी रोके तथा तत्कालीन ज़िलाधिकारी ने तत्कालीन अंचलाधिकारी समीर कुमार को कोर्ट के आदेश का अनुपालन करने का आदेश दिया। फिर भी कोई भी अतिक्रमण नहीं हटाये गए। मजबूरन अधिकारियों पर अवमानना का मामला चला। बाद मे 27 जुलाई, 2015 को समीर कुमार ने एक झूठा शपथपत्र उच्च न्यायालय मे दाखिल कर अतिक्रमण हटा देने की बात कह कर कोर्ट को गुमराह कर दिया, जबकि सच्चाई ये थी की न तो अतिक्रमण रुकी और न ही अतिक्रमण हटाई गयी थी। बची-खुची कसर पिछले दिनो पूरी कर ली गयी। जिलाधिकारी रमन कुमार द्वारा मोतीझील के अतिक्रमणकरियों के ऊपर कार्रवाई करने के दरम्यान नहर के सभी अतिक्रमणकारी दहशतजदा थे, लेकिन जिलाधिकारी के छुट्टी का लाभ उठा कर भू माफियाओं ने मामले का पटाक्षेप ही कर दिया।
पुछे जाने पर जिलाधिकारी रमन कुमार ने कहा कि मामला उनके संज्ञान मे नहीं है। अधिकारियों से जानकारी प्राप्त कर कारवाई की जाएगी। जलश्रोतों को हर हाल मे सफाई की जाएगी। चाहे अतिक्रमणकारी कोई भी क्यों ना हो।