योग से शरीर मन आत्मा सुदृढ़ होते हैं – योगाचार्य

योग से शरीर मन आत्मा सुदृढ़ होते हैं – योगाचार्य

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बांदा। वर्तमान में समाज एक ऐसी महामारी से परेशान है जिसका प्रभाव शरीर और मन दोनों पर पड़ा है। अधिकांशतः लोग सर्प के काटने की अपेक्षा उस के भय से ज्यादा प्रभावित होते हैं। योग से शरीर योग से शरीर, मन, आत्मा सभी सुदृढ होते हैं। पूर्ण योग की अपेक्षा अपूर्ण योग की तरफ लोगों […]
बांदा। वर्तमान में समाज एक ऐसी महामारी से परेशान है जिसका प्रभाव शरीर और मन दोनों पर पड़ा है। अधिकांशतः लोग सर्प के काटने की अपेक्षा उस के भय से ज्यादा प्रभावित होते हैं। योग से शरीर योग से शरीर, मन, आत्मा सभी सुदृढ होते हैं। पूर्ण योग की अपेक्षा अपूर्ण योग की तरफ लोगों का रुझान अधिक है। पूर्ण लाभ के लिए हमें पूर्ण योग की आवश्यकता है। यह बात महर्षि परमहंस योग केंद्र बांदा के योगाचार्य गंगा शरण त्रिपाठी ने बातचीत के दौरान  कहीं। 
योगाचाय गंगा शरण त्रिपाठी को योग के बारे में अच्छी महारत हासिल है वह न सिर्फ स्कूल कॉलेजों में बच्चों को नि:शुल्क योग की शिक्षा देते हैं बल्कि समय-समय पर प्रशिक्षित पुलिसकर्मियों को भी योग का ज्ञान दे चुके हैं। उन्होंने कहा कि योग शब्द संस्कृत की यूज धातु से बना है। सामान्य भाषा में  भाषा में योग का भाव जोड़ से है। व्यवहारिक शब्दों में भी हम योग का प्रयोग करते हैं जैसे-संयोग निरोग,  वियोग, आयोग आदि। परंतु आज समाज को योग की नितांत आवश्यकता है।योग विद्या मनीषियों द्वारा अन्वेषित सर्वोपरि विज्ञान है जो प्रकृति के साथ हमेशा विद्वान रहा है। समाज में आज पाश्चात्य सभ्यता से प्रेरित आहार-विहार दैनिक दिनचर्या का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। समाज में आज भी कुछ लोग ऐसे हैं, विशेषकर युवा वर्ग, जिन्होंने उगते हुए सूर्य दर्शन नहीं किया अर्थात प्रातः जागने की आदत ही नहीं है, ऐसी स्थिति में पूर्ण स्वस्थ रहना कठिन है, क्योंकि स्वास्थ्य का संबंध समय से सोना, जागना और विहार विचार आदि से विशेष है।
योगाचार्य का कहना है कि महर्षि पतंजलि के अष्टांग( योग ,यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि ) है, यहां पर योग दो  भागों में बांटा गया है हठयोग एवं राजयोग। वह बताते हैं कि योगाभ्यास इस उद्देश्य करना चाहिए कि हम बीमार न पड़े, रोगों का मूल कारण पेट से अर्थात पाचन संस्थान से है।समान्य रूप से अधिकांश लोग कब्ज, गैस जैसे रोगों से पीड़ित रहते हैं और कई प्रकार के चूरण, विरचक औषधियों का प्रयोग करते हैं। परिणाम स्वरूप जीवन भर चूर्ण आदि लेने की आदत बन जाती है इसलिए इस प्रयास से बचना चाहिए कि शरीर प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रहें। योग में पूर्ण लाभ के लिए यौगिक सत्कर्म, नीति, कुंजर वस्ति धौती, कपालभाती एवं शंख प्रक्षालन आवश्यकता अनुसार समय-समय पर किसी योग प्रशिक्षित योग शिक्षक के निर्देशन में ही करना चाहिए।योगाभ्यास शारीरिक शक्ति के अनुसार करना चाहिए हठयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए क्योंकि उससे हानि हो सकती है।
उन्होंने योगासन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि योग 5 विधियों से किए जाते हैं 1. पीठ के बल 2. पेट के बल 3. बैठकर 4. खड़े होकर 5. उल्टे होकर। पीठ के बल करने वाले आसनों में उत्तानपादासन उदर पवनमुक्तासन, नौकासन धनुरासन, बैठकर करने वाले आसनों में सुखासन, स्वास्तिकासन श्सिद्धासन, पद्मासन वज्रासन, खड़े होकर करने वाले आसनों में सूर्य नमस्कार, ताड़ासन चंद्रासन आदि उल्टे होकर शीर्षासन आदि का अभ्यास किया जाता है।
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