सागर सूरज
मोतिहारी। छोड़ादानों थाने के कोरैया पंचायत के मुखिया पर आरोप है कि वे स्थानीय अधिकारियों के सहयोग से एक सामानांतर सरकार चला रहे है। चाहे प्रखंड या अंचल कार्यालय का कोई अधिकारी हो या महुअवा ओपी के पुलिस अधिकारी सभी उनकी मर्जी से ही कार्य करते है।
ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को मिलने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ तो उन्हें ही मिल पाता है, जो मुखिया जी को अपना वोट दिए है। बिपक्षी मतदाता तो उनके द्वारा दर्ज करवाये गये दर्जनों मुक़दमे के इस तरह शिकार है, जैसे अब या तो वे अपना वोट उन्हें ही देंगे या अपने गाँव की सभी जमीनों को बेच कर वे कही और बस जायेंगे।
हालांकि मुखिया पुत्र रंजन यादव ने इन सभी आरोपों को बेबुनियाद करार देते हुये इसे ग्रामीण राजनीति का अंग बताया है।
सबसे बुरी हालत तो महुअवा ओपी के एक दरोगा सत्येन्द्र कुमार सिंह की है। पुलिस अधीक्षक नवीन चन्द्र झा को दिए एक आवेदन में राम इकबाल प्रसाद, वीरेंदर प्रसाद, जलधर राय, रमेश कुमार, लंगट राय, धुरेन्द्र राम, मुक्ति राय, रविन्द्र प्रकाश आदि ने आरोप लगाया की कोरैया पंचायत की मुखिया है। सरस्वती देवी लेकिन उनके पुत्र रंजन कुमार ही पंचायत का सारा कार्य सँभालते है। आरोप है की ओपी के दरोगा तो उनके इशारे पे नाचते ही नहीं है बल्कि मखिया के विरोधियों को धमकाते भी है।
जब सत्येन्द्र सिंह से इस बारे में जानकारी लेने का प्रयास किया गया तो उन्होंने पहले तो मुखिया पुत्र की जमकर तारीफ की और कहा कि मुखिया समृद्ध लोग है। वे गलत कार्य क्यों करेंगे।
श्री सिंह के आत्मविश्वास को देखते हुए जब मामले की जानकारी रक्सौल डीएसपी आरक्षी उपाधीक्षक सागर कुमार से ली गयी तो उन्होंने अपना बौल एसपी के पाले मे भेजते हुए कहा कि एसपी साहब के निर्देशों का पालन किया जायेगा।
सनद रहे कि मुखिया पुत्र के पुलिस पर प्रभाव का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पचपोखारिया निवासी उपेन्द्र कुमार के नाम पर एक दुसरे व्यक्ति से हस्ताक्षर करवाकर टूटू लाल कुमार यादव के उपर मोटरसाइकिल चोरी का एक केस कांड संख्या 124/2020 दर्ज करवाया जाता है। जल्द्वाजी इतनी थी की दुसरे के नाम दूसरा आदमी लिखकर मुकदमा थाने में देता है और हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति को बिना सत्यापन के ही पांच मिनट में ही मुक़दमे में धारा लिख कर सत्येन्द्र सिंह केस को छोड़ादानों थाने में भेजते है और खुद ही अनुसन्धानकर्ता भी बन जाते है ताकि मुखिया के इशारे पर एक निर्दोष को प्रताड़ित किया जा सके।
बता दें, चुकी असली उपेन्द्र कुमार भी मुखिया के प्रभाव वाला ही व्यक्ति है। और उससे न्यायालय में दो-दो प्रोटेस्ट दिलवाया जाता है क्योकि वरीय अधिकारी मुखिया के वश में नहीं थे और मुकदमा असत्य होता दिख रहा होता था। उधर दर्ज प्राथमिकी के आवेदन पर अलग हस्ताक्षर और न्यायलय में दिए प्रोटेस्ट पर अलग हस्ताक्षर पुलिस की कलई खोलने लगी थी। बाद में मुकदमा को फल्स कर दिया गया और इसके साथ ही सत्येन्द्र सिंह और मुखिया पुत्र के नाजायज गठजोड़ का पर्दाफाश भी हो गया।
हलाकि इससे टूटू के पिता राम एकबाल यादव की समस्याये और बढ़ ही गयी आरोप है की मुखिया और सचिन्द्र सिंह के संरक्षण में टूटू लाल की एक ऐसी जमीन को कब्ज़ा कर लिया गया जो उनके दादा के नाम पर था और वे लोग उसे गत 70 वर्षो से जोतते आ रहे थे। अपनी जमीन को बचाने राम इकबाल यादव के परिवार वाले गए तो किसी का सर फाड़ा तो किसी का हाँथ तोड़ा, टूटे हाँथ में स्टील जड्वाकर जब पीड़ित घर लौटे तो सभी अभियुक्तों को जमानत मिल चुकी थी क्योकि मुक़दमे में 307 लगा ही नहीं था। सुरेश राय बनाम मुक्ति राय केस नंबर 147/16, राधिका देवी बनाम मुक्ति राय (63/17) मुक़दमे के पीछे भी कमोवेश यही कहानी है। सभी अभियुक्त मुखिया के विरोधी है और झूठे मुक़दमे के शिकार है। दरोगा बदलते रहे प्रताड़ना जारी रहा।
यह इलाका भारत नेपाल सीमा पर स्थित है और यहाँ के जनप्रतिनिधि एवं और पुलिस के नापाक गठजोड़ की खबरे आती रही है। ऐसे में थाने के छोटा बाबु एवं मुखिया पुत्र के इस गठजोड़ के पीछे की कहानी को जानने को लोग आतुर है।