रंजना मिश्रा अमर होने के लिए अब कठोर तपस्या या अमृत पीने की आवश्यकता नहीं बल्कि अपने अंगों का दान करके मृत्यु के पश्चात भी अमर हुआ जा सकता है। डीएनए के रूप में अंगदान करने वाले व्यक्ति का अस्तित्व उसकी मृत्यु के बाद भी बना रहेगा। उस अंग में मौजूद डीएनए एक जनरेशन से […]
रंजना मिश्रा
अमर होने के लिए अब कठोर तपस्या या अमृत पीने की आवश्यकता नहीं बल्कि अपने अंगों का दान करके मृत्यु के पश्चात भी अमर हुआ जा सकता है। डीएनए के रूप में अंगदान करने वाले व्यक्ति का अस्तित्व उसकी मृत्यु के बाद भी बना रहेगा। उस अंग में मौजूद डीएनए एक जनरेशन से दूसरे जनरेशन में चलता रहेगा। अगर उस व्यक्ति के अंग चार पांच लोगों को ट्रांसप्लांट हो गए तो यह अमरता और अधिक प्रबल हो जाएगी और वह उन सभी लोगों में अपने अंगों के रूप में जीवित रहेगा।
व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात यादें और अच्छी बातें ही उसे संसार में जिंदा रखती हैं किंतु अंगदान करके वह कई लोगों को नया जीवन दे सकता है और उनमें अपने अंगों के जरिए जिंदा रह सकता है। इंसानी अंगों को बनाना अभी मुमकिन नहीं हुआ है, इस पर रिसर्च चल रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शरीर से मिलते-जुलते कुछ अंग बनाने में उन्हें सफलता मिल सकती है किंतु इसमें अभी 5 से 10 वर्ष तक का समय लग सकता है इसलिए यदि किसी रोगी का कोई अंग काम करना बंद कर देता है तो ट्रांसप्लांट के जरिए किसी दूसरे व्यक्ति का अंग लगाकर उसे स्वस्थ किया जा सकता है। हालांकि अभी भी लोग अंगदान करने से झिझकते हैं और इसलिए ट्रांसप्लांट के लिए अंगों का मिलना बहुत कठिन हो जाता है।
आंखों को छोड़कर बाकी अंगों का ट्रांसप्लांट तभी संभव है जब अंगदान करने वाले व्यक्ति के दिल की धड़कनें चलती रहें, भले ही उसके ब्रेन ने काम करना बंद कर दिया हो। जब शरीर के बाकी अंग काम कर रहे हों किंतु ब्रेन ने किसी वजह से काम करना बंद कर दिया हो और फिर से उसके काम करने की संभावना भी न हो तो व्यक्ति को ब्रेन डेड माना जाता है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं जैसे सिर में गंभीर चोट लगना, ट्यूमर या लकवे की वजह से।
ब्रेन डेथ और कोमा में फर्क है। कोमा से इंसान फिर से नॉर्मल हो सकता है किंतु ब्रेन डेथ होने के बाद ऐसा नहीं होता। कोमा की स्थिति में इंसान के दिमाग का कुछ हिस्सा काम कर रहा होता है, जबकि ब्रेनडेड में नहीं। इसलिए अंगदान ब्रेन डेड वाले मरीजों का ही हो सकता है कोमा के मरीजों का नहीं।
वैसे तो अंगदान किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही होता है पर ब्रेन डेड को मौत के बराबर ही माना जाता है। जीवित व्यक्ति दो में से अपनी एक किडनी का दान कर सकता है, लीवर का एक छोटा हिस्सा भी दान किया जा सकता है। मरने के बाद सबसे ज्यादा आंखों का दान किया जाता है। अंगदान करने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती, किंतु 18 साल से 65 साल तक की उम्र में अंगदान करना सबसे बेहतर होता है।
अंगदान करने से पहले कई चीजों की मैचिंग कराई जाती है। मसलन किडनी के मामले में एच एल ए, लीवर और हार्ट के मामले में ब्लड ग्रुप की मैचिंग कराई जाती है। हेपेटाइटिस बी और सी, एचआईवी पॉजिटिव, सिफलिस और रैबीज जैसी बीमारियों से ग्रस्त मरीज अंगदान नहीं कर सकते। अंगदान करने वाले ब्रेन डेड व्यक्ति के शरीर के अंगों को जितनी जल्दी हो सके निकालने की कोशिश की जाती है। अंग निकालने के 6 से 12 घंटों के अंदर ही ट्रांसप्लांट हो जाना चाहिए नहीं तो अंग ट्रांसप्लांट करने योग्य नहीं बचता।
लोग मृत्यु के बाद भी अमर रहना चाहते हैं। इसके लिए कुछ लोग अपने नाम पर सड़क, इमारतें और संस्थान बनवाते हैं। सार्वजनिक स्थानों या पार्क में प्रतिमा लगवाते हैं। पुराने जमाने में लोग अपने पूर्वजों के नाम पर धर्मशाला और मंदिर बनवाते थे। लोगों की चाहत होती है कि मृत्यु के बाद भी उनको याद रखा जाए। हालांकि अमर होने का सबसे बढ़िया तरीका अंगदान ही है।दुनिया में याद किए जाने के लिए एक लंबे जीवन की नहीं बल्कि प्रभावशाली जीवन जीने की आवश्यकता होती है।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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