अमेरिका में मनाई गई पूर्व सांसद पं. प्रकाशवीर शास्त्री की पुण्यतिथि

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वाशिंगटन डीसी। “स्वतंत्र भारत की राजनीति में मैंने पंडित प्रकाशवीर शास्त्री जैसा वक्ता एवं विचारक नहीं देखा। आर्यसमाजी नेता पंडित प्रकाशवीर शास्त्री की वक्तृत्व कला एवं उनके व्यक्तित्व से पंडित जवाहरलाल नेहरू, मोरारजी देसाई, इंदिरा गांधी तथा अटल बिहारी वाजपेयी जैसे अनेक शीर्षस्थ नेता अत्यधिक प्रभावित थे। महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्यसमाज के गुरुकुल […]
वाशिंगटन डीसी। “स्वतंत्र भारत की राजनीति में मैंने पंडित प्रकाशवीर शास्त्री जैसा वक्ता एवं विचारक नहीं देखा। आर्यसमाजी नेता पंडित प्रकाशवीर शास्त्री की वक्तृत्व कला एवं उनके व्यक्तित्व से पंडित जवाहरलाल नेहरू, मोरारजी देसाई, इंदिरा गांधी तथा अटल बिहारी वाजपेयी जैसे अनेक शीर्षस्थ नेता अत्यधिक प्रभावित थे। महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्यसमाज के गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर, हरिद्वार से शिक्षित एवं दीक्षित पंडित प्रकाशवीर शास्त्री में देश भक्ति, हिंदी प्रेम तथा कश्मीर समस्या को लेकर क्रान्ति का भाव युवावस्था से ही विद्यमान था। वे बिना किसी लाग लपेट के तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात कहने के लिए प्रसिद्ध थे।” 
यह विचार देश के जानेमाने वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने आर्यसमाज वाशिंगटन डीसी द्वारा पं. प्रकाशवीर शास्त्री की 43वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित एक वेबिनार में व्यक्त किए। डॉ. वैदिक ‘भारत के पूर्व सांसद पंडित प्रकाशवीर शास्त्री का व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय स्तर की वर्चुअल संगोष्ठी में प्रमुख वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि पंडित नेहरू का मानना था कि पंडित प्रकाशवीर शास्त्री अपने वक्तव्य में केवल भारत की समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिलाते, बल्कि उनका तार्किक समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। डॉ. वैदिक ने बताया कि जब मैं जवाहर-लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहा था तथा छात्र संघ का अध्यक्ष भी था, तब एक दिन हमने भाई मोरारजी देसाई को व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने पूछा मैं अंग्रेज़ी में बोलूँ या हिंदी में ? …क्योंकि मैं एक आर्यसमाजी संस्कार वाला युवक था तथा मुझे हिन्दी से अत्यधिक प्रेम था, इसलिए मैंने उनसे कहा कि आप हिंदी में ही बोलिए। मोरारजी भाई ने हिन्दी में ही बोला, जिससे विश्वविद्यालय में अफरातफरी मच गई। मुझे हिन्दी के प्रति लगाव की कीमत चुकानी पड़ी। मेरी छात्रवृत्ति रोक दी गई। जब मैंने इसकी शिकायत महान आर्यसमाजी नेता सांसद प्रकाशवीर शास्त्री से की तो उन्होंने हिंदी के प्रति विश्वविद्यालय में व्याप्त इस ईर्ष्या को ध्यान में रखकर संसद में एक जोरदार भाषण दिया, जिसके कारण बहुत हंगामा हुआ और संसद दो दिन तक ठप रही।
महर्षि दयानंद गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली के अधिष्ठाता एवं आर्य संन्यासी स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए बताया कि जब हम भारत के बाहर देशों में प्रचार के लिए जाते हैं तो वहां के लोग सबसे अधिक प्रकाशवीर शास्त्रीजी के व्याख्यानों को पसंद करते हैं। पंजाब के हिन्दी आंदोलन ने पंडित प्रकाशवीर शास्त्री की ख्याति को पूरे देश में फैला दिया था ।
कार्यक्रम में सारस्वत अतिथि एवं भारतीय राजदूतावास वाशिंगटन डीसी में नियुक्त भारतीय संस्कृति शिक्षक डॉ. मोक्षराज ने कहा, “संसार में विचार की शक्ति से बढ़कर कोई शक्ति नहीं है। जिस व्यक्ति के जीवन में पवित्रता तथा कर्त्तव्यपालन का महान उद्देश्य विद्यमान हो, वह मानवता के लिए सदैव कल्याणकारी ही होता है और यह विचार की सात्विक शक्ति हमें अपनी प्राचीन गुरुकुल परंपरा से प्राप्त होती है। आर्यावर्त में कल्याणकारी विचारों की पाठशाला का चलन आरंभ से ही रहा है । रामायण काल में सर्वमेध यज्ञ के बाद प्रकृति की खुली गोद में बैठे हुए महाराज रघु के पास जब आचार्य वरतंतु का शिष्य कौत्स भिक्षा माँगने आता है तब का दृश्य हो या श्रीरामचंद्र के प्रिय अनुज भरत का राजकीय विलासिता त्याग सरयू के तट पर 14 वर्ष तक तपस्वी की भाँति जीवन जीने का उदहारण हो या फिर आचार्य चाणक्य के द्वारा निजी कार्य के लिए अलग और राजकीय कार्य के लिए पृथक् से दीपकों का प्रयोग करने का दृष्टांत हो! ये सभी उदाहरण हमारे नेतृत्व की अर्थशुचिता और व्यवहार शुचिता को प्रकट करते हैं। इसी प्रकार आर्यसमाज के सिद्धान्तों की भट्ठी में तपे हुए महर्षि दयानंद सरस्वती के अनुयायी स्वामी रामेश्वरानंद, ओमप्रकाश त्यागी, पंडित प्रकाशवीर शास्त्री, पंडित शिवकुमार शास्त्री, चौधरी चरणसिंह आदि कुछ ऐसे राजनैतिक हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने अपनी कर्मठता व राष्ट्रनिष्ठा के पवित्र आदर्श प्रस्तुत किए हैं ।” 
वर्जीनिया में रहने वाले राजेंद्र शर्मा बताते हैं कि प्रकाशवीर शास्त्रीजी कई बार उनके दिल्ली आवास पर पिताजी से हिंदी प्रचार तथा गौरक्षा के बारे में विचार विमर्श करते थे। दिल्ली के शरद त्यागी ने बताया कि पंडित प्रकाशवीर शास्त्री द्वारा लिखी गई “मेरे सपनों का भारत” पुस्तक से मुझे बहुत प्रेरणा मिली। आर्यसमाज से जुड़े रहे अलीगढ़ के रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी बद्रीप्रसाद गुप्ता की पुत्री श्रीमती उमा गुप्ता शर्मा इन दिनों वर्जीनिया में निवास करती हैं। उन्होंने अनेक प्रत्यक्ष घटनाओं का उल्लेख कर पंडित प्रकाशवीर शास्त्रीजी के महान व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। इस वेबिनार में लंदन, न्यूजर्सी, मैरीलैंड, वर्जीनिया, काबुल, काठमांडू, त्रिनिदाद, शिकागो, अटलांटा, कैलीफोर्निया तथा भारत के केरल, हरियाणा, राजस्थान तथा गोवा से भी लोगों मे प्रतिभाग किया।

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