आतंकवाद की दुनिया से लौटने वालों का होगा ‘पुनर्वास’

आतंकवाद की दुनिया से लौटने वालों का होगा ‘पुनर्वास’

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नई दिल्ली।​ भारतीय सेना ने ​​कश्मीर घाटी के आतंकवाद में शामिल होने वाले स्थानीय युवाओं के लिए एक ‘पुनर्वास नीति’ बनाई है, जिसे मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को भेजा गया है। नई नीति उन लोगों के लिए है, जिन्होंने घाटी के भीतर हथियार उठाए और सेना की पहल पर आतंक की दुनिया से वापस लौटे […]
नई दिल्ली। भारतीय सेना ने ​कश्मीर घाटी के आतंकवाद में शामिल होने वाले स्थानीय युवाओं के लिए एक ‘पुनर्वास नीति’ बनाई है, जिसे मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को भेजा गया है। नई नीति उन लोगों के लिए है, जिन्होंने घाटी के भीतर हथियार उठाए और सेना की पहल पर आतंक की दुनिया से वापस लौटे हैं। सेना की इस मसौदा नीति को गृह मंत्रालय की मंजूरी का इंतजार है। अगर इसे सरकार से हरी झंडी मिलती है तो आतंक के जाल में फंसे युवाओं का पुनर्वास किये जाने की योजना है ताकि उनके बहके कदम फिर से हथियार उठाने की राह पर न जा सकें।
सेना की मौजूदा नीति कश्मीर घाटी के उन लोगों को वापस बुलाने के लिए थी, जिन्होंने पाकिस्तान के बरगलाने पर हथियार उठाये थे। सेना ने कश्मीर से आतंकवाद का सफाया करने के लिए अभियान चलाकर आतंकी संगठनों में स्थानीय युवाओं की भर्ती कम करने और हथियार उठा चुके युवाओं को आत्मसमर्पण करने के लिए प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया। आतंकवाद में शामिल होने वाले लोगों को कहा जा रहा था कि वे वापस आ सकते हैं। इसी तरह सेना के हर ऑपरेशन में उन्होंने लोगों को वापस लाने का प्रयास किया गया। इस अभियान का यह असर हुआ कि घाटी के बड़ी संख्या में परिवार सेना के साथ आये और इच्छा जताई कि उनके बच्चे हथियार छोड़कर वापस घर आ जाएं। सेना और भटके युवाओं के परिवार वालों की मदद से बहुत सारे युवा आतंकवाद की दुनिया से वापस आ गए।
 
हथियार छोड़कर आतंकवाद की दुनिया से युवाओं को लौटाने के अभियान में सेना को बड़ी सफलता मिली है। ऐसे लोगों की हिफाजत और निगरानी सेना खुद कर रही है लेकिन इसके लिए एक नीति बनाने की जरूरत समझी गई है। इसलिए अब ऐसे इनका पुनर्वास किये जाने से सम्बंधित एक नीति बनाकर गृह मंत्रालय को भेजी गई है। अगर इस ‘पुनर्वास नीति’ को सरकार से मंजूरी मिलती है तो ऐसे युवाओं के सामने एक व्यवहार्य विकल्प पेश करने में सेना को अधिक ताकत मिलेगी। फिलहाल ऐसे परिवारों को सेना की ओर से संदेश दिया है कि अब अपने बच्चों की मानसिक तौर पर भी निगरानी रखें। आतंकवाद के जाल में फंसे युवाओं को उस दुनिया से लौटाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है उसका ब्रेनवाश करना।
 
सेना की 15वीं कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल बीएस राजू का कहना है कि हम अभी भी आत्मसमर्पण के मुद्दे पर अधिक काम करेंगे और यह एक कार्य प्रगति पर है। सेना अपने कार्यों के माध्यम से उन लोगों तक पहुंच बनाना चाहती है जहां लोगों के पास हथियार उठाने के लिए बहुत कम कारण होने चाहिए। ​उन्होंने कहा कि नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार से घुसपैठ रोकने में सेना काफी हद तक सक्षम है। भारतीय सेना आतंकवादियों की लाशों के साथ फोटो खिंचवाने के लिए नहीं बल्कि उनको मुख्यधारा में वापस लाने की नीति पर काम कर रही है। इसलिए हम पेशेवर तरीके से काम करके किसी के लिए हथियार उठाने का कारण नहीं बनेंगे। 

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