नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के निजी स्कूलों और सरकारी स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे ऑनलाइन क्लास के लिए आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए लैपटॉप, मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराएं। जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसके लिए तीन सदस्यीय कमेटी के गठन का आदेश […]
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के निजी स्कूलों और सरकारी स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे ऑनलाइन क्लास के लिए आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए लैपटॉप, मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराएं। जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसके लिए तीन सदस्यीय कमेटी के गठन का आदेश दिया। ये कमेटी आर्थिक रुप से पिछड़े वर्ग के बच्चों की पहचान कर उन्हें लैपटॉप और मोबाइल उपलब्ध कराने की प्रक्रिया में तेजी लाएगी।
कोर्ट ने कहा कि तीन सदस्यीय कमेटी में केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और स्कूल एसोसिएशन कमेटी का एक सदस्य शामिल होगा। कोर्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों को लैपटॉप और मोबाइल के साथ-साथ इंटनेट पैक निजी और सरकारी स्कूलों की ओर से मुफ्त में उपलब्ध कराया जाए। कोर्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के पास मोबाइल, लैपटॉप न होने के कारण महीनों से उनकी पढ़ाई रुकी हुई है।
कोर्ट ने कहा कि ये कमेटी आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों की पहचान करने के लिए स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसिजर्स बनाएंगे। इससे गरीब छात्रों को लैपटॉप, मोबाइल और इंटरनेट पैक मुहैया कराने में समरुपता आएगी। याचिका जस्टिस फॉर ऑल नामक एनजीओ ने दायर किया था। याचिका में कहा गया था कि स्कूलों की ओर से आयोजित किए जा रहे आनलाइन क्लासेज तक आर्थिक रुप से कमजोर और वंचित वर्गों के छात्र वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये आयोजित किए ज रहे क्लासेज में शामिल होने में सक्षम नहीं हैं। याचिका में शिक्षा के अधिकार कानून की धारा 3(2) का हवाला देते हुए कहा गया था कि सरकार ऐसे छात्रों को शिक्षा देने के लिए बाध्य है।
याचिका में कहा गया था कि सीबीएसई और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एडवाइजरी और सर्कुलर में आनलाइन क्लास की सराहना की गई है। लेकिन ये नहीं समझा गया कि आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के छात्र आनलाइन क्लास के लिए जरुरी उपकरण नहीं खरीद सकते हैं। याचिका में कहा गया था कि शिक्षा के अधिकार कानून की धारा 7(सी) के तहत ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वो आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के छात्रों को इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराएं। उन्हें शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता है।
याचिका में कहा गया था कि शिक्षा के अधिकार कानून के नियमों में भी लैपटॉप और टैबलेट का प्रावधान नहीं किया गया है। उन नियमों को व्याख्या कोरोना के संकट के दौरान आयी असाधारण परिस्थितियों को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला दिया गया था कि सरकारों के साथ साथ निजी स्कूलों का भी दायित्व है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को भी समान शिक्षा हासिल हो।
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