किसानों के लिए वरदान साबित हुआ निसर्ग, तैयार होने लगी धान की नर्सरी
बेगूसराय। चक्रवाती तूफान ‘निसर्ग’ के असर से गुरुवार की शाम से ही रुक-रुक कर हो रही बारिश से किसानों के चेहरे खिल गए हैं। यह बारिश किसानों के लिए वरदान साबित हुआ है। बारिश से गन्ना, सब्जी समेत अन्य फसलों को भी काफी फायदा हुआ है। धान के बिचड़े गिराने वालों के लिए भी यह वरदान साबित हुआ है। बारिश होते ही किसान हल और ट्रैक्टर लेकर खेतों की ओर निकल पड़े हैं। खेतों में धान की विभिन्न किस्मों के बीज बोने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। किसान सलाहकार अनीश कुमार ने बताया कि धान की नर्सरी ऐसी जमीन में तैयार करनी चाहिए जो उपजाऊ, अच्छे जल निकासी वाले तथा जल स्रोत के पास हों। एक हेक्टर क्षेत्रफल में धान की रोपनी के लिए एक हजार वर्ग मीटर क्षेत्रफल में मोरी तैयार करना पर्याप्त होता है।धान की मोरी की बुवाई का सही समय विभिन्न किस्मों पर निर्भर करता है, लेकिन 15 मई से 20 जून तक का समय बुवाई के लिए उपयुक्त पाया गया है। अच्छी तरह जुताई और क्यारियां बनाने के बाद नर्सरी के एक हजार वर्ग मीटर क्षेत्रफल में करीब सात-आठ सौ किलो पुराना गोबर, 8 से 12 किलो यूरिया, 15 से 20 किलो सिंगल सुपर फास्फेट, 5 से 6 किलो पोटाश और ढ़ाई किलो जिंक सल्फेट अच्छी तरह से मिलाना चाहिए। बीज बोने से पहले उसे स्ट्रैप्टोमायसिन सल्फेट के घोल में रात भर डुुबा कर छोड़ दें, इससे बीज में अंकुरण निकल आते हैं और बीज भी अच्छी तरह उपचारित हो जाता है। जिन क्षेत्रों में लौह तत्व की कमी के लक्षण दिखाई दे वहां एक सप्ताह के अंतराल पर 0.5 प्रतिशत फेरस सल्फेट के घोल का छिड़काव करने से लौह तत्वों की समस्या को रोका जा सकता है। नर्सरी में 10 से 12 दिन बाद निराई अवश्य करें, यदि अधिक खरपतवार होने की संभावना हो तो बूटा क्लोर 50 ईसी नामक खरपतवार नाशक दवा की 120 मिलीलीटर मात्रा 60 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के बाद खरपतवार उगने से पहले छिड़क दें। दस दिन के बाद उसमें ट्राइकोडरमा का छिड़काव कर दें। पौधा 21 से 25 दिन का हो जाए तो रोपाई के लिए उपयुक्त होता है। उन्होंने बताया कि धान की दर्जनों किस्में उपलब्ध हैंं, लेकिन अपने क्षेत्र विशेष के लिए उन्नत किस्मों का ही प्रयोग करना चाहिए, जिससे अधिक से अधिक पैदावार ली जा सके। इसमें कुछ प्रमुख अगात किस्म (110 से 115 दिन) में पीएनआर-381, पीएनआर-162, नरेन्द्र धान-86, गोविन्द, साकेत-4, पूसा-2, 21, 33 व 834 और नरेन्द्र धान-97 आदि हैंं। मध्यम अवधि (120 से 125 दिन) में पूसा-169, 205 व 44, सरजू-52, पंत धान-10 एवं 12, आईआर-64 आदि प्रमुख हैंं। लम्बी अवधि (130 से 140 दिन) के लिए पूसा-44, पीआर-106, मालवीय-36, नरेन्द्र-359, महसुरी आदि हैं। संकर किस्म (125 से 135 दिन) में मुख्य रूप से पंत संकर धान-1, केआरएच-2, पीएसडी-3, जीके-5003, पीए-6444, 6201, 6219, डीआरआरएच-3, इंदिरा सोना, सुरूचि, नरेन्द्र संकर धान-2, प्रो एग्रो-6201, पीएचबी-71, एचआरआई-120, आरएच-204 और पीआरएच-10 हैंं जबकि, बासमती धान उत्पादन करने के इच्छुक किसान पूसा बासमती-1, पूसा सुगंध-2, 3, 4, 5, कस्तूरी-385, बासमती-370 एवं बासमती तरावडी आदि प्रमुख किस्म लगा सकते हैं।
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