किसान-सरकार: शुभ संवाद

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक जैसी कि मुझे आशा थी, सरकार और किसानों की बातचीत थोड़ी आगे जरूर बढ़ी है। दोनों पहले से नरम तो पड़े हैं। इस आंशिक सफलता के लिए जितने किसान नेता बधाई के पात्र हैं, उतनी ही सराहना के पात्र हमारे कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और व्यापार-उद्योग मंत्री पीयूष गोयल भी हैं। […]
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
जैसी कि मुझे आशा थी, सरकार और किसानों की बातचीत थोड़ी आगे जरूर बढ़ी है। दोनों पहले से नरम तो पड़े हैं। इस आंशिक सफलता के लिए जितने किसान नेता बधाई के पात्र हैं, उतनी ही सराहना के पात्र हमारे कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और व्यापार-उद्योग मंत्री पीयूष गोयल भी हैं। पांच घंटे की बातचीत के बाद दो मुद्दों पर दोनों पक्षों की सहमति हुई। सरकार ने माना कि उसके वायु-प्रदूषण अध्यादेश और बिजली के प्रस्तावित कानून में वह संशोधन कर लेगी! अब किसानों पर वह कानून नहीं लागू होगा, जिसके तहत पराली जलाने पर उन्हें पांच साल की सजा या एक करोड़ रु. का जुर्माना भी देना पड़ सकता था। इसी प्रकार बिजली के बिल में मिलनेवाली रियायतें भी किसानों को मिलती रहेंगी।
इन दोनों रियायतों से 41 किसान नेता इतने खुश थे कि उन्होंने मंत्रियों को अपना लाया हुआ भोजन करवाया और बाद में उन्होंने मंत्रियों की चाय भी स्वीकार की। याद कीजिए कि पिछली बैठकों में किसानों ने सरकारी आतिथ्य को अस्वीकार कर दिया था। अब कृषि मंत्री का कहना है कि किसानों की 50 प्रतिशत मांगें तो स्वीकार हो गई हैं। यह आशावादी बयान कुछ किसान नेताओं को स्वीकार नहीं है। उनका मानना है कि ये तो छोटे-मोटे मसले थे। असली मामला तो यह है कि तीनों कृषि-कानून वापस हों और न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी रूप दिया जाए। किसानों के इस आग्रह को मंत्रियों ने रद्द नहीं किया है। यह उनकी परिपक्वता का सूचक है। वे संवाद की खिड़कियां खुली रखना चाहते हैं। वे इन सुझावों पर गौर करने के लिए एक संयुक्त कमेटी बनाने को भी तैयार हैं।
अब सरकार और किसान नेताओं के बीच 4 जनवरी को पुनः संवाद होगा। इस संवाद की भूमिका भी अच्छे ढंग से तैयार हो रही है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने किसानों के घावों पर गहरा मरहम लगा दिया है। उन्होंने भारतीय किसानों को विदेशी एजेंट, आतंकवादी या खालिस्तानी कहकर बदनाम करने की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने सिख बहादुरों द्वारा देश की रक्षा के लिए किए जा रहे बलिदानों को भी याद किया। कोरोना के संकट-काल में कृषि-उत्पादन की श्रेष्ठता का भी बखान उन्होंने किया। लेकिन यह दुखद ही है कि कुछ विघ्नसंतोषी किसानों ने लगभग 1600 मोबाइल टाॅवर तोड़ दिए हैं। ऐसा करके वे अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। भारतीय किसानों के अपूर्व और अहिंसक सत्याग्रह को वे कलंकित कर रहे हैं।
(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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