खुद के नियुक्ति में तथ्य छुपाने का आरोप झेल रहे कुलपति, फिर सवालों के घेरे में
सागर सूरज
मोतिहारी। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति संजीव शर्मा के खुद के नियुक्ति में हुए कथित गड़बड़झाला को लेकर सरकार द्वारा किये जा रहे जाँच का नतीजा अभी आना बाकि ही है कि शर्मा के द्वारा किये गये नियुक्तियो पर भी सवाल उत्पन्न होने लगी है।
आरोप है कि विश्वविद्यालय की लगभग 70 नियुक्तियां शर्मा के द्वारा निर्धारित नियमों को अनदेखा कर कर दी गयी है। इन नियुक्तियों में भी शैक्षणिक योग्यताओं को नजरंदाज़ कर अयोग्य लोगों की बहाली किये जाने का आरोप लग रहा है।
आरटीआई कार्यकर्ता भूषण कुमार ने प्राप्त सुचनाओ के आधार पर दावा किया है कि शर्मा ने विश्वविद्यालय के शैक्षणिक पदों पर अवैध तरीके से लोगों की बहाली कर दी है। देश के राष्ट्रपति एवं मानव संसाधन को लिखे एक पत्र में भूषण ने आरोप लगाया है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 2001 और 2015 में इस संबंध में जारी अधिसूचना में कहा गया है कि शिक्षकों और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की नियुक्ति एवं पदोन्नति में विश्वविद्यालय के कुलपति अपने विशेष शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं, साथ ही इन निर्णयों में विश्वविद्यालय कोर्ट, अकादमिक परिषद और कार्यकारी परिषद आदि को भी दरकिनार नहीं करने को कहा गया है। विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अरविन्द अग्रवाल के द्वारा नियुक्त किये गए एक एसोसिएट प्रोफेसर जिनके ऊपर युजीसी से लेकर राष्ट्रीय सतर्कत्ता आयोग में दर्ज शिकायतों के आधार पर उनके ऊपर समुचित करवाई के आदेश को दरकिनार कर अवैध तरीके से उन्हें पदोन्नति दी गई ताकि वे वर्तमान कुलपति के कथित भ्रष्टाचार का हिस्सा बन सकें। इस प्रकार इनके द्वारा की गई शिक्षकों और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की अवैध नियुक्तियां एवं प्रमोशन आदि को आनन-फानन में 3 दिसंबर, 2019 को एक अवैध और गैर क़ानूनी कार्यकारी परिषद की बैठक आयोजित करके मंजूरी दी। केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 के नियम 11 में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है की एक वैध कार्यकारी परिषद की बैठक में कम से कम दो बाहरी सदस्यों की बैठक में उपस्थिति अनिवार्य होती है, जबकि कुलपति को अपनी कथित फर्जीवाड़े को ढकने के लिए इतनी जल्दीबाजी थी कि राष्ट्रपति द्वारा बाहरी सदस्यों के नाम अनुमोदित करने के पहले ही और विश्वविद्यालय के कोर्ट सदस्यों में से दो सदस्यों को अधिशासी परिषद के सदस्यों में शामिल किये बिना हीं महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के अधिशासी परिषद की बैठक कर दी गयी। महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्विद्यालय ने दिनांक 17 अक्टूबर, 2019 को एक ऑफिस आर्डर निकाला और विश्वविद्यालय के असिस्टेंट/एसोसिएट/प्रोफेसर के वरीयता क्रम को बनाने के लिए डीओपीटी के नियम लागू करने की बात रखी और इसपर आपत्ति जताने की अंतिम तिथि 18 नवम्बर 2019 रखी, जबकि विश्वविद्यालय द्वारा प्रकशित आर्डिनेंस में वरीयता क्रम को युजीसी के नियमानुसार बनाने का उल्लेख किया गया है। कई शिक्षकों के आपत्ति जताने के बाद भी बिना अंतिम तिथि बीतने का इंतजार किये हीं दिनांक 18 नवम्बर 2019 को कार्यकारी परिषद और अकादमिक परिषद की सूची अनियमित वरीयता क्रम के आधार पर निकाल दी गई जो की युजीसी और विश्विद्यालय के ऑर्डिनेस के विरुद्ध है, और इस तरह एक अवैध अधिशासी परिषद का जन्म हो गया। आरोप है कि इसी प्रकार से कुलपति भारत सरकार के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए अवैध नियुक्तियों को अंजाम देते रहे एवं अपने कथित अधिशासी परिषद् में बैठे अपने कठपुतलियों के माध्यम से उसको बैध बताते रहे। हास्यास्पद तो ये है की कई अधिशासी परिषद् के सदस्य भी अपनी ही नियुक्ति पर खुद ही मोहर लगाते रहे।
मानव संसाधन विभाग के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि ऐसे आरोपों से सम्बंधित पत्र प्राप्त हो गया है। इधर विश्वविद्यालय के अधिकारीयों ने आरोपों के बारे में पूछे जाने पर साफ़ कहा की कुलपति इस मामले में कोई सफाई नहीं देना चाहते है।
Comments