क्या भारत का लोकतंत्र फर्जी है?

क्या भारत का लोकतंत्र फर्जी है?

Reported By BORDER NEWS MIRROR
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक भारत के किसानों ने विपक्षी दलों पर जबर्दस्त मेहरबानी कर दी है। छह साल हो गए और वे हवा में मुक्के चलाते रहे। अब किसानों की कृपा से उनके हाथ में एक बोथरा चाकू आ गया है, उसे वे जितना मोदी सरकार के खिलाफ चलाते हैं, वह उतना ही उनके खिलाफ चलता […]
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत के किसानों ने विपक्षी दलों पर जबर्दस्त मेहरबानी कर दी है। छह साल हो गए और वे हवा में मुक्के चलाते रहे। अब किसानों की कृपा से उनके हाथ में एक बोथरा चाकू आ गया है, उसे वे जितना मोदी सरकार के खिलाफ चलाते हैं, वह उतना ही उनके खिलाफ चलता जाता है।
अब विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी किसानों की बजाय भारत के राष्ट्रपति के पास पहुंच गए। कहते हैं कि किसान-आंदोलन के पक्ष में उन्होंने दो करोड़ हस्ताक्षरवाला ज्ञापन राष्ट्रपति को दिया है। दो करोड़ तो बहुत कम हैं। उसे 100 करोड़ भी कहा जा सकता था। यदि दो करोड़ लोगों ने उस पर सचमुच दस्तखत किए हैं तो राहुलजी उनमें से कम से कम दो लाख लोगों को तो दिल्ली ले आते। उनकी बहन प्रियंका को पुलिस ने पकड़ लिया। उसपर उनकी आपत्ति ठीक हो सकती है लेकिन इसीलिए आप यह कह दें कि भारत का लोकतंत्र फर्जी है, बनावटी है, काल्पनिक है, बिल्कुल बेजा बात है। भारत का लोकतंत्र, अपनी सब कमियों के बावजूद, आज भी दुनिया का सबसे बड़ा और बहुत हद तक अच्छा लोकतंत्र है।
राहुल का यह कहना हास्यास्पद है कि मोदी का जो विरोध करे, उसे आतंकवादी घोषित कर दिया जाता है। भारत में आज किसकी आजादी में क्या कमी है? जो भी जो चाहता है, वह बोलता और लिखता है। उसे रोकनेवाला कौन है? जो अखबार, पत्रकार और टीवी चैनल खुशामदी हैं, डरपोक हैं, कायर हैं, लालची हैं- वे अपना ईमान बेच रहे हैं। वे खुद दब रहे हैं। उन्हें दबाया गया था, आपातकाल में, राहुल की दादी के द्वारा। पांच-सात साल के राहुल को क्या पता चला होगा कि काल्पनिक लोकतंत्र कैसा होता है?
जहां तक पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र का सवाल है, युवराज की हिम्मत नहीं कि इस सवाल को वह कभी छू भी लें। नरसिंहराव-काल को छोड़ दें तो पिछले 50 साल में कांग्रेस तो एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनकर रह गई है। उसमें अब भी बड़े योग्य और प्रतिभाशाली नेता हैं लेकिन उनकी हैसियत क्या है? पार्टियों के आतंरिक लोकतंत्र का खात्मा ही बाह्य लोकतंत्र के खात्मे का कारण बनता है।
(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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