जलसंरक्षण की अनूठी खोज-कपड़े के गमले में पौधे देते हैं ज्यादा ऑक्सीजन

जलसंरक्षण की अनूठी खोज-कपड़े के गमले में पौधे देते हैं ज्यादा ऑक्सीजन

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गाजियाबाद। कल्पना कीजिए कि आपके घर के ड्राइंग रूम, दफ्तर, फैक्टरी, बालकानी और छत पर गमलों में पौधे हरे-भरे रहे और आपको इसके लिए न तो ज्यादा पानी खर्च करना पड़े और और न ही अपनी खून पसीने की कमाई। साथ ही पौधे रखे जाने की जगह पर गंदगी भी न हो और ऑक्सीजन भी ज्यादा […]
गाजियाबाद। कल्पना कीजिए कि आपके घर के ड्राइंग रूम, दफ्तर, फैक्टरी, बालकानी और छत पर गमलों में पौधे हरे-भरे रहे और आपको इसके लिए न तो ज्यादा पानी खर्च करना पड़े और और न ही अपनी खून पसीने की कमाई। साथ ही पौधे रखे जाने की जगह पर गंदगी भी न हो और ऑक्सीजन भी ज्यादा मिले। यदि आपकी यह सभी कल्पना एक साथ पूरी हो जाए तो आप फूले नहीं समाएंगे। जी हां, इस कल्पना को साकार किया है मथुरा के निवासी राष्ट्रपति के वैद्य आचार्य राहुल चतुर्वेदी ने। 
राहुल चतुर्वेदी अपनी आंखों से तो दुनिया के रंग देख नहीं सकते लेकिन उन्होंने अपनी कल्पना को साकार किया है अपोहन ऑक्सी बैग प्रोजेक्ट के जरिए। उन्होंने एक विशेष प्रकार के बैग से गमले तैयार किए हैं जो हर परिकल्पना को पूरा करते हैं। वह भी सामान्य गमलों की कीमत में और उसकी लाइफ भी सामान्य गमलों से कहीं ज्यादा है। राहुल चतुर्वेदी पांच साल की लिखित गारंटी पर विशेष कपडे़ से बने गमले देते हैं। 
विशेष प्रकार के कपड़े से यह गमले ग्राहक की पसंद से हरे-पीले, लाल, नीले, काले या अन्य कलर में तैयार किए जाते हैं। यानि आप अपने आशियाने, गार्डन या ड्राइंग रूम या अन्य स्थान जहां पर आप गमला सजाना चाहते हैं तो उसी से कलर मैचिंग के गमले तैयार करवा सकते हैं। 
राहुल चतुर्वेदी बताते हैं कि सामान्य तौर पर मिट्टी, सीमेंट या प्लास्टिक से तैयार किए गए गमलों में भरपूर मात्रा में पानी खर्च होता है और गमला टूटने की स्थिति में गंदगी भी हो जाती है। मिट्टी रिसती रहती है लेकिन कपडे़ से बने इन गमलों में सामान्य गमलों की अपेक्षा मात्र दस प्रतिशत पानी खर्च होता है यानि आप 90 प्रतिशत पानी बचाकर जलसंरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं। इन गमलों में लगे पौधे ज्यादा गहरे हरे होते हैं और ऑक्सीजन भी ज्यादा देते हैं। इन गमलों में फल-फूल, जड़ी बूटी सभी तरह के प्लांट रखे जा सकते हैं। सामान्य गमलों को बन्दर आदि तोड़ देते हैं लेकिन इन गमलों को कोई खतरा नहीं होता। 
राहुल चतुर्वेदी बताते हैं कि उन्होंने अपने इस उत्पाद को पेटेंट करा लिया है। यह उत्पाद आईएसओ सर्टिफाइड है। जल्दी ही देश की नर्सरियों में भी इनकी आपूर्ति शुरू कर दी जाएगी। ये गमले अलग-अलग रंगों व साइज में तैयार किए गए हैं। साथ ही जिस साइज की डिमांड आएगी, उसी साइज के गमले तैयार कर दिए जाएंगे। वह अपने आश्रम में ही इन गमलों को तैयार करा रहे हैं। 
आचार्य राहुल चतुर्वेदी बताते हैं कि इन गमलों से होने वाली आय ग्रामीण अंचलों के असहाय व निर्धन छात्रों की सहायता पर खर्च की जाएगी। उन्होंने अपने आश्रम में ग्रामीण अंचलों के निर्धन व असहाय विद्यार्थियों के लिए छात्रावास बना रखा है। ये विद्यार्थी शहर के विभिन्न विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। 
श्री चतुर्वेदी बताते हैं कि उन्हें एक बड़ी शख्सियत ने कुछ नया करने की बात कही थी जिसको उन्होंने गंभीरता से लिया और कई दिनों तक सोच विचार के बाद एक विजन को साकार करने की ठानी। इसके बाद वह नर्सरी पर गमले देखने गए तो एक नर्सरी मालिक ने उन्हें झिड़कते हुए गमले को देखने नहीं दिया। चूंकि वह देख नहीं सकते, इसलिए नर्सरी के मालिक की बात से उनके दिल पर चोट लगी और फिर उन्होंने सोचते-सोचते विशेष प्रकार के कपडे़ से गमले तैयार करने की बात ठानी। इसके बाद गमले को लेकर पूरा प्रोजेक्ट तैयार कर दिया। उन्हें इस बात की खुशी है कि आज जिस नर्सरी के मालिक ने उन्हें झिड़का था, वही उनके बने गमलों को अपनी नर्सरी से बेचना चाहता है। 
36 वर्षीय आचार्य राहल चतुर्वेदी आयुर्वेद में पीएचडी हैं। देश व विदेश की 24 भाषाओं के ज्ञाता हैं। वह मथुरा के चतुर्वेदी खानदान से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता जी सरकारी नौकरी में थे, इसलिए राजस्थान के सूरत में उनका जन्म हुआ और उनके पिता उत्तर प्रदेश के बहराइच में बस गए। श्री चतुर्वेदी राष्ट्रपति के वैद्य हैं और उन्हें केंद्र व प्रदेश सरकार से उन्हें अनेक प्रशस्ति पत्र मिल चुके हैं। 

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