नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गुरुवार को श्रीराम मंदिर निर्माण समिति की बैठक आयोजित की गयी। तीन मूर्ति भवन में आयोजित यह बैठक करीब तीन घंटे तक चली। इसमें मंदिर निर्माण के तमाम पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गयी। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार बैठक की अध्यक्षता श्रीराम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा ने […]
नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गुरुवार को श्रीराम मंदिर निर्माण समिति की बैठक आयोजित की गयी। तीन मूर्ति भवन में आयोजित यह बैठक करीब तीन घंटे तक चली। इसमें मंदिर निर्माण के तमाम पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गयी।
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार बैठक की अध्यक्षता श्रीराम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा ने की। बैठक में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव एवं विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चम्पत राय समेत निर्माण कार्य से जुड़े कई प्रमुख लोग मौजूद थे। इसमें निर्माण के तमाम बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा की गयी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव रह चुके 75 वर्षीय नृपेंद्र मिश्रा ट्रस्ट में नामित सदस्य के तौर पर शामिल हैं और मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष हैं।
चम्पत राय ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि मंदिर निर्माण में जमीन से लेकर शिखर तक एक ग्राम भी लोहे का उपयोग नहीं किया जाएगा। मन्दिर निर्माण में लगने वाली शिलाओं को जोड़ने के लिए तांबे की पत्तियों और तांबे के रॉड का उपयोग किया जाएगा। उन्होंने दानदाताओं से इसके लिए आगे आने की अपील की। उन्होंने बताया कि तांबे की पत्तियों पर दानकर्ता अपने परिवार, क्षेत्र अथवा मंदिरों का नाम गुदवा सकते हैं। इस प्रकार से यह तांबे की पत्तियां ना केवल देश की एकात्मता का अभूतपूर्व उदाहरण बनेंगी, अपितु मंदिर निर्माण में संपूर्ण राष्ट्र के योगदान का प्रमाण भी देंगी।
एक अनुमान के मुताबिक मंदिर निर्माण में करीब 10 हजार पत्तियां लगेंगी और 10 हजार के करीब ही तांबे के रॉड भी लगेंगे। इस पत्तियों की साइज 18 इंच लम्बी, 03 मिमी. मोटी और 30 मिमी चौड़ी होगी, जबकि रॉड की साइज करीब दो इंच होगी। इनका उपयोग शिलाओं को एक दूसरे से जोड़ने के लिए किया जाएगा।
विहिप उपाध्यक्ष चम्पत राय के मुताबिक पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भूमि पूजन के साथ ही मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो गया है। सीबीआरआई रूड़की और आईआईटी मद्रास के साथ मिलकर निर्माणकर्ता कम्पनी एल एंड टी के अभियंता भूमि की मृदा के परीक्षण के कार्य में लगे हुए हैं। मन्दिर निर्माण के कार्य में लगभग 36-40 महीने का समय लगने का अनुमान है। मंदिर का निर्माण भारत की प्राचीन निर्माण पद्धति से किया जा रहा है ताकि वह सहस्रों वर्षों तक न केवल खड़ा रहे, अपितु भूकम्प, झंझावात अथवा अन्य किसी प्रकार की आपदा में भी उसे किसी प्रकार की क्षति न हो।
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