नई दिल्ली/रांची। केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा की उपस्थिति में शुक्रवार को नई दिल्ली के आईआईपीए परिसर में राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान (एनआईटीआर) की स्थापना के लिए मंत्रालय और भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। प्रस्तावित राष्ट्रीय संस्थान कुछ महीनों में कार्यशील हो जाएगा और देश भर में फैले […]
नई दिल्ली/रांची। केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा की उपस्थिति में शुक्रवार को नई दिल्ली के आईआईपीए परिसर में राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान (एनआईटीआर) की स्थापना के लिए मंत्रालय और भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। प्रस्तावित राष्ट्रीय संस्थान कुछ महीनों में कार्यशील हो जाएगा और देश भर में फैले प्रतिष्ठित सरकारी और गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठनों के सहयोग से गुणवत्तापूर्ण जनजातीय अनुसंधान में लगाया जाएगा।
जनजातीय मामलों के सेंटर ऑफ एक्सेलेन्स (सीओई) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान सम्मेलन के समापन सत्र में जनजातीय मामलों के मंत्रालय के सचिव दीपक खांडेकर और आईआईपीए के महानिदेशक एसएन त्रिपाठी ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। वेबिनार के माध्यम से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने व्यावहारिक मॉडल तैयार किए हैं जो नीतिगत पहलों द्वारा लागू किए जाने वाले कार्य अनुसंधान के हिस्से के रूप में अंतिम समाधान प्रदान करते हैं। देश की राजधानी में राष्ट्रीय जनजाति अनुसंधान संस्थान खुलेगा।
उन्होंने कहा कि जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है और उनके शोध में भविष्य के विकास के लिए रोड मैप तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मंत्रालय जनजातीय जीवन और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान के लिए जनजातीय अनुसंधान संस्थानों को वित्तपोषित कर रहा है लेकिन अब उनके शोध में नीति के साथ अनुसंधान पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि नए राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान में जनजातीय विकास और जनजातीय कला के बारे में छात्रों को शिक्षित करने के लिए एक शैक्षणिक विंग भी होना चाहिए।
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