नक्सली जमीन पर कभी गरजती थी बंदूके खिलने लगा कृषी का फूल, डॉ श्रुति कुमारी

नक्सली जमीन पर कभी गरजती थी बंदूके खिलने लगा कृषी का फूल, डॉ श्रुति कुमारी

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15 पंचायतों के लिए कृषि समन्वयक के रूप में एकमात्र महिला कार्यरत। सरकार की कृषी नीति निर्धारण को सफल बनाने में कार्यालय बंद रहने के बावजूद करती रहती हैं कार्ज। यूपी के इलाहाबाद से कृषी विज्ञान मे गोल्ड मेडलिस्ट नीरज कुमार सिंह: मोतिहारी जिले के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित पताही प्रखंड में कृषि समन्वयक के पद […]
  • 15 पंचायतों के लिए कृषि समन्वयक के रूप में एकमात्र महिला कार्यरत।
  • सरकार की कृषी नीति निर्धारण को सफल बनाने में कार्यालय बंद रहने के बावजूद करती रहती हैं कार्ज।
  • यूपी के इलाहाबाद से कृषी विज्ञान मे गोल्ड मेडलिस्ट

नीरज कुमार सिंह:

मोतिहारी जिले के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित पताही प्रखंड में कृषि समन्वयक के पद पर कार्यरत महिला श्रुति कुमारी ने, बिहार सरकार की कृषि नीति को सफल बनाने में रात दिन लगी है, इतना ही नहीं इनके द्वारा छुट्टी के दिनों में भी कार्य किए जाते हैं, एक महिला रहते हुए भी किसी पुरुष से कम नहीं है। अब तक उन्होंने बेलहीराम, अलीशेरपुर, मिर्जापुर,पदुमकेर, गांव में सब्जी और फूलों की खेती को लेकर महिलाओं का समूह बनाकर कृषि के क्षेत्र में महिलाओं को सबल बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनका कहना है कि भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए कृषि प्रधान देश में महिलाओं को कृषि के क्षेत्र में अग्रणी बनाने की जरूरत है, जिसके लिए कई विघ्न बाधाएं इस क्षेत्र में आ रही है। पर उसको झेलते हुए हमें पताही प्रखंड की आधी आबादी को कृषि के क्षेत्र में उतारने का संकल्प लिया है।

 विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कृषि में महिलाओं को बराबर का दर्जा मिले तो कृषि कार्यों में महिलाओं की बढ़ती संख्या से उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो सकती है, भूख और कुपोषण को भी रोका जा सकता है। इसके अलावा ग्रामीण आजीविका में सुधार होगा, इसका लाभ पुरुष और महिलाओं, दोनों को होगा। महिलाओं को अच्छा अवसर तथा सुविधा मिले तो वे देश की कृषि को द्वितीय हरित क्रान्ति की तरफ ले जाने के साथ देश के विकास का परिदृश्य भी बदल सकती हैं। आज देश की कुल आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है, इसके बावजूद वे अपने मूलभूत अधिकारों से भी वंचित हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकारों के अतिरिक्त देखा जाये तो जिन क्षेत्रों में वे पुरुषों के मुकाबले बराबरी पर भी हैं, वहाँ उनकी गिनती पुरुषों की अपेक्षा कमतर ही आँकी जा रही है। इसी में से एक क्षेत्र है कृषि। इसमें भी महिलाओं को अधिकतर मजदूर का दर्जा ही प्राप्त है, कृषक का नहीं।

बाजार की परिभाषा में अनुकूल कृषक होने की पहचान इस बात से तय होती है, कि जमीन का मालिकाना हक किसके पास है, इस बात से नहीं कि उसमें श्रम किसका और कितना लग रहा है, और इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि भारत में महिलाओं को भूमि का मालिकाना हक ना के बराबर है। इन सबके अतिरिक्त अगर महिला कृषकों के प्रोत्साहन की बात की जाये तो देश में केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने हेतु अनेक प्रकार की योजनाएँ, नीतियाँ व कार्यक्रम हैं, परन्तु उन सबकी पहुँच महिलाओं तक या तो कम है, या बिल्कुल नहीं है। यही कारण है कि देश की आधी आबादी देश के सबसे बड़े कृषि क्षेत्र में हाशिए पर है। मूल रूप से पटना जिले की रहने वाली श्रुति कुमारी ने अपना प्रथम योगदान वर्ष 2018 में पताही कृषि समन्वयक के पद पर किया, जो यूपी के इलाहाबाद सिल्वर सिटी से कृषी में गोल्ड मेडलिस्ट ले चुकी है इतना ही नहीं, एचडी डिग्री इलाहाबाद और असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में फगवाड़ा जालंधर एग्रीकल्चर कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में 1 वर्ष अपना सेवा दे चुकी है।

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