बिहार के मतदाताओं को चिदंबरम की नसीहत, वादों-घोषणाओं से बचते हुए जरूरतों का रखें ध्यान

बिहार के मतदाताओं को चिदंबरम की नसीहत, वादों-घोषणाओं से बचते हुए जरूरतों का रखें ध्यान

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नई दिल्ली। बिहार में चल रहे विधानसभा चुनाव को लेकर मतदाताओं को अपनी ओर करने के लिए प्रचार कार्य जोर-शोर से जारी है। भाजपा और कांग्रेस दोनों तरफ से जनता को लुभाने का काम चल रहा है। ऐसे में वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने बिहार की जनता को भाजपा के लोकलुभावन वादों और घोषणाओं […]

नई दिल्ली। बिहार में चल रहे विधानसभा चुनाव को लेकर मतदाताओं को अपनी ओर करने के लिए प्रचार कार्य जोर-शोर से जारी है। भाजपा और कांग्रेस दोनों तरफ से जनता को लुभाने का काम चल रहा है। ऐसे में वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने बिहार की जनता को भाजपा के लोकलुभावन वादों और घोषणाओं से बचते हुए अपनी जरूरतों और मांगों पर ध्यान देने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि भाजपा नेता आस्था, विश्वास और भरोसे के नाम पर सिर्फ आपको बरगलाएंगे लेकिन बेरोजगारी, नौकरी, उद्योग, फसल सुरक्षा, किसान-मजदूर आदि मुद्दों पर कोई काम नहीं करेंगे।

पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने सोमवार को बिहार चुनाव में एनडीए के लिए वोट मांगने में लगे केंद्रीय मंत्रियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घोषणाओं को लेकर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि बीते दिन पीएम मोदी ने अपने चुनावी रैलियों में कहा कि “आज बिहार में डबल इंजन की सरकार है, जबकि दूसरी तरफ डबल-डबल युवराज हैं”।  हकीकत यह है कि इस डबल इंजन वाली सरकार ने राज्य के किसानों और मजदूरों के साथ धोखा किया है। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही चुनाव प्रचार में नीतीश कुमार सरकार की बड़ाई केंद्रीय नेताओं की ओर से की जा रही हो लेकिन राज्य में एक और नारा है जो काफी गूंज रहा है। वह है- ‘खाली हाथ, खाली जेब और खाली पेट’।

वहीं चिदंबरम ने बगहा में प्रधानमंत्री द्वारा बिहार के महत्वपूर्ण देवी-देवताओं को याद करने को भी चुनावी स्टंट बताया। उन्होंने कहा कि छठ (सूर्य देव) पर्व और गंगा मइया को याद कर भाजपा लोगों की आस्था के सहारे अपनी ओर करने में लगी है। जबकि लोग भूख, बेरोजगारी और अन्य जरूरतों को लेकर परेशान हैं। उन्होंने बिहार के मतदाताओं को अपनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए फैसला लेने के लिए सतर्क करते हुए कहा कि सरकार तब कहां थी जब आप बेरोजगारी से जूझ रहे थे। नौकरी, नए उद्योग, खाद्यान्न के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, फसल बीमा, बाढ़ राहत, महिला सुरक्षा के मसले पर बिहार के लोग परेशान थे, तब सरकार ने मदद का हाथ क्यों नहीं बढ़ाया। लोगों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने से पहले अपनी वर्तमान स्थिति और वादों-घोषणाओं की हकीकत को जांच लेना चाहिए।

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