भारत-चीन की बेनतीजा वार्ता पर ‘मंथन’ शुरू

भारत-चीन की बेनतीजा वार्ता पर ‘मंथन’ शुरू

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नई दिल्ली। भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच पांचवें दौर की रविवार को हुई बेनतीजा बैठक के बाद अब शीर्ष सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर ‘मंथन शुरू कर दिया गया है कि बार-बार चीन के साथ हो रही बैठकों के बावजूद पूरी लद्दाख की सीमा के विवाद का हल कैसे निकाला जाए। पिछली […]
नई दिल्ली। भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच पांचवें दौर की रविवार को हुई बेनतीजा बैठक के बाद अब शीर्ष सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर ‘मंथन शुरू कर दिया गया है कि बार-बार चीन के साथ हो रही बैठकों के बावजूद पूरी लद्दाख की सीमा के विवाद का हल कैसे निकाला जाए। पिछली बैठकों में अगर चीन के साथ जिन मुद्दों पर सहमति बनी भी है तो उस  पर चीन अमल नहीं कर रहा है। इसलिए बैठक से पूर्व उसी दिन दिए गए विदेश मंत्री एस. जयशंकर के उस बयान को महत्वपूर्ण माना जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन के साथ संतुलन तक पहुंचना आसान नहीं है। भारत को उसका विरोध करना ही पड़ेगा। यही नहीं मुकाबले के लिए भी खड़ा होना होगा।
सैन्य कमांडरों के बीच हुई वार्ता के बारे में सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवने को सोमवार सुबह जानकारी दी गई, जिसके बाद उन्होंने पूर्वी लद्दाख में समग्र स्थिति पर वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ चर्चा की। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर को भी करीब 10 घंटे चली इस वार्ता के बारे में अवगत कराया गया है, जिसके बाद शीर्ष सैन्य और रणनीतिक अधिकारी विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श कर रहे हैं। सोमवार शाम को चाइना स्टडी ग्रुप (सीएसजी) के साथ भी पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ चल रहे गतिरोध के बारे में चर्चा की गई। भारत-चीन के सैन्य कमांडरों के बीच हुई वार्ता के बारे में अभी तक सेना या विदेश मंत्रालय ने कोई भी आधिकारक बयान नहीं जारी किया है। सूत्रों ने कहा कि इस वार्ता पर भारत का कोई भी बयान विभिन्न स्तरों पर चर्चा के बाद ही आएगा।
भारत की ओर से सेना की 14वीं कॉर्प्स के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीन की तरफ से दक्षिण शिनजियांग के सैन्य जिला प्रमुख मेजर जनरल लियू लिन के बीच रविवार को करीब 10 घंटे बैठक हुई लेकिन पूर्वी लद्दाख के डेप्सांग मैदानी क्षेत्र, पैंगोंग झील और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स एरिया के विवादित मुद्दों का कोई हल नहीं निकल पाया। रविवार सुबह करीब 11 बजे से यह बैठक लद्दाख में चीन की ओर स्थित मॉल्डो में हुई। तीनों विवादित जगहों से चीन पीछे हटने को तैयार नहीं है, इसलिए एक बार फिर भारत को दो टूक कहना पड़ा कि एलएसी पर पांच मई के पहले की स्थिति बहाल किये बिना अब आगे चीन से वार्ता नहीं होगी। भारत ने पैंगोंग इलाके से चीन को पूरी तरह से हटने को कहा है क्योंकि भारत और चीन के बीच पैंगॉन्ग झील का उत्तरी तट मुख्य समस्या बना हुआ है।
बैठक के बाद 14वीं कॉर्प्स के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह सोमवार सुबह ही लेह के लिए रवाना हो गए थे। बाद में उन्होंने सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवने को इस बेनतीजा वार्ता के बारे में विस्तृत जानकारी दी, जिसके बाद पूर्वी लद्दाख की स्थिति पर वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ जनरल नरवने की बैठक हुई। यह पता चला है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर को भी वार्ता के बारे में अवगत कराया गया है। इसके बाद सीमा विवाद से निपटने के लिए संपूर्ण सैन्य और रणनीतिक अधिकारी विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श कर रहे हैं। चीन अध्ययन समूह के साथ भी भारत और चीन के बीच 5वें दौर की बैठक के नतीजों की समीक्षा करने के लिए सोमवार शाम को चर्चा हुई है, जिसमें पैंगोंग झील और इसके फिंगर एरिया से चीनी सैनिकों को पीछे करने के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया गया। सेना प्रमुख ने शाम को चीन अध्ययन समूह की बैठक में भाग लेने से पहले दिन में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को भी जानकारी दी है। 
लद्दाख में सैन्य स्तर की मीटिंग से पहले उसी दिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि भारत को चीन का मुकाबला करने के लिए तैयार होना ही होगा। चीन के साथ संतुलन तक पहुंचना आसान नहीं है। भारत को उसका विरोध करना ही पड़ेगा। यही नहीं मुकाबले के लिए भी खड़ा होना होगा। चीन को संदेश देते हुए जयशंकर ने यह भी साफ कर दिया कि बॉर्डर पर चीन की हरकतों का असर व्यापार पर भी पड़ना तय है। विदेश मंत्री ने कहा कि बॉर्डर की स्थिति और देश के रिश्तों को अलग-अलग करके नहीं रखा जा सकता, यही सच्चाई है। जयशंकर का यह बड़ा बयान ऐसे वक्त में आया था जब पांचवें दौर की सैन्य मीटिंग पहले रद्द हो गई थी लेकिन बाद में अचानक दो अगस्त को हुई सैन्य कमांडरों की बैठक से ठीक पहले आये विदेश मंत्री के इस बयान के कूटनीतिक निहितार्थ अब बैठक बेनतीजा होने के बाद निकाले जा रहे हैं। यानी भारत को इस बैठक से कोई नतीजा न निकलने की उम्मीद पहले से थी।

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