शवदाह गृह का निर्माण कार्य पूरा, पर्यावरण को होगा फायदा – डिप्टी मेयर

शवदाह गृह का निर्माण कार्य पूरा, पर्यावरण को होगा फायदा – डिप्टी मेयर

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भागलपुर। जिले के बरारी श्मशान घाट स्थित विद्युत शवदाह गृह के कटाव के भेंट चढ़ जाने के लम्बे अर्से बाद नया विद्युत शवदाह गृह बनकर तैयार हो चुका है। वुडको के द्वारा बरारी श्मशान घाट के किनारे 2 करोड़ 68 लाख की लागत से विद्युत शवदाह गृह का निर्माण कार्य लगभग पूरा किया जा चुका […]

भागलपुर। जिले के बरारी श्मशान घाट स्थित विद्युत शवदाह गृह के कटाव के भेंट चढ़ जाने के लम्बे अर्से बाद नया विद्युत शवदाह गृह बनकर तैयार हो चुका है। वुडको के द्वारा बरारी श्मशान घाट के किनारे 2 करोड़ 68 लाख की लागत से विद्युत शवदाह गृह का निर्माण कार्य लगभग पूरा किया जा चुका है। इस आधुनिक विद्युत शवदाह गृह में आधुनिक मशीनें लगायी गयी है। शवदाह गृह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें शवदाह गृह से निकले अवशेष को गंगा में नहीं गिराया जायेगा, बल्कि उसे मशीन से ही नष्ट कर दिया जायेगा। शवदाह गृह बनने से गरमी, बारिश और ठंड में शव जलाने वाले लोगों को होने वाली परेशानी से राहत मिलेगी। भागलपुर श्मशान घाट में नवनिर्मित इस विद्युत शवदाह गृह को एक सप्ताह के अंदर शहरवासियों के लिए समर्पित किया जाएगा। बता दें कि बरारी श्मशान के घाट के पास पहले से बना शवदाह गृह बंद पड़ा हुआ है। कई साल पहले बाढ़ आने से विद्युत शवदाह की दोनों चिमनी गंगा में विलीन हो गयी थी। उसके बाद मिट्टी के तेजी से कटाव होने के कारण शव दाह गृह पीछे का कुछ भाग गंगा में विलीन हो गया था। तब से शवगृह बंद है। शवदाह गृह के बंद होने के बाद से चिता को जलाने में लकडिय़ों का बेतहाशा इस्तेमाल और इसके धुएं व राख से प्रदूषण का स्तर भी काफी बढ़ गया था। सबसे बड़ी बात यह है कि सुल्तानगंज से कहलगांव तक फैले विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन अभ्यारण्य में विलुप्तप्राय जालीय जीव डॉल्फिन का निवास स्थल है। केंद् सरकार ने इसे विलुप्तप्राय राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित कर रखा है। शवदाह गृह के नहीं होने से चिता जलाने के बाद बचे अवशेषों को लोगों के द्वारा गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया जाता था, जिससे गंगा का प्रदुषण स्तर काफी बढ़ गया था। जो डॉल्फिन के लिए भी घातक साबित हो रहा था। हालांकि अब इस बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए बरारी श्मशान घाट में शवदाह गृह का निर्माण पूरा हो चुका है। बरारी श्मशान घाट पर प्रति दिन बिहार-झारखंड जिलों के एक दर्जन शव का रोज अंतिम संस्कार किया जाता है। घाट किनारे लकड़ी विक्रेता की माने तो एक शव को जलाने में तीन से चार क्विंटल तक लकडिय़ां खपत होती है। जिसकी कीमत 3000 हजार रुपये तक होता है। औसतन एक दर्जन शव को जलाने में रोज छह टन तक लकड़ियां खपत होती है। इससे गंगा में राख सहित अन्य अवशिष्ट पदार्थ के समाहित होने से जल कितना प्रदूषित होता होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अंतिम संस्कार के लिए सालों भर बड़े पैमाने पर लकडिय़ों की मांग रहती है। नतीजतन नए पौधों को लगाने की अपेक्षा बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई भी होती है। दूसरी ओर, जब ये लकड़ियां जलाई जाती हैं तो इनसे निकलने वाले धुएं से पर्यावरण में कार्बन के साथ दूसरे खतरनाक कण भी बढ़ जाते हैं। जो पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ाने का काम करता है।

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