संघ प्रमुख ने कहा- प्रकृति हमारा पोषण करती है, उसका संरक्षण हमारा कर्तव्य

संघ प्रमुख ने कहा- प्रकृति हमारा पोषण करती है, उसका संरक्षण हमारा कर्तव्य

Reported By BORDER NEWS MIRROR
Updated By BORDER NEWS MIRROR
On
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने प्रकृति के संरक्षण को सबसे महत्वपूर्ण बताते हुए कहा है कि हमारे और सृष्टि के बीच पारस्परिक संबंध है इसलिए प्रकृति का पोषण हमारा कर्तव्य है।  डॉ. भागवत रविवार को प्रकृति वंदन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस ऑनलाइन संबोधन का आयोजन वन […]
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने प्रकृति के संरक्षण को सबसे महत्वपूर्ण बताते हुए कहा है कि हमारे और सृष्टि के बीच पारस्परिक संबंध है इसलिए प्रकृति का पोषण हमारा कर्तव्य है। 
डॉ. भागवत रविवार को प्रकृति वंदन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस ऑनलाइन संबोधन का आयोजन वन एवं पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से संघ की पर्यावरण संरक्षण गतिविधि इकाई और हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था। प्रकृति वंदन कार्यक्रम के तहत रा.स्व. संघ और उसके विभिन्न समविचारी संगठनों के कार्यकर्ताओं और प्रकृति प्रेमियों ने देशभर में पेड़-पौधों की पूजा-अर्चना की और प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्धन का संकल्प लिया। 
अपने संबोधन में संघ प्रमुख ने कहा कि पर्यावरण दिवस कोई मनोरंजन का कार्यक्रम नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य संपूर्ण मानव जाति के जीवन को बेहतर बनाना है। हम भी प्रकृति के एक घटक हैं। हमें प्रकृति पर विजय नहीं बल्कि प्रकृति से पोषण पाना है। सृष्टि सुरक्षित होगी, मानव जाति सुरक्षित होगी तभी जीवन सुखमय और सुंदर होगा। उन्होंने कहा कि इस एक दिन का संदेश अपने कार्य व्यवहार में वर्ष भर दिखना चाहिए, तभी मानव का जीवन सुखी और सुरक्षित होगा। पिछले तीन-साढ़े तीन सौ वर्षों में इस संस्कृति का जो क्षरण हुआ है उसको अगले दो-ढाई सौ वर्षों में हम पुनर्जीवित कर लेंगे। तीस अगस्त को पर्यावरण दिवस मनाने का हमारा यही उद्देश्य है। 
डॉ. भागवत ने कहा कि शरीर के सभी अंग जब तक काम करते हैं तभी तक शरीर चलता है। जब तक शरीर चलता है तभी तक शरीर का कोई अंग काम कर पाता है। शरीर में जब प्राण नहीं रहा तो उसके सारे अंग काम करना बंद कर देते हैं। शरीर सभी अंगों के कार्य और सभी अंगों से मिलने वाली ऊर्जा पर निर्भर है। इसी प्रकार का परस्पर संबंध सृष्टि का हमसे है। हम उसके अंग हैं। सृष्टि का पोषण हमारा कर्तव्य है। अपने प्राण धारणा के लिए सृष्टि से कुछ लेते हैं। शोषण नहीं करते, सृष्टि का दोहन करते हैं। यह जीने का तरीका हमारे पूर्वजों ने समझा। सिर्फ एक दिन के लिए नहीं बल्कि पूरे जीवन के लिए इस बात को रचा-बसा लिया। 
उन्होंने कहा कि हमारे यहां यह स्वाभाविक रूप से कहा जाता है कि शाम को पेड़-पौधों को मत छेड़ो, पेड़ सो जाते हैं। पेड़-पौधों में जीव है और जीव सृष्टि का हिस्सा है। यह बात हमारे यहां का सामान्य और अनपढ़ आदमी भी जानता है कि पेड़ों को शाम को छेड़ना नहीं चाहिए। हमारे यहां रोज चीटियों को आटा डाला जाता था। घर में गाय को गोग्रास, कुत्तों, पछियों एवं कृमि-कीटों को भी भोजन देने का सामान्य नियम था। यहां तक कि कोई अतिथि भूखा है तो उसको भी भोजन देने के बाद गृहस्थ भोजन करता था। इन सबका पोषण करना मनुष्य की जिम्मेदारी है क्योंकि इन सबसे मनुष्य को पोषण मिलता है। हमारे यहां पेड़-पौधों, नदियों, पहाड़ों, गाय और सर्पों की भी पूजा होती है। ये सभी बातें यही बताती हैं कि हम सभी इस सृष्टि के अंग हैं, लेकिन हम लोग ये बातें भूल गए। इसलिए हमें पर्यावरण दिवस मनाकर इसको स्मरण करना पड़ रहा है। तुलसी विवाह, नागपंचमी और गोवर्धन पूजा इसी का उदाहरण हैं। हम सबको इन त्योहारों को उचित ढंग से मनाना चाहिए। ताकि नई पीढ़ी भी इससे सीखे। पर्यावरण दिवस का यही संदेश है कि हम सभी मनुष्य इस सृष्टि के ही अंग हैं और इसके संरक्षण  से ही हमारा वर्तमान और भविष्य संरक्षित रह सकता है।

Post Comment

Comments

राशिफल

Live Cricket

Recent News

Epaper

मौसम

NEW DELHI WEATHER