बक्सर । धर्म संकट में फंसी भाजपा को इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान बगावत को आतुर नेताओं और रुष्ट हुए मतदाताओं को साधना आसान नहीं होगा। 2015 विधानसभा चुनाव से इतर इस बार बिहार विधानसभा चुनाव का समीकरण बदला हुआ है। गत विधान सभा चुनाव के दौरान जदयू से हटकर चुनाव लडी भाजपा […]
बक्सर । धर्म संकट में फंसी भाजपा को इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान बगावत को आतुर नेताओं और रुष्ट हुए मतदाताओं को साधना आसान नहीं होगा। 2015 विधानसभा चुनाव से इतर इस बार बिहार विधानसभा चुनाव का समीकरण बदला हुआ है। गत विधान सभा चुनाव के दौरान जदयू से हटकर चुनाव लडी भाजपा बक्सर के चारों विधानसभा सीटें गंवा बैठी थी। पर इस बार पुनः जदयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली भाजपा चुनाव के तहत अपने पाले में आने वाली बक्सर और ब्रह्मपुर सीटों पर जीत दर्ज कर पायेगी या सम्भावित भितरघात के कारण पुनः इस बार भी शून्य पर आउट होगी कहा नहीं जा सकता। जबकि भाजपा के सहयोगी जदयू ने गत चुनाव के दौरान भी भाजपा से अलग होकर डुमरांव और राजपुर (सुरक्षित) सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाबी पायी थी। पुनः इस बार भी ये दोनों ही सीटें जदयू के पाले में ही हैं जिनपर ददन सिंह यादव और सूबे के परिवहन मंत्री संतोष निराला काबिज हैं। इस बार के बदले समीकरण के बावजूद भाजपा के समक्ष एक बड़ी चुनौती भितरघात की है। गत चुनाव में भी आपसी गुटबाजी और भितरघात को लेकर जिले के किसी भी विधानसभा सीट पर भाजपा अपनी शाख नहीं बचा पाई थी। कमोवेश इस बार भी स्थिति वही बनती नजर आ रही है।
बात यहां जदयू के परम्परागत मतदाताओं से इतर भाजपा के परंपरागत मतदाताओं की होगी तो इस बात का जिक्र होना लाजमी है कि बीते झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन भाजपा के दिग्गज नेता सरयू राय की उपेक्षा कम से कम बक्सर, डुमरांव और राजपुर विधानसभा सीटों पर असर डालेगी ही। गौरतलब है कि सरयू राय बक्सर के इटाढ़ी थाने के खनिता गांव के मूल निवासी हैं। भाजपा द्वारा उनकी उपेक्षा से स्थानीय भूमिहार बिरादरी के लोगों में खासी नाराजगी है। रही बात ब्राह्मण मतदाताओं की तो स्थानीय ब्राह्मण मतदाता युवा और बुजुर्ग खेमो में बटे हैं। यहां के युवा जहां भाजपा समर्थक हैं तो वृद्ध ब्राह्मण मतदाता अब भी परम्परागत कांग्रेसी हैं। इस बार बक्सर सदर सीट से महागठबंधन के तहत कांग्रेस से गत विधानसभा चुनाव के विजयी उम्मीदवार संजय तिवारी के ब्राह्मण होने और जाती विशेष में पकड़ होने के कारण ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाने में सफल होते दिख रहे हैं। बक्सर सीट ब्राह्मण बहुल होने से भाजपा के लिए किसी ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारना मजबूरी सी है। यह वक्त की बात है। भाजपा के गत चुनाव में बक्सर सदर सीट से किसी ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारती है या भाजपा गत चुनाव में रहे प्रत्याशी प्रदीप दुबे को पुनः आजमाएगी या फिर वर्तमान सांसद अश्विनी चौबे के प्रिय पात्र परशुराम चतुर्वेदी पर दांव खेलेगी या फिर कई धड़े में बंटे स्थानीय भाजपा में भितरघात को रोकने के लिए किसी बाहरी प्रत्याशी को मैदान में उतारेगी, यह आने वाला वक्त ही बतायेगा।
जहां तक बात जदयू-भाजपा गठबंधन की है तो राजपुर सुरक्षित सीट से गत चुनाव में बदले समीकरण के तहत भाजपा के बैनर तले प्रत्याशी रहे विश्वनाथ राम इस बार ठगे—ठगे से महसूस कर रहे हैं,वहीं जदयू के तयशुदा प्रत्याशी और मंत्री संतोष निराला को लेकर अगडी जाति में विशेष विरोध के स्वर हैं। जदयू के अंदर यह अहम है कि गठबंधन धर्म के तहत स्थानीय अगडी जाति विशेष कहीं नहीं जा सकती। ऐसे में यह आभास अगडी जाति को भी है। अतः इनका वोट प्रतिशत कम होना जदयू के लिए चिंता का सबब बन सकता है। वहीं महागठबंधन के बैनर तले राजद प्रत्याशी और राजपूत खेमे की गोलबंदी के पीछे कारण यह हैं वर्तमान राजद प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह, जो बक्सर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। उनका प्रभाव अब भी इस जाति विशेष के एक बड़े तबके पर है। वहीं बक्सर के बाहुबली कृष्णानन्द सिंह का अश्विनी चौबे से दूरी युवा राजपूत मतदाताओं को भाजपा से दूर कर सकती है। सीधा अर्थ है कि इसका खमियाजा बक्सर में भाजपा को, तो राजपुर में जदयू के प्रत्याशी को भुगतना होगा। यही सिथति डुमरांव और ब्रह्मपुर में भी बन रही है। जहां डुमरांव में यादवों के बीच बिखराव दिख रहा है, तो भजपा के परम्परागत मतदाता चुनाव को लेकर उत्साहित नहीं दिख रहे हैं। रही बात ब्रह्मपुर सीट की तो सबकुछ प्रत्याशियों के चेहरे पर टिका है। यहां अगर भाजपा बाहरी प्रत्याशी को थोपती है तो उसे भितरघात के लिए तैयार होना होगा।
इन परिस्थितियों में बसपा, सपा, जाप, रालोसपा, भाकपा(माले)जैसी आंशिक प्रभुत्व रखने वाली पार्टियां एनडीए और महागठबंधन का खेल बिगाड़ सकती हैं। अतः बक्सर के चारों विधानसभा सीटों पर वे ही प्रत्याशी सफल होंगे जो घात-प्रतिघात को साध सकते हैं।
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