शहर के बीचों-बीच हो रहा था करोड़ों की भूमि पर कब्जा, पीड़ितों ने लगाये पुलिस पर कई गंभीर आरोप

शहर के बीचों-बीच हो रहा था करोड़ों की भूमि पर कब्जा, पीड़ितों ने लगाये पुलिस पर कई गंभीर आरोप

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सागर सूरज मोतिहारी। ज़िले मे भू- माफियाओं (Land Mafia) के द्वारा किए जा रहे ज़मीनों के कब्जे की  शृंखला मे बृहस्पतिवार को नगर थाने से महज कुछ कदम की दूरी पर तकरीबन तीन सौ की संख्या मे भूमि कारोबारी तकरीबन 9 कट्ठा जमीन पर बल पूर्वक चाहारदीवारी करने लगे। उक्त जमीन सहित कुल 28 कट्ठा […]

सागर सूरज

मोतिहारी। ज़िले मे भू- माफियाओं (Land Mafia) के द्वारा किए जा रहे ज़मीनों के कब्जे की  शृंखला मे बृहस्पतिवार को नगर थाने से महज कुछ कदम की दूरी पर तकरीबन तीन सौ की संख्या मे भूमि कारोबारी तकरीबन 9 कट्ठा जमीन पर बल पूर्वक चाहारदीवारी करने लगे। उक्त जमीन सहित कुल 28 कट्ठा जमीन पर उच्च न्यायालय (High Court) ने किसी तरह के निर्माण कार्य करने एवं बिक्री पर रोक लगा दी थी। आरोप है कि पीड़ित पक्ष सुबह के आठ बजे से नगर थाने मे गुहार लगते रहे परंतु तब तक पुलिस (Police) सक्रिय नहीं हुई जब तक बिहार के पुलिस निदेशक एसके सिंघल (DGP SK Singhal) का मामले मे हस्तक्षेप नहीं हो सका।

पीड़ित पक्ष किशोर मिश्रा की माने तो कब्जे के दौरान ज़िले के ज़्यादातर अधिकारियों के मोबाइल बंद थे। सुबह मे उनका आवेदन भी नहीं लिया गया। बाद मे डीजीपी के आदेश पर पुलिस का एक दल घटना स्थल पर पहुंचा तब जाकर भू-माफियाओं की फौज मैदान छोड़ कर भाग सकी और पीड़ित पक्ष के लोगों ने निर्माणाधीन चाहारदीवारी को तोड़ डाला।

हालांकि, मामले मे नगर इंस्पेक्टर विजय यादव (Town Inspecter Vijay Yadav) ने कहा कि निर्माण कार्य करवाने वाले व्यक्ति का दावा था कि चाहरदिवारी वाली भूमि मुकदमे वाली भूमि से अलग है। मामले मे कोई पक्षपात नहीं की गयी है। पुलिस पर लगने वाले सारे आरोप बेबुनियाद है। मामले मे कोई आवेदन नहीं आया है, आवेदन मिलने पर कार्रवाई कि जाएगी।

इधर एक पक्ष अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार वर्मा (Advocate Shailendra Kumar Verma) ने कहा कि कब्जा की जा रही भूमि मुकदमे वाली भूमि का ही अंश है, जिस पर कोर्ट की निषेधाज्ञा लागू है। हमलोग थाने मे आत्मदाह करने जा रहे थे, तब जाकर पुलिस घटना स्थल को कूच कर सकी।

सनद रहे कि नगर थाने (Town Police Station) के इंस्पेक्टर विजय कुमार यादव एक सुलझे हुये व्यक्ति है। आरोप है कि मामले मे पुलिस के वरीय अधिकारी का थाने पर दबाब था, तभी तो कोर्ट के आदेश के बाद भी थाने के बगल मे खुलेआम कब्जा हो रहा था और थाने के अधिकारी मजबूर बने हुये थे।

कब्जा करने वालों मे कई सफेद पोशों का भी नाम आ रहा है वही मामले मे बताया गया कि पूर्व मे इस जमीन पर किशोर मिश्रा एवं स्व. लक्ष्मीकान्त प्रसाद के बीच 1964-65 से दीवानी बाद चल रहा था, जिसमे स्व. लक्ष्मी प्रसाद पक्ष की जीत निचली अदालत से हो गयी थी, जिसको उच्च न्यायालय मे चुनौती दी गयी थी। बाद मे दोनों पक्षों ने 13 कट्ठा एवं 15 कट्ठा के हिसाब से आपस मे समझौता कर लिया, इसी बीच एक तीसरा पक्ष अशोक मिश्रा ने उच्च न्यायालय मे मुकदमे मे इंटरबेनर बनने का प्रयास किया, लेकिन न्यायालय ने यह कहते हुये मनोज मिश्रा का आवेदन अस्वीकृत कर दिया गया कि लोअर कोर्ट मे मनोज मिश्रा को भी पार्टी बनाया गया था लेकिन वे मुकंदमे मे अपना पक्ष रखने को लेकर इक्छूक नहीं दिखे।

लॉक डाउन मे कोर्ट की प्रक्रिया पूरी तरह से बंद है। दो माह पूर्व भी माफियाओं ने जमीन को कब्जा करने का प्रयास किया परंतु तब भी वे लोग असफल रहे एवं मामले मे पुलिस ने जमीन पर धारा 144 धारा लागू कर दिया। आरोप है कि पीड़ित पक्ष ने तब धमकी एवं रंगदारी का एक आवेदन नगर थाने मे दिया था, लेकिन किसी कारण वश पुलिस द्वारा वो मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सका था। मामले मे अशोक मिश्रा एवं मनोज गौतम आदि पर कई संगीन आरोप लगाये गए थे। मनोज गौतम एक सम्मानित प्रोफेसर के पुत्र बताये जाते है।

मामले मे एक पक्ष से जुड़े सिविल के वरीय अधिवक्ता राजीव शंकर वर्मा (Advocate Rajiv Shankar Verma) ने कहा कि प्रथम अपील मे उनके क्लाईंट की जीत निचली अदालत से हुई थी। जिसका अपील उच्च न्यायालय मे एक पक्ष ने किया है, जबकि वर्तमान मे विवाद करने वाला व्यक्ति कही से भी इस भूमि पर अपना कानूनी अधिकार नहीं रखता है।

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