जीविका बन रही आत्मनिर्भरता का श्रोत, खत्म हो रही है सामाजिक बुराइयां

जीविका बन रही आत्मनिर्भरता का श्रोत, खत्म हो रही है सामाजिक बुराइयां

सक्सेस स्टोरी से खुश हैं नीतीश कुमार, आय बढ़ाने में जुटे हुए हैं गिरिराज सिंह

Reported By BORDER NEWS MIRROR
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बेगूसराय । सतत जीविकोपार्जन कार्यक्रम आजीविका मिशन के तहत केंद्र सरकार जहां देश में जीविका से जुड़ी महिलाओं की आय में वृद्धि कर ग्रामीण जीवन स्तर सुधारने का प्रयास कर रही है। वहीं, देश में सबसे पहले यह योजना लागू करने वाली बिहार सरकार जीविका के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के द्वारा उनके परिवार का जीवन स्तर सुधारने का प्रयास कर रही है। इसके माध्यम से कई सामाजिक बुराई पर काबू पाने के साथ सरकार के विभिन्न योजनाओं के सफल संचालन में भी सफलता मिल रही है।

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बिहार में 2016 में शराबबंदी के बाद शराब पीने-पिलाने वाले और कारोबारी परिवार को समाज के मुख्यधारा से जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीविका परियोजना शुरू किया। करीब चार साल में इस योजना के माध्यम से एक करोड़ से अधिक महिलाएं जुड़ गई है। योजना सही दिशा में चलने से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी काफी उत्साहित हैं, उन्होंने कहा कि दस लाख से अधिक स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं अपने परिवार के जीवन स्तर को सही दिशा में ले जाकर आत्मनिर्भर हो रही है। केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह इस योजना को सही दिशा में ले जाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस योजना के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को दीपका से जोड़कर, उनके आर्थिक उन्नति के लिए बेहतर प्रयास किए जा रहे हैं। इधर, बेगूसराय में डीएम अरविंद कुमार वर्मा के नेतृत्व में जीविका दीदी अपने लक्ष्य के प्रति लगातार प्रगतिशील हैं।



जिले में 26 हजार सात सौ 69 स्वयं सहायता समूहों में तीन लाख 23 हजार से ज्यादा परिवारों को शामिल किया गया है। स्वयं सहायता समूहों को एक हजार आठ सौ 72 ग्राम संगठनों एवं 45 संकुल स्तरीय संघों से संयोजित किया गया है। शनिवार को समाज सुधारक अभियान के तहत बेगूसराय में मुख्यमंत्री के मंच पर जब बेगूसराय एवं खगड़िया जिला की जीविका दीदी ने जो कहानी सुनाई और वह किसी फिल्मी स्टोरी किसी से कम नहीं है। कहानी बता रही है कि समाज सुधार और उत्थान के इस सबसे बड़ी योजना धरातल पर मूर्त रूप ले रही है।



बाल विवाह का विरोध कर जीवन संवार रही है जेबा



जीविका के जिला परियोजना प्रबंधक तरुण कुमार ने बताया कि बखरी निवासी जेबा नाज ने बाल विवाह का विरोध कर खुद का जीवन संवार लिया है। इनकी जीवनी हमें प्रेरणा देती है कि किस प्रकार जेबा दीदी ने अपने बाल विवाह को रोककर जीवन में परिवर्तन लाया। स्वर्ग जीविका स्वयं सहायता समूह जेबा नाज जब 16 वर्ष थी, तभी उनके माता पिता ने उनकी शादी तय कर दी। उस समय जेबा दीदी नवमीं की छात्रा थी और आगे पढ़ने के लिए इस शादी के विरुद्ध थी। नवमीं की छात्रा होने के बावजूद उसने कम उम्र में हो रही इस शादी का जबरदस्त विरोध किया और स्पष्ट रूप से शादी से इंकार कर दिया। विवश माता-पिता को भी अपना फैसला बदलना पड़ और लड़का पक्ष को भी शादी रोकने पर सहमत कर लिया गया। जेबा नाज ने अपनी पढ़ाई जारी रखी तथा मैट्रिक, इंटर करने के बाद उर्दू विषय से स्नातक की डिग्री हासिल की।



अगर बाल विवाह नहीं रुका होता तो शायद यह संभव नहीं हो पाता। सही समय पर शादी उसी घर में हुई जहां पहले तय हुआ था, आज जेबा अपने घर पर ही बच्चों को ट्यूशन देकर अच्छी आमदनी प्राप्त कर रही हैं। जेबा का कहना है कि बाल विवाह हमारे समाज में एक अभिशाप है, जिसे हर हाल में जड़ से समाप्त करना होगा। जिस तरह से जेबा ने बाल विवाह को रोककर अपने जीवन को संवारा, उसी तरह से सभी जीविका दीदियों को बाल विवाह का विरोध कर अपने बच्चों की जिंदगी संवारने तथा समाज निर्माण में बहुमूल्य योगदान देना चाहिए। बच्चों में शिक्षा का अलख जगाते हुए जेबा अपने आसपास के समुदाय में बाल विवाह से होने होने वाले नुकसान के प्रति जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं।



शराब का कारोबार छोड़ कपड़ा व्यवसाय से संवर रही शोभा की जिंदगी



छौड़ाही प्रखंड में हनुमत जीविका महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ी सहुरी पंचायत की रहने वाली शोभा के पति रामप्रकाश सहनी का 2015 में दुर्घटना के कारण का निधन हो गया। इस कठिन परिस्थिति में शोभा ने अपनी आजीविका के लिए देशी शराब के उत्पादन और बिक्री पर आश्रित रहने लगी। इसके साथ ही खेतिहर मजदूर के रूप में मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण करने लगी। शोभा के पास पुश्तैनी संपत्ति भी नहीं था। शराब जैसे कारोबार में लिप्त रहने के कारण शोभा को सामाजिक सम्मान हासिल नहीं था। ऊपर से 2016 में राज्य सरकार के शराबबंदी कानून लागू होने के बाद पुलिस की दबिश बनी रहती थी, पर रोजगार के किसी अन्य साधन के अभाव होने से मजबूरन इस पेशा में रहना शोभा दीदी की मजबूरी बनी रही। इसी बीच 2019 में सतत जीविकोपार्जन योजना के तहत मधुकर ग्राम संगठन की दीदियों ने शोभा की माली हालत देखकर उसे इस योजना के लाभार्थी के रूप में चयन करने का अनुमोदन किया।



इसके बाद एम.आर.पी. के द्वारा शोभा का क्षमतावर्धन तथा उत्साहवर्धन किया गया। प्रोत्साहन पाकर शोभा ने कपड़ा फेरी कर जीविकोपार्जन करने का निर्णय लिया तथा सतत जीविकोपार्जन योजना के विशेष निवेश निधि के तहत शोभा को दस हजार दिया किया। उसके बाद फिर जीविकोपार्जन निवेश निधि के तहत 20 हजार दिया गया। आज इस कारोबार में शोभा दीदी निपुण हो गई और वर्तमान की संपत्ति 70 हजार रुपये से भी अधिक है। इस व्यवसाय से प्रतिदिन शोभा दीदी को तीन से चार सौ रुपये की आमदनी हो जाती है। जीवन बीमा समेत सभी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, नल का जल, राशन कार्ड, गैस चूल्हा, विधवा पेंशन आदि का लाभ भी मिल रहा है, दोनों बच्चे अब सरकारी विद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर रहे है। शराब का कारोबार छोड़ने तथा सम्मानित व्यवसाय अपनाने से खोया हुआ सामाजिक सम्मान हासिल कर शोभा बहुत खुश है तथा एक सफल कारोबारी के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं।



लक्ष्मी का संकल्प : न बनने देंगे न ही पीने देंगे शराब



2014 में आशा समूह में जुड़ने वाली छौड़ाही प्रखंड की लक्ष्मी अपने ग्राम संगठन के सभी समूहों के लिए जीविका मित्र बन लेखांकन तथा साप्ताहिक बैठकों का आयोजन करती हैं। सामाजिक मुद्दों पर लक्ष्मी आरम्भ से ही अपने ग्राम संगठन की दीदियों को जागरूक करने का कार्य की है। 2016 में छौड़ाही का नारायणपीपर पंचायत शराबियों से परेशान रहा करता था। असामाजिक लोग शराब पीकर गाली गलौज एवं अश्लील हरकत किया करते थे। इस कारण स्थानीय लोगों, खासकर महिलाओं का शाम के समय घर से बाहर निकलना बहुत मुश्किल था। इसी गांव की जयमाला देवी देशी शराब बनाने के कार्य में लिप्त थी, समूह की दीदियों के द्वारा कई बार मना करने पर भी उसने यह पेशा नहीं छोड़ा। तंग आकर लक्ष्मी ने अपने ग्राम संगठन में इस बात की चर्चा की, चर्चा के बाद लिए गए निर्णय के अनुसार ग्राम संगठन की 50 दीदियां जयमाला के घर पर तुरंत पहुंच गई। अचानक इतनी दीदियों को अपने घर पर आया देख उसने घर का दरवाजा बंद कर दिया।



लेकिन, ग्राम संगठन की दो दीदियां खिड़की के सहारे घर में प्रवेश की और अन्दर से दरवाजा खोला। तब सभी दीदियों ने मिलकर भट्टी पर हांडी में बन रहे शराब को उलट दिया। शराब बनाने वाले सभी सामान को फेंक दिया और पुलिस में शिकायत करने की बात करने लगी, तब जाकर जयमाला ने हाथ जोड़कर माफी मांगा। इसके बाद लक्ष्मी ग्राम संगठन ने जयमाला को सतत जीविकोपार्जन योजना के लाभार्थी के रूप में अनुमोदन किया और सम्मानजनक व्यवसाय करने को कहा। आज जयमाला इस योजना से मिली मदद के दम पर सफल रूप से मनिहारी की दुकान चला रही है। उनका पूरा परिवार खुशहाल है, दुकान की कमाई से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई समेत पूरे परिवार का भरण-पोषण हो रहा है। शराब बनाने का कार्य तभी से पूरी तरह बंद है। लक्ष्मी देवी का संकल्प है कि हमारे पंचायत में किसी के भी द्वारा ना शराब बनाने देंगे और ना ही इसका सेवन करने देंगे।



यह तो कुछ उदाहरण हैं, बेगूसराय ही नहीं पूरे बिहार में हजारों ऐसे जीविका दीदी है जो शराबबंदी, दहेज प्रथा उन्मूलन और बाल विवाह मुक्त समाज की स्थापना के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। इससे सामाजिक बुराई समाप्त होने के साथ-साथ उनकी आर्थिक स्थिति सुधर रही है, अपने घर में रहकर आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ अपने परिवार को भी सुशिक्षित और आत्मनिर्भर बना रही है।

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