
विचार
मोतिहारी। महात्मा गाँधी, मिलेनियम लेखक जॉर्ज ओरवेल और भगवन बुद्ध के स्तूप को अगर चंपारण के इतिहास से अलग कर दिया जाये तो निश्चय ही चंपारण अपने गौरव से महरूम हो जाएगा। भारत- नेपाल सीमा होने के कारण प्रत्येक तरह के अपराध जैसे नकली भारतीय रूपये, ड्रग्स और अन्य प्रतिबंधित सामानों की तस्करी के साथ- साथ कई आतंकवादियों की गिरफ़्तारी जैसे मामले चंपारण ही पहचान बन कर रह जायेंगे।पश्चिमी चंपारण, जो कभी मिनी चम्बल के द्र्धंत अपहरण कर्ताओं और डाकुओं के लिए कुख्यात था तो वही 80 के दशक में मोतिहारी में जितनी गलियां नहीं थी उतनी अपराधी सरगना सक्रिय थी। लेकिन आज परिस्थिति बिल्कुल बदल चुकी है। तब के ज्यादातर अपराधिक छवि वाले लोग आज सामाजिक और राजनीतिक जीवन जी रहे है। क्योकि पूर्व की तरह अब राजनीति में भी अपराधियों की उतनी पूछ नहीं है और न ही आम लोग ही अपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को अपना हीरो मानने को तैयार है, नतीजतन ये समझा जाने लगा की चंपारण गांधी और बुद्ध के गौरव को पुनः स्थापित करने लगा है।

लेकिन अफशोस चन्द असमाजिक तत्वों ने हाल के वर्षो में ना केवल जॉर्ज ओरवेल के जन्म स्थान पर स्थित उनकी मूर्ति को तोड़ कर अपनी नस्लवादी सोंच का परिचय दिया, बल्कि मोतिहारी को पुरे देश सहित विदेशों में शर्मशार किया। जॉर्ज ओरवेल का विरोध करने वाले उसे अँगरेज़ कहते हुये सरकार द्वारा बनाये जा रहे पार्क का विरोध कर रहे थे। उन्हें कौन समझाये की लेखक और कलाकार को देश और नस्ल की सीमाओं में नहीं बंधा जा सकता। नफरत की ये नापाक हाँथ बापू तक को भी नहीं बक्सा। गत दिनों चरखा पार्क में गाँधी की आदम कद तस्वीर को ध्वस्त कर दिया गया। इसकी आग अभी ठन्डी भी नहीं हुई थी की तुरकौलिया के ऐतिहासिक नीम बृक्ष के पास बनाये गए गाँधी की मूर्ति को अपमानित किया गया। दोनों ही मामले में असामाजिक तत्वों को आरोपित किया गया। चरखा पार्क वाले मामले में तो एसपी कुमार आशीष ने जबरदस्त करवाई करते हुये दोषी नशेड़ी को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन हद तो तब हो गयी जब एक पढ़ा लिखा आदमी पेशे से प्राचार्य अपने स्कूल के गेट की दिवार पर बनाये गए गाँधी की तस्वीर को अपने स्कूल के पोस्टर से ढक दिया। ये घटना चरखा पार्क के बगल और नगर थाने के सामने स्थित मंगल सेमिनरी स्कूल का है।
कुछ वर्ष पूर्व केसरिया बुद्ध स्तूप के गुम्बद को भी तोड़ दिया गया था, और यही कारण है की विश्व की सबसे ऊँची बौद्ध स्तूप दुसरे नंबर पर आ गयी थी।
चरखा पार्क की घटना के बाद शुरू हो गयी राजनीती
विरोधी भाजपा पर आरोप लगाने लगे, जो उनका काम है। विरोधी की भूमिका तो निभानी है ना, लेकिन इसी क्रम में कई बेतुकी बाते भी सामने आने लगी। डॉ. आशुतोष शरण की भूमिका अगर ना होती तो प्रशासन की लापरवाही से चरखा पार्क के बगल के पास स्थित सिचाई विभाग का भवन सहित पूरा इलाका स्मैकियों की पूरी तरह से चपेट में रहता और हालत ये रहती की आस पास के मोहल्ले के ज्यादातर घरों के नौनिहाल नशे के सौदागरों की कठपुतली बन चूका होता। कुछ काम प्रशासन का भी था, जो नहीं हो सका। चरखा पार्क बनने के बाद तो नशेड़ियों की गतिविधियाँ नगण्य हो गयी परन्तु समाप्त नहीं हो सकी। उक्त मृत जगह को जीवित करने में शरण परिवार की भूमिका को नहीं नाकारा जा सकता।
अब सवाल ये है की क्या गाँधी और बुद्ध जिनके विचारों को विश्व बिरादरी ने भी अपनाया। ये अपने ही चंपारण में महत्वहीन क्यों हो रहे है। क्या उनके विचार आज के दौर में सार्थक नहीं है। ऐसा माना जाता है कि गाँधी और बुद्ध की सोंच चंपारण की मिट्टी में अभी भी विद्यमान है, लेकिन चन्द असमाजिक तत्व उन जड़ों को कमजोर करना चाहते है।
गाँधी और बुद्ध हमारी धरोहर है
अपराधी या किसी भ्रष्ट नेता से हमारी पहचान नहीं होनी चाहिए। गाँधी और बुद्ध हमारी धरोहर है और यही हमारी पहचान भी। यह पहचान हमारी मूल्यों को समृद्ध बनता है और शांति, भाई चारे से जीना सिखाता है।
रात्रि में इन स्थानों पर जिलाधिकारी और एसपी का घूमना चंपारण के लोगो के मूल्यों में लगातार हो रहे ह्रास को तो नहीं रोक सकता, परन्तु इसको लेकर समाज के लोगों को ही आगे आना पड़ेगा और सिर्फ प्रशासन को दोषी मान कर अपना पल्ला झाड़ने की प्रवृति से भी अलग होना पड़ेगा।
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