सीएजी रिपोर्ट ने खोली बिहार के स्वास्थ्य विभाग की पोल, 2005 और 2021 में कोई अंतर नहीं

सीएजी रिपोर्ट ने खोली बिहार के स्वास्थ्य विभाग की पोल, 2005 और 2021 में कोई अंतर नहीं

-स्वास्थ्य संकेतक के मामले में बिहार की स्थिति राष्ट्रीय औसत के बराबर नहीं

Reported By BORDER NEWS MIRROR
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सीएजी ने रिपोर्ट में पाया कि ऑपरेशन थियेटर (ओटी) में आवश्यक 25 प्रकार के उपकरणों के विरुद्ध केवल 7 से 13 प्रकार के उपकरण ही उपलब्ध थे। आईपीएचएस के अनुसार सभी जिला अस्पतालों में 24 घंटे ब्लड बैंक की सेवा होनी चाहिए लेकिन 36 जिला अस्पतालों में नौ बिना ब्लड बैंक के कार्यरत हैं।

पटना। बिहार विधान मंडल में बुधवार को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पेश की गयी। सीएजी की रिपोर्ट ने बिहार में स्वास्थ्य की खामियां उजागर हुई है, जिससे पता चलता है कि 2005 और 2021 में कोई अंतर नहीं। सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार के जिला अस्पतालों में कुत्ता और सूअर का बसेरा है। नीतीश सरकार चाहे जो दावा कर ले लेकिन सीएजी की रिपोर्ट ने आइना दिखा दिया है।

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सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड की तुलना में बेड की कमी 52 से 92 प्रतिशत के बीच थी। बिहार शरीफ और पटना जिला अस्पताल को छोड़ दें तो 2009 में स्वीकृत बेड के केवल 24 से 32 प्रतिशत ही मिले। सरकार ने वर्ष 2009 में इन अस्पतालों में बेड की संख्या को स्वीकृत किया था। दस साल बाद भी वास्तविक बेड की संख्या को नहीं बढ़ाया गया। जिला अस्पतालों में ऑपरेशन थिएटर की स्थिति भी अच्छी नहीं है। एनएचएम गाइड बुक में निर्धारित 22 प्रकार की नमूना जांच की दवाओं में औसतन 2 से 8 प्रकार की दवाएं मिली है। बिहार शरीफ और जहानाबाद में दवाओं की अनुपलब्धता के बावजूद समय से मांग भी नहीं किया गया।

सीएजी ने रिपोर्ट में पाया कि ऑपरेशन थियेटर (ओटी) में आवश्यक 25 प्रकार के उपकरणों के विरुद्ध केवल 7 से 13 प्रकार के उपकरण ही उपलब्ध थे। आईपीएचएस के अनुसार सभी जिला अस्पतालों में 24 घंटे ब्लड बैंक की सेवा होनी चाहिए लेकिन 36 जिला अस्पतालों में नौ बिना ब्लड बैंक के कार्यरत हैं। वित्तीय वर्ष 2014 से 2020 के दौरान लखीसराय और शेखपुरा को छोड़कर सभी जिलों में बिना वैध लाइसेंस के ब्लड बैंक चल रहे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि निरीक्षण के दौरान केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन की टिप्पणी का सरकार ने अनुपालन नहीं किया।



सीएजी की रिपोर्ट से सरकार की खामियों उजागर हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 और 2018 के आंकड़ों से पता चला है कि स्वास्थ्य संकेतक के मामले में बिहार की स्थिति राष्ट्रीय औसत के बराबर नहीं है। इसके लिए राज्य सरकार को एक बेहतर योजना बनाने की आवश्यकता थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जांच में यह पाया गया है कि जिला अस्पतालों में बेड की भारी कमी है।

सीएजी ने अनुशंसा किया है कि आवश्यक संख्या में डॉक्टरों, नर्सों, पैरामेडिकल और अन्य सहायक कर्मचारियों की भर्ती सुनिश्चित हो। जिला अस्पतालों में पर्याप्त मानव बल, दवाओं और उपकरणों की उपलब्धता की निगरानी की जाए। स्वास्थ्य विभाग के बजट में जिला अस्पतालों के इनपुट को ध्यान में रखा जाना चाहिए, ताकि निधि आवंटित हो सके। स्वास्थ्य विभाग को दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति में अंतराल की समीक्षा करनी चाहिए। आपूर्ति में देरी को दूर करना चाहिए। अस्पतालों में अनुकूल वातावरण कायम करने के लिए अस्पताल भवनों के रखरखाव प्रबंधन की कड़ाई से निगरानी की जानी चाहिए।

सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार के सरकारी अस्पतालों में आवारा कुत्ते घूमते हैं। जहानाबाद जिला अस्पताल परिसर में आवारा कुत्ते देखे गए। मधेपुरा जिला अस्पताल में अगस्त 2021 में आवारा सुअरों का झुंड दिखा। मधेपुरा जिला अस्पताल में कूड़ा और खुला नाला पाया गया। जहानाबाद जिला अस्पताल में नाले का पानी, कचरा, मल, अस्पताल का कचरा बिखरा मिला।

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