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प्रीति गुप्ता छठां बैश्य, जिसने “सिविक बॉडी” के पद पर किया कब्ज़ा
बैश्यों में शम्भू सिकरिया, रघुवीर प्रसाद, विना देवी, विश्वम्भर प्रसाद और अंजू देवी भी दे चुकी है सेवा
सागर सूरज
मोतिहारी: नगर निगम चुनाव में महापौर पद पर प्रीति गुप्ता के जीत के बाद सोशल मीडिया पर कुछ अति उत्साही लोगों ने इस जीत को बड़ी जातियों से मुक्ति की बात कही है | साथ ही इसको लेकर तरह-तरह के कमेंट भी जातीय आधार पर दोनों पक्षों से होना शुरू हो गया और माहौल को जातीय रंग देने का प्रयास किया गया |
जबकि सच्चाई ये है कि किसी बैश्य का इस पद पर सुशोभित होना कोई नयी बात नहीं है, बल्कि जब से नगरपालिका की स्थापना हुई, फिर नगर परिषद् और नगर निगम तक कुल छः बैश्य लोगों ने इस पद को सुशोभित किया है जबकि दो राजपूत जाती से और दो कायस्त जाती के लोग इन पदों पर रहे है | सबसे पहले रघुवीर प्रसाद नगरपालिका के अध्यक्ष थे, जो रौनियार जाती से आते थे |
उसके बाद कमला सिंह जो राजपूत जाती से आते है फिर राम इकबाल सिंह जो राजपूत जाती से आते है, नगरपालिका अध्यक्ष पद पर जीते | उसके बाद कायस्त जाती से आने वाले रामदयाल प्रसाद सिन्हा इस पद पर काबिज हो गए | फिर 1985 से 1990 तक विश्वम्भर प्रसाद इस पद पर आये जो बैश्य जाती से ही आते रहे | उसके बाद 1990 से 1993 तक ये जगह खाली रही जबकि 1993 से 1997 तक शम्भू नाथ सिकरिया इस पद पर काबिज रहे | फिर 1997 से 2002 तक यह जगह खाली रहा जबकि 2002 से लक्षमण प्रसाद की पत्नी विना देवी इस पद पर रही | शम्भू सीकरीया मारवाड़ी तो विना देवी बनिया जाती से आतीं है वही 2007 से 2017 तक प्रकाश अस्थाना इस पद को सुशोभित हुए साथ ही पुनः 2017 से 2022 तक अंजू गुप्ता भी इस पद पर काबिज रही |
ऐसे में यह कहना कि बड़ी जातियों का ही इस पद पर कब्ज़ा रहा और मुक्ति मिल गयी यह गलत और निराधार है | कोई भी चुनाव किसी एक जाती के वोट से नहीं जीता जाता ऐसा में सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही ऐसी बाते शोभनीय नहीं है |
नतीजतन, वर्षों से भाजपा के कब्जे वाला यह महत्वपूर्ण पद राधा मोहन सिंह से मुक्त हो गया | इसी के साथ भाजपा के इस स्वयंभू ‘किंग मेकर’ को उनके ही लोगों के बिरोध के कारण जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा |
सवाल ये भी है कि क्या प्रकाश अस्थाना हारे या फिर राधा मोहन सिंह ? | सवाल ये भी है कि कोंन जीता - देवा गुप्ता, प्रीति गुप्ता या पवन जयसवाल या बबलू गुप्ता या राकेश पाण्डेय | असल में राधा मोहन सिंह की ही इस चुनाव में हार हुई | भलें ही जो भी लोग इस हार के लिए और जीत के लिए अपना- अपना पीठ थपथपाये |
सांसद महोदय का अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं से विश्वासघात, तानाशाही रवैया, उनके द्वारा जारी नादिरशाही पैगाम से भाजपा के लोग इस कदर उब गए थे और राधा मोहन सिंह को हराने के लिए दिन- रात एक कर दिए थे | नेताओं और कार्यकर्ताओं का आक्रोश राधा मोहन सिंह के मेयर प्रत्याशी को चुनाव हरवा दिया | जाहिर है इस आक्रोश का वोट विरोधी अपने पाले में लाने में सफल रहा और चुनाव जीत गया |
सांसद द्वारा दलीय आधार पर चुनाव नहीं होने के बावजूद अपना प्रत्याशी घोषित करना, वार्ड में भी किसी को बैठने किसी को लड़ने का व्हिप जारी करना, साथ ही गत एमएएलसी चुनाव में अपने प्रत्याशी बबलू गुप्ता से विश्वासघात, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के चुनाव में बीजेपी एमएलए की पत्नी का विरोध सभी मामले प्रकाश अस्थाना जैसे अच्छे व्यक्तित्व पर भारी पड़ गए |
नगर निगम में भाजपा महापौर प्रत्याशी की हार का असर आगामी लोक सभा चुनाव पर भी पड़ सकता है | राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि जिले के भाजपा नेतृव में बदलाव होना चाहिय, क्योकि राधा मोहन सिंह का राजनीतिक अवसान शुरू हो गया है | वार्ड में भी मोहिबुल हक़ सरीखे ज्यादातर राधा मोहन सिंह के प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा है | मह्बुल हक़ को चुनचुन (एह्तेशामुल) नामक एक लड़के से हार का सामना करना पड़ा |
अख़बारों में बड़े –बड़े फोटो छपवाने वाले भाजपा के मंत्री और विधायक अपने उप- महापौर की जीत की खुशियों में अपने महापौर के हार की ग़म छुपाने नजर आ रहे है |
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