रैन बसेरों, सड़कों एवं रेलवे स्टेशनों पर सोये मज़लूमों के शरीर पर रहबर की नजर; आधीरात को बँटी कंबल, जले अलाव

रैन बसेरों, सड़कों एवं रेलवे स्टेशनों पर सोये मज़लूमों के शरीर पर रहबर की नजर; आधीरात को बँटी कंबल, जले अलाव

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सागर सूरज मोतिहारी: जब तापमान 7 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे हो और ज़िला पूर्वी चंपारण हो जहां की जनसंख्या का एक बड़ा भाग गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन गुजर-बसर करने को मजबूर हो और सड़क के किनारे, रैन बसेरों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों एवं सरकारी स्कूलों के आस–पास खुली आसमां के नीचे रात […]

सागर सूरज

मोतिहारी: जब तापमान 7 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे हो और ज़िला पूर्वी चंपारण हो जहां की जनसंख्या का एक बड़ा भाग गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन गुजर-बसर करने को मजबूर हो और सड़क के किनारे, रैन बसेरों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों एवं सरकारी स्कूलों के आस–पास खुली आसमां के नीचे रात गुजारने को मजबूर लोग हो तो ऐसे बेबस लोगों के सहयोग को आए एक जुगनू भी किसी सूरज से कम नहीं होता।

लेकिन सवाल तब पैदा होता है जब ये जुगनू तबतक नहीं निकलती है जबतक ज़िले के साहिब-ए- मसनद खुद इन गरीबों एवं मज़लूमों के दर्द को खुद महसूस कर मदद को कदम आगे नहीं बढ़ाते। गत एक सप्ताह से ठंड अपने परवान पर है, लेकिन ज़िले के संवेदनहीन अधिकारी उसी तरह ज़िले के जिलाधिकारी रमन कुमार का इंतज़ार कर रहे थे, जैसे शहर के गैर जिम्मेदार नागरिक रेलवे फाटक के दोनों तरफ खड़े होकर आवागमन बाधित कर किसी सुरक्षाकर्मी का इंतज़ार करते है कि पुलिस आए और जाम हटाये।

ज़िले मे अधिकारियों की संवेदनशीलता ने सोमवार को रात नौ बजे से अपनी दस्तक देनी शूरू कर दी, ठीक उसी समय जिलाधिकारी रमन कुमार अपने लंबे छुट्टी के बाद मोतिहारी मे आए और अपनी एक मुक्तक “जब घना अंधेरा हो, जुगनू की टिमटिमाहट भी उम्मीद जगाती है, बन ना सकों सूरज, तो जुगनू बन के जियो” को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर ज़िले के सभी अंचलाधिकारियों, अपर समाहर्ताओं, नगर पंचायत एवं नगर परिषद के कार्यपालक अभियंताओं और अनुमंडल पदाधिकारियों को त्राहिमाम संदेश देते हुये खुद भी मैदान मे उतार गए।

रैन बसेरों, सड़कों एवं रेलवे स्टेशनों आदि पर सोये मज़लूमों के शरीर पर कंबल ओढ़ाते हुये, अलाव की व्यवस्था करते हुये अधिकारी किसी रहबर से कम नहीं प्रतीत हो रहे थे। ठंड से ठिठुरते गरीब के आँखों मे इन अधिकारियों के प्रति कृतज्ञता एवं आक्रोश के मिले – जुले  भाव भी कई तरह के सवाल पैदा कर रहे थे। हालांकि सहयोग के देर से बढ़े हांथ के बावजूद भी एक कंबल मानों उनके लिए कुबेर का खजाना से कम नहीं था।

फिर खबरें पूरे ज़िले से आने लगी कि जगह–जगह अलाव एवं कंबल देर रात बांटी जा रही है एवं अधिकारियों का गरीबों एवं मज़लूमों के साथ खुद भी अलाव के लुफ्त उठाते फोटो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगें। मुख्य रूप से करीब 12 बजे रात्रि को रक्सौल स्टेशन पर, सिकरहना अनुमंडल पदाधिकारी की ढाका मे, चकिया अंबेडकर चौक एवं पकड़िदयाल मे अधिकारियों एवं जिलाधिकारी रमन कुमार की अलाव तापते तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं।          

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