
लॉस एंजेल्स। जापान की राजनीति में महानायक प्रधानमंत्री शिंजो आबे (65 वर्ष) ने शुक्रवार की सायं पेट में अल्सर से ज्वलन के कारण पद से त्यागपत्र दे दिया, तो टोक्यो स्टाक मार्केट एकाएक लुढ़क गई। पिछले 75 सालों से सत्ता में लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) ने शिंजो आबे के नेतृत्व में सन 2017 में एक कनिष्ठ सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ प्रचंड बहुमत हासिल किया था, तब किसी ने यह सोचा नहीं होगा कि शिंजो आबे वक़्त से पहले रिटायर हो जाएंगे।
शिंजो आबे को अपने नाना किशी नोबसके प्रधान मंत्री (1957-1960) से राजनीति विरासत में मिली थी। इस कारण शिंजो आबे ने साफगोई से त्यागपत्र देते हुए कहा था कि अगले महीने सितंबर के अंत तक पार्टी नेता का चुनाव कर लिया जाएगा और वह तब तक पद पर बने रहेंगे। शिंजो की यह बीमारी नई नहीं है। वह इसे अरसे से झेलते आ रहे हैं। शिंजो को इस बीमारी के चलते सन 2006-2007 में भी एक साल सत्ता में रहने के बाद त्याग पत्र देना पड़ा था। आबे सन 2012 में दूसरी बार प्रधान मंत्री बने थे। उनके नेतृत्व में इकानमी ने बुलंदियां छूते हुए अमेरिका और चीन के बाद तीसरी आर्थिक शक्ति का स्थान पाया था। चीन को घेरने के चक्कर में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शिंजो आबे के साथ मिल कर ग्यारह देशों के प्रशांत क्षेत्र रिम में एशियाई देशों को जहां सैन्य सुरक्षा का अहसास कराया, वहीं दक्षिण चीन सागर और हिंद प्रशांत महासागर में नौ सेना अभ्यास के लिए ऑस्ट्रेलिया और भारत को साथ लिया। उन्होंने देश में सबसे अधिक अरसे तक प्रधान मंत्री बने रहने का रिकार्ड बनाते ही चार दिन बाद त्याग पत्र दे दिया। खेलों के शौक़ीन आबे ने ओलिंपिक खेलों की मेज़बानी ली लेकिन महामारी से पिछले अगस्त में खेल नहीं हो पाए। कहते हैं, अब अगले अगस्त में होंगे।
शिंजो के बाद अब कौन होगा?
शिंजो के त्याग पत्र की घोषणा के बाद जापान की सत्तारूढ़ पार्टी एलडीपी में खुसर-पुसर शुरू हो गई है। एक वक़्त शिंजो के समकक्ष प्रधान मंत्री के दावेदार रहे पूर्व रक्षा मंत्री शिगेरू इशिबा (63 वर्ष) पदासीन होने के जुगाड़ में हैं। यह महाशय प्रधान मंत्री के विरोधी, स्वभाव से तेज़ और विदेश नीति में आक्रामक बताए जाते हैं। जापानी मीडिया की मानें तो मौजूदा उपप्रधान मंत्री और पूर्व प्रधान मंत्री तारो आसो इस पद के सशक्त दावेदार बताए जा रहे हैं। तारो आसो शिंजो के विश्वस्त रहे हैं तो शासन-प्रशासन में भी योग्य बताए जाते हैं। यूं तो पूर्व विदेश मंत्री फुमीयो किशिदा, रक्षा मंत्री तारो कोनो एवं चीफ कैबिनेट सचिव योशीदे सुगा की गिनती भी शिंजो के चहेतों में की जा रही है। बहरहाल इस पद पर जो भी आएगा, मौजूदा परिस्थितियों में उस पर अमेरिका की मुहर होना निश्चित बताया जा रहा है।
मोदी और शिंजो आबे के रिश्तों में प्रगाढ़ता
भारत और जापान के बीच यों तो प्राचीन काल से मधुर संबंध रहे हैं लेकिन मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल कारिडोर पर संधि से शिंजो आबे और नरेंद्र मोदी के बीच रिश्तों ने नई पहचान दी है। भारत आने पर शिंजो आबे के अहमदाबाद के साबरमती आश्रम जाने और वाराणसी के गंगा घाट पर मां आरती में शामिल होने से दोनों देशों के रिश्तों में अपनेपन की मिठास घोल दी। फिर देश के अनेक शहरों दिल्ली-मुंबई, चेनई-बंगलूरु के बीच औद्योगिक कारिडोर के साथ-साथ कारोबार के विभिन्न क्षेत्रों में संधियां होना दोनों नेताओं के स्वभाव का एक हिस्सा बन गया था। जापान के लिए भारत एक विशाल मंडी है तो भारत के लिए जापान प्रोद्योगिकी विकास का माध्यम। दोनों देश आगे भी साथ-साथ चलेंगे, यह आस बनी हुई है। ‘भारत जापान कंपरिहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट’ (सीईपीए) के अंतर्गत व्यापारिक संबंधों में आए दिन नए आयाम जुड़ रहे हैं, सैकड़ों जापानी कंपनियां भारत की ओर रूख कर रही हैं। गौतम बुद्ध के अनुयाई देश के रूप में जापान-भारत के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों को नया आयाम मिला है। आज टोक्यो में भारत के आईटी पेशेवरों के अलावा प्राध्यापक, प्रबंध, वित्त और शिक्षा के क्षेत्र में हज़ारों शिक्षित नज़र आयेंगे। टोक्यो में ‘निशिकाशी’ क्षेत्र एक लघु भारत के रूप में दिखाई पड़ने लगा है।
ट्रम्प से मतभेदों के बावजूद मनभेद नहीं
शिंजो आबे कूटनीति में माहिर हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से अनेक मुद्दों पर मतभेद के बावजूद दोनों में मनभेद नहीं रहे। ये मुद्दे ट्रम्प की अमेरिका ‘फ़र्स्ट नीति’ के कारण सीमा शुल्क में एकतरफ़ा वृद्धि को लेकर हों अथवा उत्तरी कोरिया के साथ आणविक हथियारों पर संधि के मामले को लेकर। ट्रम्प ने उत्तरी कोरिया से मित्रता और आणविक संधि के मामले में शिंजो आबे के बजाए दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति किम जोई मून पर अधिक भरोसा किया और वह मन मसोस कर रह गए थे। वह शायद इसलिए चुप रहे कि अमेरिका के 55 हजार सैनिक जापान की सुरक्षा में तैनात हैं। इससे पूर्व शिंजो और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ‘इंडो-ट्रान्सपेसिफ़िक पार्टनरशिप ट्रीटी’ में एक सरोकार की भूमिका निभाई थी। डोनाल्ड ट्रम्प ने सत्तारूढ़ होते ही इस ट्रीटी को सिरे से ख़ारिज कर दिया। इस पर शिंजो हताश-निराश नहीं हुए। उन्होंने पैसिफ़िक रणनीति के तहत ग्यारह देशों को एकजुट करते हुए पैसिफ़िक रिम के तहत कारोबार को अंजाम दिया। साथ ही यूरोप के साथ कारोबार ट्रीटी कर रिश्तों को प्रगाढ़ किया। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि शिंजो आबे ने सन 2016 में बराक ओबामा के पद पर रहते हुए न्यू यॉर्क में नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मिले। तब तक ट्रम्प ने अमेरिका की बागडोर नहीं सम्भाली थी।
आर्थिक क्षेत्र में तीसरी बड़ी शक्ति
शिंजो आबे की सराहना इसलिए भी करनी बनती है क्योंकि उन्होंने अमेरिका के साथ मिल कर दक्षिण चीन सागर में साम्यवादी चीन के आक्रामक तेवर का सामना किया है। हिन्द प्रशांत महासागर में निर्बाध व्यापारिक जहाज़ों की आवाजाही और समुद्री कारोबार के मद्देनज़र सुरक्षा की दृष्टि से अमेरिका के नेतृत्व में जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत निगाहबान बने हैं। एक रणनीतिकार के रूप में शिंजो आबे की कमी खलेगी। इंडो-ट्रान्सपेसिफ़िक पार्टनरशिप ट्रीटी (टीटीपी) से ट्रम्प के हाथ खींच लेने तथा जापानी कारों के अमेरिकी निर्यात पर अतिरिक्त सीमा शुल्क बढ़ाने के बावजूद दोनों के रिश्तों की गरमाहट कम नहीं हुई। उन्होंने यही रूख यूरोपीय समुदाय के साथ व्यापारिक ट्रीटी करते हुए निभाया। ऐसे में जब 03 नवम्बर को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव सिर पर हों तो व्हाइट हाउस की नजर शिंजो आबे के उत्तराधिकारी पर ना हो, यह कैसे हो सकता है?
Related Posts
Post Comment
राशिफल
Live Cricket
Recent News

Epaper
YouTube Channel
मौसम

Comments