रिया चक्रवर्ती: साक्षात्कार पर सवाल

रिया चक्रवर्ती: साक्षात्कार पर सवाल

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डॉ. रामकिशोर उपाध्याय युवा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या केस में संदिग्ध आरोपी रिया चक्रवर्ती के साक्षात्कार को लेकर देशभर में तीखी प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। कुछ लोग इसे प्रायोजित साक्षात्कार बता रहे हैं तो कुछ इसे बिहार चुनाव के रणनीतिकारों के मीडिया मैनेजमेंट का अंग मान रहे हैं। जो भी हो किन्तु केंद्रीय जांच […]

डॉ. रामकिशोर उपाध्याय

युवा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या केस में संदिग्ध आरोपी रिया चक्रवर्ती के साक्षात्कार को लेकर देशभर में तीखी प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। कुछ लोग इसे प्रायोजित साक्षात्कार बता रहे हैं तो कुछ इसे बिहार चुनाव के रणनीतिकारों के मीडिया मैनेजमेंट का अंग मान रहे हैं। जो भी हो किन्तु केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा पूछताछ से ठीक एकदिन पहले किसी संदिग्ध आरोपी को छवि सुधारने के ऐसे अवसर दिया जाना ठीक नहीं। यह साक्षात्कार सीबीआई जाँच को प्रभावित करने का उपक्रम नहीं है? क्या इसमें दिये गए वक्तव्य मुख्य आरोपी द्वारा सीबीआई जाँच में अन्य लोगों को लपेटने और मृतक की छवि धूमिल करने का प्रयास नहीं है?

यद्यपि जाँच एजेंसियों को इस प्रकार के साक्षात्कारों से बहुत प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु इससे आरोपी को अन्य लोगों पर कीचड़ उछालने एवं मनमाने आरोप लगाने के लिए मंच तो मिलता ही है। यद्यपि यह पहला अवसर नहीं है, इससे पूर्व भी कुछ आरोपियों को इस प्रकार के मंच दिए गए। खुफिया विभाग के कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या के आरोपी और दिल्ली दंगों के मास्टरमाइंड आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन ने भी स्वयं को निर्दोष बताने के लिए टीवी चैनल का इस्तेमाल किया था। इससे कुछ कट्टरपंथियों ने उसके पक्ष में सोशल मीडिया पर कैम्पेन भी चलाया था, जिससे उसका एक प्रयोजन तो सिद्ध हो ही गया।

हमारे देश में विचारधारा विशेष के लोग अपराधियों, अभियुक्तों या आरोपियों को जाँच एजेंसी के समक्ष प्रस्तुत होने से पूर्व और कभी-कभी न्यायालयों में सुनवाई के कालखंड में भी सार्वजनिक मंच प्रदान कर उसे मदद करते रहे हैं। सुशांत राजपूत केस ने बॉलीवुड के कड़वे सत्य को दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दिया है। इस केस से बॉलीवुड में कुछ लोगों के शोषण, दमन और क्रूर एकाधिकार की परतें उघड़ने लगी हैं। लोग यह जानना चाहते हैं कि कलाकारों में बाहरी और भीतरी का भेद क्यों हैं? क्यों हमारे देश का मनोरंजन उद्योग, मनोरंजन की आड़ में देश विरोधी नैरेटिव सेट करता है? हिन्दी सिनेमा वाले क्यों हिन्दी भाषा और हिन्दू संस्कृति को ही टारगेट करते हैं? वहाँ एक विचारधारा, एक धर्म, खास परिवारों से बाहर के आदमी को पनपने से पहले ही मरने पर विवश कर दिया जाता है? वर्षों बाद अब जाकर इस मायावी दुनियाँ की सच्चाई लोगों तक आना प्रारंभ हुई है।

पता नहीं सुशांत केस में कितने साक्ष्य अबतक बचे होंगे और कितने जाँच एजेंसियों के हाथ लगेंगे। उम्मीद है कि इस युवा अभिनेता को उसकी मृत्यु के बाद ही सही, न्याय तो मिल पायेगा। अब जबकि नई-नई बातें सामने आ रही हैं, लोगों की जिज्ञासाएँ भी बढ़ती जा रही हैं। आरोपी रिया चक्रवर्ती के केस में केन्द्रीय जाँच एजेंसी के साथ-साथ नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो एवं प्रवर्तन निदेशालय भी जाँच कर रहे हैं। इस साक्षात्कार में जो प्रश्न पूछे गए वे इन तीनों जाँच एजेंसियों द्वारा संभावित प्रश्नों के उत्तर थे। इन प्रश्नों में एक भी प्रश्न ऐसा नहीं था जिसे सुनकर संदिग्ध आरोपी ने असहजता का अनुभव किया हो या उसे कुछ सोचने पर विवश किया हो। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई निर्दोष बालिका जानबूझकर इस केस में फँसाई जा रही हो!

इस साक्षात्कार से एक बात और स्पष्ट हो जाती है कि देश में कुछ लोग हैं जो भारतीय न्यायपालिका और केंद्रीय जाँच एजेंसियों के कार्य में बाधा पहुँचाने और उनकी विश्वसनीयता को संदिग्ध करने पर तुले हैं। अन्यथा किसी आरोपी के अपराधी या निर्दोष होने का निर्णय हो जाने से पहले ही उसकी छवि गढ़ने के लिए मंच सजाना या उसके प्रति सहानुभूति उत्पन्न करने की चेष्टा दृष्टिगोचर नहीं होती।

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