
कृषि विवि में हुए घोटाले के मुख्य आरोपी हैं शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी
पटना । भ्रष्टाचार से कभी समझौता नहीं करने का एलान करने वाली एनडीए सरकार ने बिहार के एक बड़े नौकरी घोटाले के आरोपी को अपना शिक्षा मंत्री बनाया है। बिहार के नये शिक्षा मंत्री बने मेवालाल चौधरी पर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति रहते नौकरी में भारी घोटाला करने का आरोप है। उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज है। रामनाथ कोविंद जब बिहार का राज्यपाल थे तब उन्होंने मेवालाल चौधरी के खिलाफ जांच करायी थी और उनपर लगे आरोपों को सच पाया था। यह जांच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर हुई थी। मेवालाल चौधरी पर सबौर कृषि विश्वविद्यालय के भवन निर्माण में भी घोटाले का आरोप है।
सबसे बड़ी बात यह है कि मेवालाल चौधरी के इस घोटाले के खिलाफ सत्तारूढ़ जदयू के नेताओं ने भी आवाज उठायी थी। विधान परिषद में जदयू विधान पार्षदों ने मेवालाल चौधरी के खिलाफ हंगामा ख़ड़ा कर दिया था। भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने भी इसे जोरशोर से उठाया था। सुशील मोदी सबूतों का पुलिंदा लेकर तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोबिंद से भी मिले थे। इसके बाद जांच हुई और जांच में पाया गया कि मेवालाल चौधरी ने कृषि विश्वविद्यालय का कुलपति रहते बड़ा घोटाला किया है। यह घोटाला 161 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति में हुआ था। हालांकि मेवालाल चौधरी सत्ताशीर्ष के बेहद करीबी रहे हैं। लिहाजा, उनके खिलाफ कार्रवाई होने में बहुत देर हुई। बाद में 2017 में उनके खिलाफ निगरानी विभाग ने एफआईआर दर्ज की। तब तेजस्वी यादव के खिलाफ भी भ्रष्टाचार का मामला गरम था। मजबूरन जदयू को मेवालाल चौधरी के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी। वर्ष 2017 में मेवालाल चौधरी को जदयू ने पार्टी से निलंबित भी कर दिया था।
मेवालाल चौधरी के खिलाफ पहले सबौर थाने में प्राथमिकी दर्ज हुई थी। सबौर थाने की प्राथमिकी संख्या 35/2017 में मेवालाल चौधरी नौकरी घोटाले के मुख्य अभियुक्त हैं। इसके बाद यह मामला निगरानी को ट्रांसफर कर दिया गया। निगरानी विभाग ने मेवालाल के खिलाफ केस संख्या-4/2017 दर्ज कर रखा है। केस दर्ज हुए अब तीन साल से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन आज तक मेवालाल के खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं की गयी। कहा जाता है कि मेवालाल चौधरी का रसूख इतना बड़ा है कि उनके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत जुटा पाने में निगरानी विभाग विफल रही।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय में वर्ष 2012 में हुई 161 सहायक प्राध्यापक सह जूनियर साइंटिस्टों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा सामने आया है। यूनिवर्सिटी में योग्य अभ्यर्थियों की बजाय अयोग्य अभ्यर्थियों की नियुक्ति कर ली गई। इस घोटाले को बिहार का व्यापम घोटाला कहा गया। नियुक्ति प्रक्रिया में धांधली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विवि प्रबंधन ने बगैर राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) पास किए डेढ़ दर्जन से अधिक अभ्यथियों को नौकरी दे दी।
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