
नई दिल्ली। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने शुक्रवार को कहा कि भारत से लगी भूमि सीमाओं की सुरक्षा चिंता का विषय है लेकिन भारत भी समुद्र और महासागरों की ओर लगातार बढ़ती रुचि के साथ अपनी समुद्री सीमाओं पर भी नजर रखे है। हिन्द महासागर क्षेत्र में इस समय विभिन्न अभियानों के तहत क्षेत्रीय बलों के 120 से […]
नई दिल्ली। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने शुक्रवार को कहा कि भारत से लगी भूमि सीमाओं की सुरक्षा चिंता का विषय है लेकिन भारत भी समुद्र और महासागरों की ओर लगातार बढ़ती रुचि के साथ अपनी समुद्री सीमाओं पर भी नजर रखे है। हिन्द महासागर क्षेत्र में इस समय विभिन्न अभियानों के तहत क्षेत्रीय बलों के 120 से अधिक युद्धपोत हैं। सहयोगी राष्ट्रों के साथ प्रशिक्षण बढ़ाने पर सीडीएस बिपिन रावत ने जोर देते हुए कहा कि भारत भी अतिरिक्त क्षेत्रीय शक्तियों के साथ संलग्न होने और क्षेत्रीय संपर्क में सुधार करते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को संरक्षित करने की मांग करेगा।
ग्लोबल संवाद सुरक्षा शिखर सम्मेलन में भारत-प्रशांत क्षेत्र के महत्व पर प्रकाश डालते हुए सीडीएस रावत ने कहा कि क्षेत्र के अधिकांश देश बेहतर कनेक्टिविटी और नीली अर्थव्यवस्था के दोहन के माध्यम से आर्थिक लाभांश प्राप्त करना चाहते हैं, जिसके लिए बुनियादी ढांचा एक पूर्व-आवश्यकता है। भू-राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए अतिरिक्त क्षेत्रीय शक्तियों ने अपने-अपने देशों के बुनियादी ढांचे का विकास करने के लिए निवेश करने में नई दिलचस्पी दिखाई है। ग्लोबल डोमिनेशन के लिए इंडो पैसिफिक को शामिल करते हुए सीडीएस रावत ने कहा कि वर्तमान में विभिन्न अभियानों के समर्थन में हिन्द महासागर क्षेत्र में अतिरिक्त-क्षेत्रीय बलों के 120 से अधिक युद्धपोत तैनात हैं लेकिन अब तक इस क्षेत्र में बड़े विवाद के बावजूद शांतिपूर्ण माहौल बना हुआ है।
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धा के साथ चीन ने अर्थव्यवस्था और सैन्य वृद्धि ने काफी दिलचस्पी दिखाई है। सीडीएस ने इस बात पर भी जोर दिया कि सैन्य क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल विनाश के लिए नहीं बल्कि समाधान के लिए होना चाहिए। इसलिए सुरक्षा के प्रति हमारे दृष्टिकोण को एकतरफा से बहुपक्षीय मोड में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है, जो भविष्य को मजबूत करने के लिए साझेदार देशों के साथ प्रशिक्षण जुड़ाव को बढ़ाता है। उन्होंने आगे कहा कि देशों के बीच नौसैनिक प्रतिस्पर्धा के कारण शासन और सुरक्षा निरंतर खतरे में हैं। शांति, समृद्धि और संप्रभुता की रक्षा करने के लिए हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम इस क्षेत्र के सुरक्षा आयाम पर हर समय संचार की एक समुद्री रेखा को सुरक्षित रखें।
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