
मोतिहारी पुलिस: सवाल- मटियारिया में गरजी बंदूके, रघुनाथपुर में हो गयी क्यों खामोश ?
सागर सूरज
मोतिहारी। पुलिस की उपस्थिती मे भू-माफ़ियों और अपराधियों (Criminal) के द्वारा रघुनाथपुर (Raghunathpur) के बालगंगा (Balganga) मे गोलीबारी की घटना एक तरफ भू-माफियाओं एवं अपराधियों के बढ़ते मनोबल को दर्शाता है, वही यह घटना ज़िले के कुछ थानों एवं अधिकारियों के साथ भूमि व्यवसाय से जुड़े अपराधियों के नापाक गठजोड़ की ओर भी इंगित करता है।
एक तरफ नगर थाना (Town Police Station) अब तक शांत है तो वही मुफ़्फ़सिल एवं रघुनाथपुर थाना (Raghunathpur Police Station) क्षेत्रों से लगातार पुलिस एवं भू-माफियाओं के गठजोड़ की खबरें आ रही है, इन क्षेत्रों मे अपराधियों का मनोबल इतना बढ़ गया है कि अपराधी पुलिस के सामने फायरिंग कर ग्रामीणों को जख्मी कर देते है और पुलिस तमाशबीन बनी रहती है।
पुलिस का कहना है कि मामले मे अंचलाधिकारी (CO) एवं पुलिस के उपस्थिती मे पैमाईसी होनी थी, इसी बीच एक पक्ष ने फायरिंग शुरू कर दी, जिसमे दो लोग जख्मी हो गए। अब सवाल आता है कि पुलिस की उपस्थिती मे भी अपराधियों एवं भू- माफियाओं (Land Mafia) की ये हालत है तो इनकी अनुपस्थिति मे आम आदमी इन इलाकों मे कितना सुरक्षित है, इसका सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है। वैसे भी रघुनाथपुर का साहनी गैंग पूर्व से ही अपने अपराधों के लिए सुर्खियों मे रहा है, संगीन अपराधों के आरोप मे कई अभी भी मोतिहारी जेल मे बंद है।
घटना के दिन फायरिंग (Firing) के दरम्यान पुलिस के दवारा प्रतीकार नहीं करना यह प्रमाणित करता है कि या तो संबन्धित अधिकारी ऐसे मामलों को हैंडल करने के योग्य नहीं थे या फिर माफियाओं को मालूम है कि वे फिर अन्य मामलों की तरह जांच आदि के बहाने सदर पुलिस अधिकारियों को मेल मे लेकर बच निकलेंगे या अगर जेल भी जानी पड़ी तो करोड़ों की भूमि तो मिलेगी और जमीनी विवाद दिखा कर इसको असली आपराधिक मामलों की श्रेणी से अलग करवा कर न्यायालय (Court) से भी लाभ ले लिया जाएगा।
सवाल पूछा जा रहा है कि मटियारिया मे जब पुलिस वालों पर असमाजिक तत्वों ने एक हत्या के बाद पत्थर फेंका तो पुलिस की बंदूकें गरजने लगी, लेकिन इसी पुलिस के सामने कुछ शांति पसंद लोग अपनी संपति भू-माफियाओं से बचाने का प्रयास कर रहे थे तो पुलिस अपराधियों के बंदूकों की जवाब बदूक से क्यों नहीं दे सकी।
क्या पुलिस को दिये जाने वाले हथियार सिर्फ पुलिस के खुद के रक्षा के लिए होते है ?
बता दे कि पूर्व मे जिले मे अपहरण उद्धयोग चरम पर था। इस काम मे जोखिम भी बहुत था और पैसे भी बहुत कम थे। अब सभी अपराधी भूमि के कारोबार से जुड़ चुके है, इसमे पुलिस के सहयोग की भी पूरी संभावना हो गयी क्योकि अपराधियों द्वारा किसी भी झूठी बात को आधार बना कर किसी भी भूमि पर दावा कर दिया जा रहा है और पुलिस दप्रस 144 लगाने की बात कह कर असली मालिक को ही जमीन पर जाने से रोक देती है। बाद मे या तो असली मालिक को इन अपराधियों से लाखों रुपया नुकसान सहते हुये जमीन को बेच देना पड़ता है या इस तरह के हमलो का शिकार होना पड़ता है। पुलिस (Police) के समक्ष अंचल रसीद, दस्तावेज़ एवं दाखिल कब्जा प्रमाण पत्र की भी कोई महत्व नहीं है, कई मामलों मे तो अंचलाधिकारी भी थाना के राह पर ही चलना पसंद करते है। मुफ़्फ़्सील थाना (Muffasil Police Station) परिसर एवं सदर के एक वरीय पुलिस अधिकारी के कार्यालय के आस-पास जमीन के कारोबार से जुड़े चंद बदनाम चेहरों को कभी भी देखा जा सकता है। जमला (Jamla) , बरियारपुर (Bariyarpur) और लखौरा (Lakhaura) रोड मे भी इसी तरह के मामलों मे असली जमीन मालिक थानों एवं वरिये अधिकारियों के दफ्तर का चक्कर काट-काट कर थक चुके है।
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