कामचोर और लुटेरा चिकित्सक कौन ? चिकित्सकों की जान सांसत में

कामचोर और लुटेरा चिकित्सक कौन ? चिकित्सकों की जान सांसत में

Reported By SAGAR SURAJ
Updated By RAKESH KUMAR
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चिकित्सक तो बेचारें एक कठपुतली की तरह होता है जो इन लोगों के इशारें पर नाचने को मजबूर होता है | इसके भी कई कारण है | एक तो नौकरी बचाने का संघर्ष, दुसरे पढ़े लिखे होने के कारण तू-तू मै मै या विवादों से बचने का प्रयास और विशेष कर बाहरी होना |

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सागर सूरज

मोतिहारी: नीतीश सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यों को लेकर भले भी अपना पीठ खुद ही थपथपाते नजर आ रही है लेकिन विभाग की अब भी हालत ये है की करोड़ों रूपए खर्च करके भी आम लोगों का भरोसा सरकार नहीं जीत पा रही है। ज्यादातर लोग आज भी निजी क्लीनिकों के भरोसे ही है।

ज्यादातर अस्पतालों को इलाज़ कम ‘रेफेरिंग’ सेण्टर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है और रेफ्फर होने के बाद बड़े शहरों के पारस जैसे विवादास्पद अस्पतालों के ट्रैप में गरीब मरीज कुछ इस तरह फंस जाते है कि अस्पताल से मुक्ति मिलते-मिलते वे कर्जदारों के जीवन भर कब्जे में आ जाते है | साथ ही सरकार के करोड़ों रूपये का वारा- न्यारा भी इसी बहाने अस्पतालों में होता रहता है |

अगर आरोपों पर भरोसा करें तो इसके लिय चिकित्सक कम अस्पतालों की व्यवस्था ज्यादा दोषी है | अस्पताल की व्यवस्था ये चाहती है कि अस्पताल में गंभीर मरीजों की भर्ती नहीं लिया जाए जबकि ज्यादतर अस्पतालों विशेष कर सदर अस्पतालों में गंभीर बीमारियों और रोगों के इलाज़ और जाँच की सारी सुविधाएँ उपलब्ध है | गंभीर मरीजों के रेफर से कई फायदें है जैसे मरीज कम तो लोड कम, खर्चे कम और बड़े शहरों के अस्पतालों से आने वाले कमीशन अलग से | इसमें कुछ बेईमान चिकित्सक भी शामिल होते है जो रेफेरिंग इनकम पर ज्यादा भरोसा करते है |

अगर आप स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की जनक की बात करें तो एक मात्र नाम आयेगा जिला स्वास्थ्य समिति के  डीपीएम, डी एएम और पीएचसी/सीएचसी/सदर पीएचसी/ सदर हॉस्पिटल के स्वास्थ्य प्रबंधक का ! चाहें, वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, सदर अस्पतालों में हो सभी जगह इनकी ही चलती है। चिकित्सक तो बेचारें एक कठपुतली की तरह होता है जो इन लोगों के इशारें पर नाचने को मजबूर होता है | इसके भी कई कारण है | एक तो नौकरी बचाने का संघर्ष, दुसरे पढ़े लिखे होने के कारण तू-तू मै मै या विवादों से बचने का प्रयास और विशेष कर बाहरी होना |

उल्लेखनीय है कि कॉन्टैक्ट पर हुई बहाली के कारण अधिकांश केन्द्रों पर ये लोग अपने ही गृहजिले में स्थापित हो जाते हैं । जो लगभग 10 - 15 साल से एक ही जगहों पर अपना सेवा देते हैं या उसी गृहजिला के रहने के कारण , आरोप है कि वे लोग अपना दबंगई भी समय - समय पर दिखाते रहते है ।

और उसके कार्य क्षेत्र में रहने के कारण। ये डीपीएम , मैनेजर वैगेरह, स्थानीय लोगों के संपर्क रह कर सारे चिकित्सकों और कभी कभी मरीजों के परिजनों पर , यहाँ तक की सिविल सर्जन  तक पर हमेशा दबाब बनाकर रखते हैं और अपने गैर जरूरी बातों को मनवा भी लेते है।

 

बहुत ऐसे डॉक्टर होते हैं जो सच में अच्छे से काम करना चाहते हैं । पर , ये मेडिकल माफिया लोग अधिकतर मामलों में दख़ल डालते रहते हैं । चिकित्सक बाहर से होने के कारण कई बार उनकी बातों को मान लेते है और वरीय अधिकारियों और मरीजों के कोपभाजन के शिकार भी होते रहते है।

बताया गया कि डीपीएम, डैम, मैनेजर वैगेरह का काम है, हॉस्पिटल के सभी व्यवस्था पर ध्यान देना, लेकिन बिना घूसखोरी का कोई फाइल आगे बढ़ ही नहीं सकता है। इन सबका साइड इनकम लाखों में रहता है। स्वाथ्य मंत्री , मुख्य मंत्री, जिलाधिकारी को यदि सही मायने में हेल्थ डिपार्टमेंट को सुधार करना है तो, इन मेडिकल माफिया डीपीएम, डैम, हेल्थ मैनेजर, सिविल सर्जन के बड़ा बाबू के घर पर विजिलेंस द्वारा छापामारी करवाया जा सकता है। फिर अकूत संपत्ति का राज खुद ही परत दर परत खुलते चले जायेंगे । भ्रष्टाचार में ये लोग पीएचसी और सिविल सर्जन के बीच का महत्वपूर्ण कड़ी का भी काम करता है,

बताया गया कि स्वास्थ्य विभाग को अगर भ्रष्टाचार मुक्त करना है तो सबसे पहले राज्य स्वास्थ्य समिति, और जिला स्वास्थ्य समिति को भंग कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि भ्रष्टाचार की गंगोत्री यही से बहती है जिसमे समय-समय पर सभी लोग अपना हांथ भी धोते रहते है ।

दवाई का अभाव होना, हॉस्पिटल संबंधित सारा व्यवस्था करना इन्ही सबके हाथ में होता है, लेकिन चिकित्सकों को तो ठीक से एक कुर्सी  तक नसीब नहीं होता हैं । लेकिन इन सबके चैंबर में एसी लगा मिलेगा, सारा आधुनिक सुविधा से सुसज्जित इनका चैंबर आपको मिलेगा।

 हॉस्पिटल में जनरेटर चले ना चले लेकिन जबरदस्ती मेडिकल ऑफिसर द्वारा उनके रजिस्टर पर 10 से 20 घंटे जनरेटर चला इसपर साइन करवाया जाता है। यदि डॉक्टर इनका विरोध किए तो ऊपर से नीचे तक का आदमी उक्त चिकित्सक को कौआ के तरह नोच खसोट लेगा। और उनकी नौकरी तक को किसी न किसी विधि खतरे में डाल देगा।

अभावों के बीच कार्य करने के बाद भी चिकित्सकों को चोर-लूटेरा, डकैत कामचोर डॉक्टर्स आदि सामान्य विशेषणों से नवाजा जाता है |

बताया गया कि सबसे बड़ी चुनौती है, नर्सिंग स्टाफ एवं पैरामेडिकल स्टॉफ , को होती है , संबंधित हॉस्पिटल के मैनेजर के द्वारा सबसे ज्यादा प्रताड़ित होने वाले ये लोग होते हैं ।  इन लोगों के पास भी कोई रास्ता नहीं होता हैं । आरोप है कि बस, किसी प्रकार से सहन कर काम कर लेना इनकी मजबूरी हैं ? अपना सैलरी तक लेने के लिए इंन सबको घुस देना पड़ता है।

बिहार स्वास्थ्य विभाग के द्वारा, जो दवाइयां तमाम स्वास्थ्य केंद्रों पर ,आपूर्ति किया जाता हैं उसकी भी कई कहानी है। आरोप है कि कई दवाइयों के नाम पर बेसन या सत्तू  होता है । हो हल्ला होने पर कई बार सप्लायर पर करवाई भी होती रही है।

 

 

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