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फर्जी रूप से बहाल इस लेखा पाल को क्यों बचाना चाहते है जिला कृषि पदाधिकारी ?
बहाली रद्द करने की फाइल लाल फीताशाही की हुई शिकार
सागर सूरज
मोतिहारी : जिले के कृषि विभाग में भ्रष्टाचारियों का “इको सिस्टम“ निचे से ऊपर तक इतना मजबूत है कि विभाग के ‘कमासुत पुत्रों’ को अधिकारी छोड़ना ही नहीं चाहते | 2015 मे ही अवैध तरीके से बहाल कृषि विभाग का लेखा पाल प्रशांत कुमार के बहाली के मद्देनजर सभी जांचों में अवैध साबित होने के बाद भी अभी तक उसकी नियुक्ति रद्द नहीं की जा सकी है |
आरोप है कि प्रशांत कुमार ने रेगुलर सत्र में एम.कॉम की पढाई कर रहा था, उसी समय के अनुभव प्रमाणपत्र में कुरियर कंपनी में साढ़े पाँच घण्टे का अनुभव प्रमाणपत्र को जमा करते हुये साथ ही बिना चार्टर अकाउंटेंट की डिग्री प्राप्त किये इस डिग्री के बल पर मेघा सूची में सबसे ऊपर आ गया |
यही नहीं प्रथम से लेकर अंतिम मेघा सूची में भी प्रशांत के उम्मीदवारी को यह कहते हुए रद्द कर दिया गया था कि अनुभव प्रमाण नियमावली के अनुसार नहीं है | लेकिन बाद में फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र एवं फर्जी चार्टर्ड अकाउंटेंट की डिग्री के बल पर मेघा सूची में सबसे ऊपर आ कर अवैध तरीके से लेखा पाल जैसे महत्वपूर्ण पद पर अपनी बहाली करवाने में प्रशांत कुमार सफल रहा |
बहाली छः सदसीय कमिटी ने की थी जिसमें तत्कालीन परियोजना निदेशक आत्मा लक्षमण प्रसाद और तत्कालीन जिला कृषि पदाधिकारी सुधीर कुमार बाजपाई सहित अन्य लोग थे |
चौकाने वाला तथ्य तो ये है कि जिलाधिकारी के द्वारा उच्च स्तरीय जांच सहित तीन अलग अलग जांच में ये सारे आरोप ना केवल सही साबित हुये बल्कि कृषि निदेशक अभान्शु सी जैन ने जिलाधिकारी को फर्जी रूप से बहाल लेखा पाल प्रशांत कुमार का वेतन बंद करते हुए प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश यह कहते हुए दिया कि जिलाधिकारी ही आत्मा शासी परिषद के अध्यक्ष भी है |
यह आदेश आये हुये भी लगभग एक माह हो गये परन्तु अभी तक इसका अनुपालन नहीं हो सका | हालांकि सूचना अनुसार 14 जनवरी, 2023 को इसके मुताल्लिक जिलाधिकारी की अध्यक्षता में नियोजन इकाई की एक बैठक को आहूत की गयी फिर भी अभी तक फर्जी रूप से बहाल लेखा पाल अपने पद पर कायम है और कृषि विभाग के “कमासुत पुत्र“ की भूमिका का बेहतर संपादन कर रहा है |
सबसे रोचक तथ्य तो ये है कि गत 14 अक्टूबर, 2022 को जिलाधिकारी द्वारा गठित एक तीन सदस्यीय कमिटी ने 11 बिंदुओं पर अपनी रिपोर्ट देते हुये इस बहाली को फर्जी करार दिया, परन्तु कृषि विभाग के 'कमासुत' पुत्र होने के नाते जिला कृषि पदाधिकारी चन्द्र देव प्रसाद ने मामले को और लिंगर करने की नियत से उक्त रिपोर्ट में उच्च स्तरीय जांच की पैरवी कर दी | नतीजतन, पुनः जांचों में मामला फंस गया परन्तु अब जिलाधिकारी का उच्चस्तरीय जाँच भी सामने आ चुकी है और विभाग के निदेशक द्वारा कार्रवाई का आदेश भी आ गया है, परन्तु सभी रिपोर्ट अब भी फाइलों में कैद है |
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