
क्या ‘समाधान यात्रा’ में केन्द्रीय विश्वविद्यालय की समस्या का होगा समाधान ?, किसानों को मिलेगा न्याय
मुख्यमंत्री का यह पन्द्रहवां यात्रा , कई घोषनाये अब भी अधर में

सागर सूरज
मोतिहारी: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के “समाधान यात्रा’ को लेकर चंपारण वासियों के बीच कई तरह की आशाएं पुनः जागृत होने लगी है | नीतीश कुमार का यह पन्द्रहवां यात्रा है | विधानसभा चुनाव से पूर्व जुलाई 2005 से शुरू उनकी पहली ‘न्याय यात्रा’ में उन्होंने लोगों से न्याय की गुहार लगाई और चुनाव भी जीते |
मोतिहारी में 15 फ़रवरी को समाधान यात्रा के माध्यम से वे गाँव के अलग -अलग जगहों पर घूमेंगे और लोगों से मिलेंगे और कुछ ख़ास विकास से जुड़े योजनाओं का अवलोकन भी करेंगें ताकि उसकी परेशानियों का त्वरित समाधान करके कार्यों में तेज़ी लायी जा सके |
समाधान यात्रा से पूर्व उन्होंने दिसम्बर 2021 में ‘समाज सुधार अभियान यात्रा’ शुरू किया था, जिसमे लोगों को जागृत करते हुये नशा बंदी, दहेज़ प्रथा, बाल विवाह जैसे मामले उछाले गये थे |
सनद रहे कि मुख्यमंत्री के सभी यात्राओं की शुरुआत चंपारण से ही होती है और अपने चंपारण प्रवास के दरम्यान मुख्यमंत्री समय- समय पर विकास योजनाओं की घोषणा भी करते रहे है | पूर्वी चंपारण जिले में पूर्व के यात्राओं में उन्होंने कल्याणपुर प्रखंड क्षेत्र के माधोपुर स्थित ‘मोर गाँव’ और मेहसी के शिप उद्योग के विकास का भी आश्वासन दिया था | मेहसी का शिप उद्योग तो बंदी के कगार पर पहुँच ही गया माधोपुर में बहुतायत की संख्या में पाए जाने वाले मोर पक्षी अब कहीं देखने को भी नहीं मिलते |
सरोतर झील और केसरिया का बौद्ध स्तूप के विकास का आश्वासन दिया गया था, परन्तु ये सभी घोषनाये अब तक फाइलों में ही कैद है | नीतीश कुमार के प्रयास से मोतिहारी को एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय तो मिला लेकिन आज तक उसकी जमीन नहीं मिल सकी |
केन्द्रीय विश्व विद्यालय को लेकर 302 एकड़ भूमि प्रस्तावित थे, परन्तु अपने स्थापना के सात साल बीत जाने के बाद भी जिला प्रशासन महज़ 136 एकड़ भूमि ही विश्वविद्यालय प्रबंधन को उपलब्ध करवा सकी | 165 एकड़ भूमि जो अभी तक विश्विद्यालय प्रशासन को नहीं मील सकी उसमे स्वामित्व को लेकर विवाद तो है ही साथ ही मिले हुये 136 एकड़ भूमि में भी स्वामित्व को लेकर गंभीर विवाद है | ऐसे में प्रशासन अब विवादित जमीनों को छोड़ कही अन्यत्र भूमि लेने पर भी विचार कर रही है |
किसानों की अगर माने तो जिला प्रशासन के कुछ अधिकारी विश्वविद्यालय के जमीन अधिग्रहण मामले में कई तरह के आरोपों को झेल रहे है | जमीन किसी और का और पेमेंट किसी और को करने के मामले में कर्मचारी तक जेल गये और अमिन आदि को नौकरी से हटा गया | एक भूमि दाता सुख देव साह के बकाया राशि 3 करोड़ 28 लाख आज तक नहीं मिला | रुपया कोई और ले गया और प्रशासन दवारा दायर रुपया वसूली नीलाम का मुकदमा सुख देव साह झेल रहे है | इतनी अनियमित्तताओं के बीच जब अधिग्रहण कार्य हो रहा है तो सवाल तो उठेंगे ही |
किसान बिभूति सिंह ने कहा कि 102 एकड़ जमीन का पेमेंट रैयतों को नहीं मिला लेकिन जमीन विश्वविद्यालय को दे दी गयी और विश्वविद्यालय के नाम जमा बंदी भी कायम हो गयी | टाइटल को लेकर तत्कालीन जिलाधिकारी ने हम लोगों के फाइल को ‘लारा’ नामक एक कमिटी को भेज तो दिया लेकिन वहां आज तक कोई अधिकारी इस मामले को देख भी नहीं सके ऐसे में कैसे माना जाए प्रशासन विश्वविद्यालय की जमीन को लेकर संजीदा है |
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और वर्तमान में हो रहे सर्वे के लिए गठित टीम से इन भूमियों के स्वामित्व निर्धारण कर जमीनों को विश्वविद्यालय को हस्तानान्तरण कर देना चाहिए |
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