#inhuman acts: थैले में बच्चे का शव रखकर बस में 150Km सफर, हॉस्पिटल कर्मी ने दिखाई अमानवीय कृति

#inhuman acts: थैले में बच्चे का शव रखकर बस में 150Km सफर, हॉस्पिटल कर्मी ने दिखाई अमानवीय कृति

मजबूर पिता ने बताया कैसे कंडक्टर और सवारी की नजरों से बचकर पहुंचे जबलपुर से डिंडौरी

Reported By BORDER NEWS MIRROR
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कचरा गाड़ी, हाथ ठेला, खाट, बाइक और अब थैला । डिंडौरी मे नवजात बेटे का शव थैले में ले जाने के दृश्य ने एक बार फिर सरकारी सिस्टम की नाकामी सामने ला दी। आखिर एक पिता को इस तरह अपने बच्चे का शव क्यों ले जाना पड़ा? बच्चे के शव को थैले में रखकर किस तरह पिता ने जबलपुर से डिंडौरी तक का सफर तय किया?

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कचरा गाड़ी, हाथ ठेला, खाट, बाइक और अब थैला । डिंडौरी मे नवजात बेटे का शव थैले में ले जाने के दृश्य ने एक बार फिर सरकारी सिस्टम की नाकामी सामने ला दी। आखिर एक पिता को इस तरह अपने बच्चे का शव क्यों ले जाना पड़ा? बच्चे के शव को थैले में रखकर किस तरह पिता ने जबलपुर से डिंडौरी तक का सफर तय किया?

बेबस पिता का नाम है सुनील धुर्वे । उनका दर्द यूं सामने आया- वो हमारे लिए कलेजे का टुकड़ा था। हम ही जानते हैं कि कैसे आंसुओं को पत्थर बनाकर अपने बच्चे की लाश को झोले में रखकर सीने से चिपकाए रहे।

...लेकिन सरकारी महकमे की अपनी सफाई है, अपने तर्क हैं। जबलपुर के जिस सरकारी मेडिकल कॉलेज में नवजात का इलाज हुआ, वहां के डॉक्टरों का कहना है कि नवजात के पिता उसको जिंदा जबरदस्ती उसे डिस्चार्ज कराकर ले गए थे।

नवजात के पिता का कहना है कि हम वहां उसका इलाज कराने ले गए थे। उसकी मौत हो गई थी, इसलिए हम उसे लाए। अगर नवजात जिंदा होता तो उसे थैले में कैसे डाल लेते? हम कम पढ़े-लिखे जरूर हैं, लेकिन हैं तो इंसान ही ।

नवजात के बेहतर इलाज के लिए जबलपुर ले गए थे

सुनील धुर्वे की पत्नी जमना मरावी ने 13 जून को डिंडौरी के जिला अस्पताल में एक बेटे को जन्म दिया। नवजात का वजन काफी कम था, इसलिए उसे बेहतर इलाज के लिए नेताजी सुभाष मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल जबलपुर के लिए रेफर कर दिया गया। एम्बुलेंस से बच्चे को वहां भेजा गया। मगर बच्चा काफी कमजोर होने की वजह से बचाया नहीं जा सका और अगले ही दिन 14 जून को उसकी मौत हो गई।

इसके बाद सुनील ने अस्पताल प्रशासन से वापस घर तक छोड़ने के लिए एम्बुलेंस की मांग की। कई बार गुहार लगाई मगर एम्बुलेंस या शव वाहन कुछ भी उपलब्ध नहीं कराया गया। इसके बाद उसने नवजात के शव को झोले में ही डालकर अस्पताल से चल पड़े।

कंडक्टर को पता न चले इसलिए झोले में रखा शव

सुनील और उनका परिवार पेशे से खेतिहर मजदूर है। सुनील की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उनके पास बस के किराया देने भर के ही पैसे थे। सुनील के बड़े भाई अघन धुर्वे भी सुनील के साथ ही थे। दोनों ने मीडिया को पूरा घटनाक्रम बताया...

एक लाचार मां जो अपने नवजात का बस मृत शरीर देख सकी

नवजात की मां जमना बाई अभी भी डिंडौरी के जिला अस्पताल में भर्ती है। सवाल पूछते ही वो खुद को संभाल नहीं पाई और सिसक उठी। एक मां जिसका बच्चा उसके सामने तो जिंदा गया था, मगर अंतिम बार उसे तब देखा जब लोग दफनाने के लिए ले जा रहे थे। उन्होंने बताया कि डिंडौरी से जबलपुर ले जाने का उन्हें पता है। 108 नंबर एम्बुलेंस से लेकर गए थे। इसके बाद का मुझे कुछ पता नहीं था। जब बच्चे को दफनाने के लिए लोग ले जा रहे थे, तब मुझे ये सब बात पता चली। इतना बोलते ही वो सिसक-सिसककर रोने लगीं।

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