बिगनी मलाहीन : समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाई, कभी चेहरा नहीं मिलता, कभी दर्पन नहीं मिलत
सागर सूरज
मोतिहारी मे लोकसभा चुनाव है जाहीर है तनाव है | जात – पात की तनाव के साथ- साथ अपनी- अपनी पार्टियों के समर्थन से उत्पन्न तनाव भी चुनाव को रोचक बना रहा है | इस तनाव ने छह बार से सांसद रहे भाजपा प्रत्याशी राधा मोहन सिंह की एक ओर परेशानियाँ बढ़ा दी है, वही इनकी सियासत के कई उतार चढ़ाव भी देखने को मिल रहा है | इनकी अपनी बिछाई कई मोहरें अब बगावत पर उतार आई है |
जाहीर सी बात है चुनाव रोचक बनते जा रहे है | 21 मई को पीएम नरेंद्र मोदी भी आ रहे है ऐसे मे भाजपा समर्थक एक ओर अपने इस भगवा दुर्ग को बचाने मे लगे है, वही दूसरी ओर राधा मोहन सिंह के विकास कार्यों को गिनाते नहीं थकते | साहब के कुछ पुराने दुश्मन अब दोस्त बने है, वही कई दोस्त रन क्षेत्र से दूर अपने ही सेनाओं के धराशायी होने का इंतज़ार कर रहे है |
मैं सिर्फ पवन जयसवाल, बाबलू गुप्ता, हेना चंद्रा, अखिलेश सिंह और राजा ठाकुर जैसे योद्धाओं की बात नहीं कर रहा हूँ | इसमे कौन दुशमन थे, ये तो हमेशा अंदेशाओं पर आधारित थे, लेकिन दोस्त सभी थे | आज भी कुछ साथ मे है, तो कुछ बाहर से इस महाभारत का आनंद लेने मे ही अपनी भलाई समझते है | जाहीर सी बात है सत्ता के इस शह और मात के खेल मे बिगनी मलाहीन के कुछ सवाल वर्षों से अनुतरित है |
बिगनी बोली मोतिहारी लोक सभा क्षेत्र को अपनी रियासत समझने वाले साहब ना केवल घर घर घूम रहे है, बल्कि फोन से अंतिम बार चुनाव लड़ने का हवाला देकर मोदी के नाम जितवा देने की गुहार लगा रहे है यानि एक रियासत के इस शर्मनाक दस्तक की भी चर्चा हो रही है, क्योंकि 2019 मे भी अंतिम बार ही लड़ने का हवाला दिया गया था | बिगनी बोली - समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाई, कभी चेहरा नहीं मिलता, कभी दर्पण नहीं मिलता |
बिगनी बोली सोशल मीडिया पर ब्राह्मणों और क्षत्रियों मे एक अलग किस्म की लड़ाई छिड़ी हुई है, जिसको दबाना जरूरी है | इस लड़ाई मे दोनों पक्ष पारंपरिक रूप से भाजपा के मतदाता कहे जाते है, लेकिन इस लड़ाई से भाजपा के होने वाले नुकसान को पाटने मे साहब के लोग लग गए है |
उधर उद्योगपति राकेश पांडे भी 16 मई को मोतिहारी आकर साहब के विरुद्ध बिगुल फूंकने का ऐलान कर चुके है | साहब के तथाकथित समर्थकों द्वारा बाहुबली राजन तिवारी को भी भद्दी – भद्दी बाते कही जा रही | दोनों पक्षों के द्वारा एक दूसरे पर जो शब्दों के तीर चल रहे है, वो सीधा साहब के सीने को बेधता हुआ, उनके समर्थकों को भी जखमी कर रहा है |
बिगनी, जो इस लोकसभा क्षेत्र के शोषित पीड़ित जनता की एक प्रतीकात्मक चेहरा है, जल्दी जल्दी अपनी बीड़ी खत्म करना चाह रही थी, क्योंकि उसके हृदय के उद्गार अभी बाकी थी, बोली आजादी के बाद से इस जिले के दो पहचान थी, एक मोतीझील दूसरा चीनी मिल | चीनी मिल तो बंद ही हो गए | आजादी के बाद से मोतीझील का विकास और इसको पर्यटक स्थल बनाए जाने के नाम पर सरकारी राशियों का खूब दुरुपयोग हुआ |
2018 मे इसके विकास को लेकर खुद प्रधान मंत्री ने शिलापट्ट का उद्घाटन किया | 2022 मे साहब भी उद्घाटन किये | विकास मे किनारे - किनारे सड़क, पेड़ , बोटिंग और मोतीझील की तलहट्टी की सफाई की बात थी | दोनों फबबारे बंद है और बोटिंग भी लगे हाँथ बंद कर दिए गए |
2022 मे बुड़को के माध्यम से 65 करोड़ के लागत से फबबारे और बोटिंग की व्यवस्था की गई | उसके पहले दो करोड़ की राशि डी – सिलटींग के नाम मंगाया गया | इस तरह दर्जनों बार साहब ने अपने कार्यकाल मे इसके विकास की बात तो की लेकिन 2022 मे जिलाधिकारी शीर्षात कपिल अशोक के प्रयास से कुछ अतिक्रमण भी हटाए गए | शहर की सारी गंदगी इसी मोतीझील मे आज भी प्रवाहित होती है, प्रवाहित करने वाले ज्यादातर लोग भाजपा नेता ही है |
कभी अंग्रेज इस झील की खूबसूरती की तुलना कश्मीर के डल झील से करते नहीं थकते थे | आज साहब जैसे नेताओं की अक्रमन्यता से शहर मे विमारी का संवाहक बना हुआ है यह झील | विगनी बोली, हाँ यह जरूर है कि नेताओं को जब भी फंड की जरूरत पड़ती है, इसके विकास की गीत गाना शुरू कर देते है और फिर कुछ फंड मँगवा कर किनारे पर कुछ सफाई दिखा देते है |
यही नहीं, मोतीझील पुल पर श्रीकृष्ण नगर से एएच 42 को जोड़ने के लिए टू लेन केबल स्टे ब्रिज का मामला ढाई वर्ष बाद भी लटका है। इस पुल के निर्माण को अबतक स्वीकृति नहीं मिली है। पुल निर्माण निगम का कहना है कि डीपीआर बनाकर पथ निर्माण विभाग को भेजा गया है। वहां से ही स्वीकृति नहीं मिल रही है।
2022 के मार्च में इसके स्वीकृति की संभावना बनी थी। लेकिन, नहीं मिली। ये पूल बन जाता तो मीना बाजार मे भीड़ कम हो जाती | लेकिन इनसे ये भी संभव नहीं हुआ | केंद्र और राज्य सरकार के रूटीन विकास की योजनाओं को लेकर अपना पीठ थप-थपाते है | पिपरा कोठी की कुछ प्रोजेक्ट जरूर उनके प्रयासों का परिणाम है लेकिन सब का सब अब हाथी का दांत साबित हो रहा है | अब तीस वर्षों मे गिनाने को यही कुछ तो है |
बिगनी दूसरी बीड़ी सुलगाते हुए बुदबुदाई – काँटों से गुजर जाती हूँ, दामन को बचा कर, फूलों की सियासत से मै बेगाना नहीं हूँ | क्रमश.
Comments