लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों पर ‘जमने’ को तैयार सेना

लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों पर ‘जमने’ को तैयार सेना

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नई दिल्ली। करगिल में 18 हजार फीट ऊंची बर्फ की चोटियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने का अनुभव रखने वाली भारतीय सेना के लिए लद्दाख की खून जमा देने वाली बर्फीली पहाड़ियां कोई मायने नहीं रखतीं। चीन से तनातनी फिलहाल खत्म होती नहीं दिखती, इसलिए सेना ने ठंड के दिनोंं में भी चीनियों से मोर्चा […]
नई दिल्ली। करगिल में 18 हजार फीट ऊंची बर्फ की चोटियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने का अनुभव रखने वाली भारतीय सेना के लिए लद्दाख की खून जमा देने वाली बर्फीली पहाड़ियां कोई मायने नहीं रखतीं। चीन से तनातनी फिलहाल खत्म होती नहीं दिखती, इसलिए सेना ने ठंड के दिनोंं में भी चीनियों से मोर्चा संभालने के इरादे से खुद को तैयार कर लिया है।
लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत-चीन के बीच मई से चल रही तनातनी सैन्य, राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयास किए जाने के बावजूद फिलहाल खत्म होती नहीं दिख रही है। तीन दौर की सैन्य वार्ताओं में दोनों देशों के बीच बनीं सहमतियां फिलहाल अभी तक धरातल पर नहीं उतरी हैं। वैसे भी गर्मियों में यहां का तापमान 40 डिग्री और सर्दियों में -29 डिग्री तक हो जाता है। इसलिए आगे आने वाली ठंड मेेंं भी भारतीय सेनाओं ने लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों पर मोर्चा संभालने के लिए अपनी तैयारी और तैनाती शुरू कर दी है। 
एलएसी पर लंबी तैनाती के लिए तैयारी के लिहाज से रक्षा मंत्रालय ने भी सैनिकों के लिए खाद्य सामग्री, आवास, ईंधन, विशेष कपड़े, जूते के साथ ही अतिरिक्त सैनिकों और वाहनों की गणना करके इंतजाम शुरू कर दिए हैंं। दरअसल ठंड के दिनों में बर्फबारी शुरू होते ही चार महीनों के लिए यानी अक्टूबर के अंत तक सड़क मार्ग बंद हो जाएंगे, इसलिए इससे पहले ही सैनिकों के लिए सारे संसाधन जुटाने होंगे। हालांकि आकस्मिक स्थिति में वायुसेना के परिवहन विमानों की सेवाएं ली जा सकेंगी लेकिन इन उड़ानों में भी समय की पाबंदी है। दोपहर से पहले विमानों को लेह से बाहर उड़ना पड़ता है क्योंकि दुर्लभ ऑक्सीजन के साथ तापमान में बढ़ोत्तरी विमानों के इंजन को प्रभावित करती है।
लद्दाख में चीन से लगती हुई 856 किमी. की सीमा पर मई से पहले भारतीय सेना की एक डिवीजन लेह के पास तैनात थी और इसी के सैनिक सियाचिन से लेकर चुमुर तक के पूरे इलाके की निगरानी करते थे। मई में तनाव शुरू होने के तुरंत बाद ही उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश से दो माउंटेन डिवीजनों को लद्दाख में तैनात किया गया था। चीन की तरफ से भारी संख्या में सैनिकों की तैनाती के जवाब मेंं भारतीय सेना ने फिर एक और डिवीजन तैनात कर दी। इस डिवीजन की तैनाती के बाद सिर्फ पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना की कुल चार डिवीजन हो गई हैं। एक डिवीजन मे 15-16 हजार सैनिक होते हैं। 
कुछ डिवीजन के सैनिकों को लद्दाख सीमा के जमीनी इलाके में तैनात किया गया है। इनके लिए मैदानी इलाकों से आपूर्ति करने वाले सैकड़ों निजी ट्रकों से सर्दियों के लिए स्टॉकिंग पहले से ही चल रही है। खाद्य भंडार या विशेष उच्च ऊंचाई वाले राशन की कोई कमी नहीं है। यहां तक ​​कि ठंड के मौसम के कपड़ों को आवश्यकतानुसार ले जाया जा सकता है। जमीन पर तैनात सैनिकों के लिए कोई भी आवश्यक सामग्री चंद घंटों में पहुंचाई जा सकती है लेकिन उच्च ऊंचाई पर तैनात सैनिकों के लिए विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं। 
कई डिवीजन के सैनिकों को 14 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर तैनात किया गया है, जहां अक्टूबर-अंत में रात का तापमान शून्य से 15 डिग्री सेल्सियस तक नीचे जा सकता है। जिन रेजिमेंट की ऊपर पहाड़ियों पर तैनाती की गई हैं वे कुछ हफ्तों के लिए राशन आदि के अपने स्टॉक पर टिक सकती हैं। उनके पास पूर्व-निर्मित संरचनाओं और कई स्थानों पर अन्य आवासों के अलावा टेंट भी हैं। अधिक ऊंचाई पर तैनात सैनिकों के लिए बर्फ या आर्कटिक टेंट की भी व्यवस्था की जा रही है। 

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