सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम मामले पर सुनवाई 5 अक्टूबर तक के लिए टली

सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम मामले पर सुनवाई 5 अक्टूबर तक के लिए टली

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सिविल सर्विसेज में मुस्लिम समुदाय के कथित घुसपैठ को लेकर प्रसारित होने वाले सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम के मामले पर सुनवाई 5 अक्टूबर तक के लिए टाल दी है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि चूंकि मामला हमारे पास लंबित है, इसलिए सरकार चैनल को जारी […]
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सिविल सर्विसेज में मुस्लिम समुदाय के कथित घुसपैठ को लेकर प्रसारित होने वाले सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम के मामले पर सुनवाई 5 अक्टूबर तक के लिए टाल दी है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि चूंकि मामला हमारे पास लंबित है, इसलिए सरकार चैनल को जारी कारण बताओ नोटिस पर फैसले लेने से पहले हमें जानकारी दे।
कोर्ट ने कहा कि सरकार अगली तारीख पर हमें रिपोर्ट दे। कारण बताओ नोटिस पर सरकार का कोई भी फैसला हमारी सुनवाई के आधार पर तय होगा। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या वह अपनी कार्रवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं को भी सुनेगी। तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह वैधानिक कार्रवाई है, इसमें चैनल को सरकार को जवाब देना है। इसमें किसी और को नहीं सुना जा सकता है। तब याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि अगर सरकार का फैसला हमारे पक्ष में नहीं होता तो हम उसे चुनौती देंगे।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि सरकार ने सुदर्शन टीवी के सिविल सर्विसेज में मुस्लिम समुदाय की भागीदारी को लेकर किये विवादित प्रोग्राम को प्रोग्राम कोड का उल्लंघन माना है। इसके लिए चैनल को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा गया है कि उनके खिलाफ एक्शन क्यों न लिया जाए?
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुदर्शन टीवी को 28 सितम्बर तक कारण बताओ नोटिस का जवाब दाखिल करने का वक्त दिया गया है, तब तक सुनवाई को टाला जा सकता है। तब कोर्ट ने कहा कि अगर हमने दखल देकर प्रोग्राम के प्रसारण पर रोक नहीं लगाई होती तो अब तक तो सारे दस एपिसोड प्रसारित हो चुके होते। केंद्र सरकार ने बताया कि सरकार ने सुदर्शन टीवी के सिविल सर्विसेज में मुस्लिम समुदाय की भागीदारी को लेकर किये गए विवादित प्रोग्राम को प्रोग्राम कोड का उल्लंघन माना है। इसके लिए चैनल को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा गया है कि उनके खिलाफ एक्शन क्यों न लिया जाए।
कोर्ट ने पिछले 21 सितम्बर को सभी एपिसोड देखने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अगर सात सौ पन्नों की किताब के खिलाफ याचिका हो तो वकील यह दलील नहीं दे सकते कि जज पूरा पढ़ें। सुनवाई के दौरान न्यूज़ ब्राडकास्ट फेडरेशन की ओर से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि हम सबसे बड़ी संस्था हैं। न्यूज ब्राडकास्ट एसोसिएशन सबका प्रतिनिधित्व नहीं करती है। हमने एक रेगुलेशन व्यवस्था बनाई है। पूर्व चीफ जस्टिस जेएस खेहर उसकी अध्यक्षता करेंगे। इसलिए हमें भी सुना जाए। ऑपइंडिया, इंडिक कलेक्टिव, अपवार्ड फाउंडेशन नाम की संस्थाओं की तरफ से वकील जे साईं दीपक ने कोर्ट की तरफ से हेट स्पीच की परिभाषा तय करने और नियम बनाने का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि ऐसा करना कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। जन्मभूमि डेली की ओर से वकील महेश जेठमलानी ने भी हस्तक्षेप याचिका दाखिल की थी। तब कोर्ट ने कहा था कि सभी हस्तक्षेप याचिकाकर्ताओं को बाद में सुना जाएगा।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सुदर्शन को अपने हलफनामे में एनडीटीवी के कार्यक्रम का हवाला देने के लिए आड़े हाथों लिया था। कोर्ट ने कहा था कि आपसे पूछा गया था कि आप अपने कार्यक्रम में किस तरह का बदलाव करेंगे। जवाब में यह लिखना ज़रूरी नहीं था। कोर्ट ने पूछा था कि क्या आपने पहले चार एपिसोड में प्रोग्राम कोड का पालन किया। क्या आगे भी कार्यक्रम की प्रस्तुति इसी तरह की रहेगी। तब वकील विष्णु जैन ने कहा था कि हमने नियमों का पालन किया। कोर्ट हमारे प्रसारित सभी एपिसोड को पूरा देखे। तब कोर्ट ने कहा था कि यानी आपका कार्यक्रम आगे भी ऐसा ही रहेगा। तब जैन ने कहा कि हम आगे भी नौकरशाही में कब्जे की विदेशी साज़िश का पर्दाफाश करेंगे। तब कोर्ट ने कहा था कि हमें जवाब मिल गया। अब दूसरे वकीलों को सुनने दीजिए।

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