
बेगूसराय में चला मोदी मैजिक और कन्हैया का जादू , फेल हुए नीतीश कुमार
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बेगूसराय। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि और आजादी के पहले से ही राष्ट्रवादियों की जननी रही बेगूसराय ने विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सम्मान रखा बल्कि साम्यवाद को भी संजीवनी दे दी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तो पूरी तरह से नकार दिया। जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और कम्युनिस्ट नेता डॉ. […]
बेगूसराय। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि और आजादी के पहले से ही राष्ट्रवादियों की जननी रही बेगूसराय ने विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सम्मान रखा बल्कि साम्यवाद को भी संजीवनी दे दी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तो पूरी तरह से नकार दिया। जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और कम्युनिस्ट नेता डॉ. कन्हैया कुमार अपने गृह जिला में जादू चलाने में कामयाब रहे। जबकि लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान की लाज भी बेगूसराय ने ही बचाई। जिले के सभी सात सीटों का चुनाव परिणाम देर रात घोषित हो चुका है जिसमें भाजपा को दो सीट बेगूसराय एवं बछवाड़ा, राजद को दो सीट साहेबपुर कमाल एवं चेरियाबरियारपुर, कम्युनिस्ट पार्टी को दो सीट तेघड़ा एवं बखरी तथा लोजपा को एक सीट मटिहानी मिली है।
भाजपा को जो दो सीट मिली है, वहां चुनाव की घोषणा के पूर्व से लेकर परिणाम घोषित होने तक भाजपा उम्मीदवार की जीत से कहीं अधिक हार जाने की चर्चा गर्म थी। इस चर्चा के पीछे का कारण था भाजपा कार्यकर्ताओं का बागी होना और उम्मीदवार के विरुद्ध बयानवाजी करना। लेकिन जनता ने इन दोनों तथ्यों को खारिज कर दिया। टिकट वितरण से वंचित भाजपा नेता हार की पृष्ठभूमि तैयार जरूर कर गए थे। कई विद्रोही और खुन्नस निकालने वाले नेता उम्मीदवार बनकर भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे थे। लेकिन आमने-सामने की टक्कर में भाजपा के आम मतदाताओं ने भीतरघात को नजरंदाज कर कमल को चुना। यही हाल बछवाड़ा का था, वहां सुरेन्द्र मेहता की उम्मीदवारी के विरुद्ध एनडीए के कुछ कार्यकर्ताओं ने मीटिंग तक कर लिया था।
क्षेत्रवाद और जातिवाद की हवा बनाकर सुरेन्द्र मेहता को हराने के लिए सभी ने मिलकर खूब जोड़-तोड़ किया, लेकिन जनता नरेन्द्र मोदी के काम को देखकर कमल पर ही लट्टू हुई। मटिहानी में अजेय माने जाने वाले जदयू के नरेन्द्र कुमार सिंह उर्फ बोगो सिंह की हार चौंकाने वाली है। यहां लोजपा के राजकुमार सिंह, बोगो सिंह विरोधी मत के ध्रुवीकरण के कारण हारते-हारते जीत गए और बोगो सिंह जीतते-जीतते हार गए। एनडीए मतदाताओं का बिखराव भी इसका कारण बना। मटिहानी से लोजपा के राजकुमार सिंह की जीत वास्तव में केवल लोजपा की जीत नहीं है, बल्कि बोगो सिंह के विरोधियों की एकता की जीत है। क्योंकि राजकुमार सिंह के समर्थन में सीपीआई, कांग्रेस, भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं का महत्वपूर्ण योगदान है।
महागठबंधन को यहां पहले से ही चुनावी लड़ाई से दूर माना जा रहा था लेकिन महागठबंधन के माकपा उम्मीदवार राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने मतगणना में सबकी नींद हराम कर दी। तेघड़ा, चेरियाबरियारपुर और साहेबपुर कमाल में जदयू की हार का कारण लोजपा को माना जा सकता है। बखरी में भाजपा और सीपीआई के आमने-सामने की लड़ाई में भाजपा के हार का कारण भी पूर्व विधायक का टिकट काटकर नए को देने और पूर्व विधायक का दूसरे दल से उम्मीदवार बन जाना रहा। राजद की बात करें तो साहेबपुर कमाल विधानसभा से सतानंद सम्बुद्ध उर्फ ललन यादव की जीत कोई अप्रत्याशित नहीं है। सारा समीकरण ललन यादव के पक्ष में था जबकि जदयू के अमर कुमार के खेल को बिगाड़ने का कार्य लोजपा के सुरेन्द्र विवेक ने किया। अमर कुमार और सुरेन्द्र विवेक के बीच का रिश्ता हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे वाला रहा और इस रिश्ते को निभाने में सुरेन्द्र विवेक सफल रहे।
चेरियाबरियारपुर विधानसभा से राजवंशी महतों की जीत का कारण मंजू वर्मा की छवि पर मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले का काला धब्बा लगना और लोजपा के रेखा देवी की उम्मीदवारी। सीपीआई के लिए यह चुनाव जिले में नवजीवन के समान है । बछवाड़ा से अवधेश राय की हार झटका देने वाली है तो वहीं तेघड़ा से रामरतन सिंह को अपार बहुमत से मिली जीत सीपीआई के अस्तित्व और बीहट को पुनः लेलिनग्राद के रूप में अस्तित्ववान बनाने के लिए एक टॉनिक का कार्य करेगी। बहरहाल सीपीआई इस नवजीवन को कितना संरक्षित रख सकती है यह तो वक्त ही तय करेगा।
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