
नई दिल्ली। हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती दखलंदाजी को रोकने और उस पर लगाता नजर रखने के लिए भारत अब मित्र देशों के सहयोग से अपना सुरक्षा तंत्र मजबूत कर रहा है।इसी मकसद से भारत ने श्रीलंका, मॉरीशस और सेशेल्स में समुद्री निगरानी रडार स्थापित किए हैं और जल्द ही मालदीव, म्यांमार और बांग्लादेश में रडार लगाये जाने की तैयारी है। हिन्द […]
नई दिल्ली। हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती दखलंदाजी को रोकने और उस पर लगाता नजर रखने के लिए भारत अब मित्र देशों के सहयोग से अपना सुरक्षा तंत्र मजबूत कर रहा है।इसी मकसद से भारत ने श्रीलंका, मॉरीशस और सेशेल्स में समुद्री निगरानी रडार स्थापित किए हैं और जल्द ही मालदीव, म्यांमार और बांग्लादेश में रडार लगाये जाने की तैयारी है। हिन्द महासागर क्षेत्र में नजर रखने के मकसद से भारत ने 22 देशों की बहुराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग समझौता कर रखा है। भारतीय नौसेना भी 36 देशों के साथ व्हाइट शिपिंग एग्रीमेंट कर रही है ताकि समुद्री संचालन में एक-दूसरे को सहयोग किया जा सके।
लद्दाख सीमा पर चीन को घेरने के बाद नौसेना अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में अपनी सैन्य ताकत को और मजबूत बना रही है। भारत की योजना चीन को हिन्द महासागर में घेरने की है ताकि ड्रैगन पर और अधिक दबाव बनाया जा सके। हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन के मछली पकड़ने वाले जहाजों की मौजूदगी बढ़ी है। हर साल औसतन 300 चीन के मछली पकड़ने वाले जहाजों की मौजूदगी होती थी लेकिन पिछले साल यह संख्या 450 तक हो गई है। दुनिया के समुद्री व्यापार का 75 फीसदी और वैश्विक उपभोग का 50 फीसदी हिस्सा हिन्द महासागर क्षेत्र में गुजरता है। इसके अलावा महासागर क्षेत्र में हर समय करीब 12 हजार व्यावसायिक जहाज और 300 मछली पकड़ने के जहाज मौजूद रहे हैं जिनकी हमेशा निगरानी की जरूरत होती है।
दरअसल चीन 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ-साथ हिन्द महासागर क्षेत्र पर भी अपनी बुरी नजर रखता है। हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय रही है। चीनी नौसेना के पोत और पनडुब्बियां एंटी पाइरेसी ऑपरेशंस के बहाने लगातार क्षेत्र में मौजूद रहती हैं। हिन्द महासागर क्षेत्र में चीनी रिसर्च यानों की तैनाती में लगातार वृद्धि हुई है और भारत ने कई बार चीन के रिसर्च पोत पकड़े हैं। पिछले साल सितम्बर में भारतीय क्षेत्र के करीब पहुंचे एक चीनी पोत को भारतीय नौसेना ने पकड़ा था। उसके जासूसी मिशन पर होने का संदेह जताते हुए वापस खदेड़ दिया गया था।
हिन्द महासागर क्षेत्र में नजर रखने के मकसद से भारत ने ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, इटली, जापान, मालदीव, संयुक्त राज्य अमेरिका, न्यूजीलैंड, मॉरीशस, म्यांमार और बांग्लादेश सहित 22 देशों की बहुराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग समझौता कर रखा है जिससे इन सभी देशों के बीच किसी भी तरह की सूचना तत्काल साझा की जाती है। इसके अलावा सदस्य देशों को समुद्री सूचनाएं मुहैया कराने के लिए दिसम्बर, 2018 में इंटरनेशनल फ्यूजन सेंटर की स्थापना की गई थी। भारतीय नौसेना 36 देशों के साथ व्हाइट शिपिंग एग्रीमेंट करने के लिए आगे बढ़ रही है जिनमें से 22 पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं और बाकी देशों के साथ बातचीत चल रही है। हाल ही में भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में चार देशों के मालाबार अभ्यास का आयोजन किया जिसमें भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान शामिल थे।
हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन की दखलंदाजी को देखते हुए भारत अपने पड़ोसी मित्र देशों के साथ सहयोग बढ़ा रहा है। इसीलिए भारत सुरक्षा तंत्र मजबूत करने के इरादे से पड़ोसी मित्र देशों में तटीय निगरानी रडार सिस्टम स्थापित कर रहा है। अब तक श्रीलंका, मॉरीशस और सेशेल्स में रडार लगाए जा चुके हैं और बहुत जल्द ही मालदीव, म्यांमार और बांग्लादेश में भी स्थापित किए जाएंगे। इन तीनों देशों में निगरानी रडार सिस्टम लगाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और कम से कम 12 अन्य मित्र देशों में रडार लगाने की जरूरत महसूस की जा रही है। इन सर्विलांस रडार सिस्टम से चीन पर पैनी नजर रखी जा सकेगी। यह छोटी नौकाओं, मछली पकड़ने वाली नावों, जहाजों का पता लगाने में सक्षम हैं और समुद्र में किसी भी अवैध गतिविधियों की निगरानी कर सकता है।
भारत ने मित्र देशों को सहयोग के नाते म्यांमार को हाल ही में आईएनएस सिंधुवीर पनडुब्बी सौंपी है, जो म्यांमार के नौसैनिक बेड़े में पहली पनडुब्बी है। भारत ने पहले भी म्यांमार को कई प्रकार के सैन्य हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की आपूर्ति की है।पड़ोसी मित्र देशों के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग के हिस्से के रूप में भारत इससे पहले 2016 में बांग्लादेश को मिंग श्रेणी की दो डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की आपूर्ति कर चुका है। इसके बाद 2023 में युआन-श्रेणी की एक पनडुब्बी थाईलैंड को दिए जाने की योजना है। भारत ने म्यांमार में कालादान ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के तहत सिटवे बंदरगाह का निर्माण भी किया है। नार्थ-ईस्ट का नया प्रवेश द्वार यह ट्रांजिट प्रोजेक्ट कोलकाता को म्यांमार के सितवे बंदरगाह से जोड़ेगा। इससे कोलकाता से मिजोरम की दूरी करीब एक हजार किलोमीटर कम होकर जाएगी और यात्रा के समय में चार दिनों की कमी आएगी।
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