
मोतिहारी में पदस्थापित एक एसपी जिसने लालू प्रसाद यादव को दिया तल्ख़ जवाब
हस्तियों के साथ गप-शप
सागर सूरज
मोतिहारी: उन दिनों सुधीर कुमार सिंह मोतिहारी के एसपी हुआ करते थे और मै हिंदुस्तान टाइम्स, अंग्रेजी दैनिक के लिय कार्य कर रहा था। सुधीर कुमार सिंह की इमानदार छवि के कारण मै उनके व्यक्तित्व से खासे आकर्षित था और बैचारिक समानता के कारण उनके साथ काफी समय भी व्यतीत करता था। मोतिहारी शहर जहाँ भू-माफियाओं एवं सांप्रदायिक शक्तियों के गिरफ्त में था, वही राज्य की बागडोर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के हांथ में थी। गंभीर अपराधिक और सांप्रदायिक मामलों को संभालने के श्री सिंह की अद्भुत छमता का मै गवाह था, इसी क्रम में अपराधियों को छुड़वाने हेतु सता के गलियारे से आने वाले दबाब एवं श्री सिंह का वेवाक तरीके से इनकार मेरे श्री सिंह के प्रति आकर्षण का अतिरिक्त कारणों में से एक था। मोतिहारी पुलिस अधीक्षक निवास पर देर रात्रि तक उनकी बेहतरीन साहित्यिक रचनाओं के लुफ्त के साथ-साथ विभिन्य थाना क्षेत्रों के फोन को अटेंड करना फिर लगे हांथ उसका निष्पादन भी देखने को मिलता रहा। धोती को लुंगी बना कर पहने उस सख्स के कद काठी की चर्चा करें तो साधारण ही था लेकिन गजब की आत्म विस्वास और ‘एंटी क्रिमिनल छवि’ के कारण अपराधियों में खौफ उनकी पहचान थी। श्री कृष्ण नगर में हुए मंटू शर्मा हत्या कांड में अपराधी और पीड़ित दोनों ही भूमिहार जाती से आते थे और श्री सिंह भी भूमिहार ही थे, जाति-पाती वाले बिहार में इस मामलें में न्याय देना चुनौतीपूर्ण था, घटना में जिले भर के ज्यादातर भू-माफिया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से घटना में शामिल थे, लेकिन श्री सिंह ने सारे भू-माफिओं को मामले में समेटने का कार्य किया और उसके बाद जमीन के कारोबार से अपराधियों की संलिफ्ता तत्काल ख़त्म हो गयी थी।
पेश है आईपीएस सुधीर कुमार सिंह के शब्दों में मोतिहारी और छपरा के कुछ अंश:
2014 का संसदीय चुनाव खत्म होते ही बिहार का राजनीतिक समीकरण बदल गया। गणना के ही दिन डीएम श्री कुंदन कुमार ने हँसते हुए कहा कि नीतीश जी और लालू जी मिल रहे हैं। तात्पर्य यह कि इस नए समीकरण में हम दोनों के लिए कोई जगह नहीं है। मैंने मन ही मन सोचा कि मेरे लिये कोई अनुकूल समीकरण आया ही कब। नौकरी की दुनिया में आने के साथ ही और शायद उससे भी पहले से जातीय समीकरणों की दुर्गंध नासा -रंध्र को सराबोर करती रही है। पटना विश्विद्यालय की छात्र राजनीति ने तो 1973 में ही दरसा दिया था कि आगामी बिहार भूमिहारों के लिए कैसा होगा। इस तरह बनते -बिगड़ते समीकरण के प्रति मैं अन्यमनस्क सा था। खैर, लालू जी और नीतीश कुमार की जोड़ी फिर से आबाद हो गयी थी और छपरा सदर की विधानसभा की खाली सीट के लिए गोटी बिछनी शुरू हो गयी थी। श्री सिग्रीवाल के सांसद बनने के साथ ही यह सीट खाली हो गयी थी। राजद ने प्रभुनाथ बाबू के लड़के को लड़ाने का निर्णय लिया था और इस निर्णय के साथ ही मेरी विदाई तय हो गयी थी। मेरा स्थानान्तरण मोतिहारी हो गया।
आईपीएस सुधीर कुमार सिंह से बातचित पर आधारित, शेष अगले अंक में
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