
केंद्रीय विश्वविद्यालय(MGCUB) के लिए अब तक भूमि उपलब्ध नहीं
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मोतिहारी। पूर्वी चम्पारण महात्मा गांधी की कर्म भूमि के रूप में पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध हैं। सत्याग्रह की शुरुआत, उन्होंने यहीं से की थीं और चम्पारण ने हीं उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि प्रदान की। चम्पारण में अंग्रेजों द्वारा ज़बरन नील की खेती कराई जाती थीं जिससे उर्वर भूमि भी बंजर हो जाती थीं। किसान […]

चम्पारण में अंग्रेजों द्वारा ज़बरन नील की खेती कराई जाती थीं जिससे उर्वर भूमि भी बंजर हो जाती थीं। किसान इससे काफी त्रस्त थें। पंडित राज कुमार शुक्ल के काफी प्रयास के बाद गांधी जी चम्पारण आए और यहीं से भारत के पहले सत्याग्रह की शुरुआत की। इसी कारण यहाँ के सेंट्रल यूनिवर्सिटी का नाम महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी पड़ा। इसके लिए चम्पारण के नागरिकों ने दिल्ली तक संघर्ष किया तब जाकर उन्हें केंद्रीय विश्वविद्यालय मिला। वर्ष 2016 में इसकी स्थापना की गयीं जिसके बाद से चम्पारण वासियों में यह उम्मीद जगीं की उन्हें अब उच्च शिक्षा के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा। अपने स्थापना काल से हीं सेंट्रल यूनिवर्सिटी काफी चर्चा में रहा।
गया स्थित दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में जहाँ काफी तेजी से निर्माण कार्य चल रहा हैं, वहीं दूसरी ओर मोतिहारी स्थित महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। इसके लिए बिहार सरकार ने एक हजार एकड़ भूमि देने की बात कहीं थी जो आज तक पूरा नहीं हो पाया। सबसे दुर्भाग्य की बात यह हैं कि केंद्रीय विश्वविद्यालय को अब तक मात्र 32 एकड़ भूमि उपलब्ध हो पायीं हैं जिसमें 4 एकड़ में भी विवाद हैं। इस 4 एकड़ में कर्मचारी की मिलीभगत से फर्जी व्यक्ति को जमीन के मुआवजे की राशि दे दी गयीं थी जिसकी जांच अभी चल रहीं हैं। बिहार सरकार की लापरवाही के कारण अभी तक भूमि उपलब्ध नहीं हो पायीं हैं। बिहार सरकार के द्वारा 1 हजार एकड़ की जगह मात्र 303 एकड़ जमीन देने की बात कहीं गयीं जिसमें 135 एकड़ में विवाद हैं। उक्त जमीन गन्ना विभाग और चीनी मिल के चक्कर में फंसी हुई हैं जिसका मामला उच्च न्यायालय में लंबित हैं। बनकट कैम्पस 32 एकड़ में स्थित हैं जिसमें 4 एकड़ पर अभी भी विवाद हैं। बनकट कैम्पस के निदेशक प्रो0 राजीव कुमार ने बताया कि केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए 2 ब्लॉक में जमीन उपलब्ध कराई जा रहीं हैं जिससे शैक्षणिक कार्य में काफी परेशानी होगी। खबर लिखे जाने तक 103 एकड़ जमीन की मापी की जा रहीं हैं । अभी बनकट स्थित गांधी भवन के पास बाउंड्री कराई जा रहीं हैं। बाउंड्री के बीच में गायत्री देवी का मकान पड़ता हैं जिसका अभी तक पूरा मुआवजा नहीं मिला हैं, ऐसा गायत्री देवी का आरोप हैं। उनकी कुल जमीन 15 डिसमिल थीं जिसमें अभी तक केवल 12 डिसमिल जमीन का ही मुआवजा मिला हैं। मुआवजा नहीं मिलने के कारण गायत्री देवी ने लोक अदालत में भी केस किया हैं। उनके पुत्र राकेश कुमार सिंह ने आरोप लगाया हैं कि कर्मचारी को घूस की रकम नहीं देने के कारण हीं उनके मुवावजे की पूरी राशि नहीं दी गयीं। इस संबंध में वह मुजफ्फरपुर स्थित लारा कोर्ट में भी आवेदन देने की तैयारी में हैं। उनका कहना हैं कि जब तक उन्हें मुवावजे की पूरी राशि नहीं मिल जाती तब तक वो जगह खाली नहीं करेंगे।
बहरहाल इस भू-अर्जन में व्यापक रूप से गड़बड़ी का आरोप स्थानीय लोग लगाते हैं। उनका कहना हैं कि जिनलोगों ने भी रिश्वत नहीं दिया उन सभी लोगों का पूरा मुआवजा उन्हें नहीं मिल पाया। इस मामले की अगर सीबीआई जांच कराई जाए तो कई लोगों के चेहरे बेनकाब होंगे।
स्थिति जो भी हों इस सबके बीच सबसे अधिक नुकसान तो चम्पारण की जनता को हो रहा हैं। सरकार की प्राथमिकता में केंद्रीय विश्वविद्यालय नहीं हैं तभी तो चार साल बीतने के बाद अभी तक जमीन उपलब्ध नहीं हो पाया हैं। इतना हीं नहीं जो जमीन केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए अधिग्रहित की जा चुकी हैं उसमें से मिट्टी की कटाई बेरोकटोक की जा रहीं हैं। कई एकड़ में तो 15 फ़ीट तक मिट्टी की कटाई की जा चुकी हैं। मिट्टी कटाई के कारण बिजली के पोल कभी भी गिर सकते हैं और लोगों की जानमाल को भी नुकसान हो सकता हैं। खनन विभाग की लापरवाही के कारण अवैध मिट्टी की कटाई की जा रहीं हैं।
अब देखना यह हैं कि कब तक केंद्रीय विश्वविद्यालय को पूरा जमीन उपलब्ध हो पाता हैं और कब तक कॉलेज का निर्माण हो पा रहा हैं। वर्तमान में चार जगहों पर केंद्रीय विश्वविद्यालय संचालित हो रहें हैं जिसमें जिला स्कूल, रघुनाथपुर, चांदमारी और बनकट हैं।
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