नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने फर्जीवाड़े के मामले में जेल में बंद एक आरोपित को रिहा करने का आदेश दिया है। उसे ट्रायल कोर्ट से 12 मई को जमानत मिल चुकी थी लेकिन जेल प्रशासन इसलिए रिहा नहीं कर रहा था कि आरोपित को लखनऊ की कोर्ट में 18 मई को पेश करवाना था। जस्टिस मनमोहन और जस्टिस संजीव नरुला की बेंच ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई के बाद ये आदेश दिया। दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने आरोपित अनिल मित्तल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 406, 409, 420 और 120बी के तहत 2017 में एफआईआर दर्ज की थी। इस मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने आरोपित को पिछले 12 मई को जमानत दे दी थी। आरोपित की बहन ने 15 मई को जमानती मुचलका भी दाखिल कर दिया था। आरोपित की ओर से वकील आदित्य जैन ने कोर्ट को बताया कि इसी मामले के एक दूसरे आरोपित को 16 मई को रिहा कर दिया गया।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि 12 मई को जब कड़कड़डूमा कोर्ट ने जमानत दी थी, उस समय आरोपित के खिलाफ लखनऊ की कोर्ट की ओर से कोई ताजा प्रोडक्शन वारंड जारी नहीं किया गया था। आरोपित के खिलाफ लखनऊ की कोर्ट ने अंतिम प्रोडक्शन वारंट 6 मार्च को जारी किया था। उस प्रोडक्शन वारंट के मुताबिक आरोपित को 16 मार्च को लखनऊ की कोर्ट में पेश करना था। कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अगर किसी कैदी के खिलाफ कोई कोर्ट प्रोडक्शन वारंट जारी करता है तो जेल अधीक्षक का दायित्व है कि वो उसे संबंधित कोर्ट में पेश करे। प्रोडक्शन वारंट किसी व्यक्ति को हिरासत में रखने की अनुमति नहीं देता है। अगर प्रोडक्शन वारंट का मकसद पूरा हो जाता है तो किसी कैदी कानून के मुताबिक ही जेल में रखा जा सकता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपित के खिलाफ कोई ताजा प्रोडक्शन वारंट नहीं है और उसे ट्रायल कोर्ट ने जमानत दे दिया है, ऐसे में उसे हिरासत में नहीं रखा जा सकता है। सुनवाई के दौरान आरोपित ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि वो लखनऊ की कोर्ट में होनेवाली अगली सुनवाई यानि 12 जून को पेश होगा। आरोपित के इस बयान को कोर्ट ने रिकॉर्ड पर दर्ज करते हुए उसे रिहा करने का आदेश दिया।
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