देहरादून। आपातकाल के दौरान दून के एक छोटे से अखबार 1970 की बड़ी ललकार सरकार को पूरे समय सुनाई देती रही। अखबार के संपादक जाने-माने इतिहासकार डाॅ आरके वर्मा ने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ खूब कलम चलाई। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नित्यानंद स्वामी और अपने अन्य सहयोगियों के साथ वर्मा ने देहरादून में आपातकाल विरोधी […]
देहरादून। आपातकाल के दौरान दून के एक छोटे से अखबार 1970 की बड़ी ललकार सरकार को पूरे समय सुनाई देती रही। अखबार के संपादक जाने-माने इतिहासकार डाॅ आरके वर्मा ने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ खूब कलम चलाई। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नित्यानंद स्वामी और अपने अन्य सहयोगियों के साथ वर्मा ने देहरादून में आपातकाल विरोधी आंदोलन को धार दी। सरकार का सिरदर्द बन गए वर्मा और उनके साथियों को मीसा कानून के तहत बंदी बनाया गया। इस दौरान उनके परिवार पर पुलिस ने खूब जुल्म ढाए।
आपातकाल के विरोध में पूरे देश के साथ देहरादून ने कदमताल किया था। आक्रोश में यहां भी कोई कमी नहीं थी। एक टोली ऐसी थी, जो गुपचुप ढंग से रोजाना आंदोलन की रणनीति तैयार करती। हर प्रभावी माध्यम का इस्तेमाल करती। डाॅ आरके वर्मा नेतृत्व करने वालों में शामिल रहे। डाॅ वर्मा बताते हैं कि 25/26 जून को आपातकाल लागू हुआ तो उन्होंने अपने अखबार 1970 के 30 जून के अंक में पहले पेज को सरकार विरोधी रंग में रंग डाला। शीर्षक दिया- क्या रजिया सुल्ताना का इतिहास दोहराया जाएगा। इस लेख में तमाम सारी बातों का उल्लेख करते हुए आपातकाल का विरोध और भविष्य में होने वाले इसके अंजाम के लिए चेताया गया था। डा वर्मा के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नित्यानंद स्वामी, किशन सिंघल, कैलाश अग्रवाल, टेकचंद्र, प्रताप सिंह परवाना जैसे अपने कई साथियों के साथ हम रोजाना नई रणनीति बनाते और पुलिस-प्रशासन को छकाते हुए आंदोलन को तेज करते। कई दिन आढ़त बाजार के गुरुद्वारे में काटे। रात को जमीन पर सोना पड़ा मगर आंदोलन से पीछे नहीं हटे। एलआईयू और पुलिस लगातार पीछे पड़ी रही। फिर, पांच जुलाई 1975 को उन्हें और अन्य साथियों को मीसा कानून के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। हरिद्वार रोड स्थित जेल में दो महीने 23 दिन तक सभी बंद रहे। बाद में सभी को रिहा कर दिया गया। इस दौरान, कई बार घर में पुलिस ने छापे मारे। परिवारजनों को प्रताड़ित किया। यहां तक की पुश्तैनी आभूषण भी पुलिस घर से ले गई।
समानांतर सरकार में स्वामी राष्ट्रपति, वर्मा प्रधानमंत्री
मीसा कानून के तहत बंद आंदोलनकारियों ने उस वक्त जेल में समानांतर सरकार बना ली थी। इंदिरा सरकार को खारिज कर दिया गया था। बकायदा मंत्रिमंडल का गठन कर उसमें विभिन्न पदों का आवंटन किया गया था। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नित्यानंद स्वामी को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया था। डाॅ आरके वर्मा को प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी दी गई थी। अन्य आंदोलनकारियोें में से किसी को गृह, किसी खाद्य आपूर्ति, किसी को विदेश, तो किसी शिक्षा-समाज कल्याण मंत्री बनाया गया था।
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