एमके. पाण्डेय
सुगौली, पूर्वी चम्पारण। बचपन में जहां बच्चे खेलते- कूदते, पढ़ते लिखते हैं। जिन पर परिवार समाज और राष्ट्र का भविष्य निर्भर करता है। अगर वही बचपन नशे के आगोश में समाता जाये तो फिर एक समृद्ध परिवार, समाज व राष्ट्र कि परिकल्पना बेमानी हो जाती है। स्थानीय रेलवे स्टेशन परिसर, रेलवे प्लेटफॉर्म, स्टेशन रोड, बस स्टैंड चौक सहित नगर पंचायत के कई स्थानों पर सूखा नशा जैसे पंचर चिपकाने वाला सुलेसन, व्हाईटनर, आयोडेक्स जैसे दर्द नासक मलहम को पॉलिथीन और प्लास्टिक के अन्य छोटे छोटे थैलों मे इन चीजों को डालकर सूंघते हुये बच्चों को देखा जा सकता है। हैरत की बात ये है कि नशे की गिरफ्त में आने वाले इन बच्चों की उम्र महज 8 से 14-15 वर्ष ही है। सूत्रों की मानें तो स्थानीय रेलवे स्टेशन के आसपास इस उम्र के बच्चों के साथ साथ लडकियों को भी सूखा नशा करते देखा गया है। जानकारी के मुताबिक ये बच्चे दूसरे अन्य शहरों से ट्रेन पकड़ कर आते है। यात्रा के दौरान ट्रेन के बोगियों में, प्लेटफार्म और आसपास कि जगहो पर लोगों से भीख मांगते है और दूकानों मे सरलता से उपलब्ध फेविक्वीक, सुलेसन खरीद कर नशा करते है।प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि एक बच्चा एक दिन मे अलग अलग समय पर लगभग आधा दर्जन सूलेशन जैसे ट्यूबों का इस्तेमाल नशा करने के लिए करता हैं। यदि हम इन किशोरों के ड्रग्स के इस्तेमाल और अपराधिक व्यवहार की प्रकृति के बीच के संबंधों की बात करें तो एक रिसर्च के मुताबिक, 16.2 फीसदी किशोर अधिक मात्रा में नशीले पदार्थ के रूप में टाइपराइटर थिनर, वाइट्नर जैसे पदार्थों का इस्तेमाल करते है। ये किशोर ज्यादातर गरीब परिवार के होते हैं, जिनके अभिभावक या तो बहुत गरीब होते है या फिर वे खुद नशे के शिकंजे मे फंसे होते है।वही स्थानीय चिकित्सकों का कहना है कि सूखा नशा पहले किशोरों के मस्तिष्क को बेहद कमजोर कर देता है। जो उनके सोचने समझने की शक्ति को कुंद कर देता है। और नशे के लिए किशोर अपराध की स्याह अंधेरे मे खोते चले जाते हैं।हैरानी की बात है कि ये सब पुलिस के नाक के नीचे हो रहा है।
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