भारत में रहना है तो वंदेमातरम कहना होगा: राकेश सिन्हा

भारत में रहना है तो वंदेमातरम कहना होगा: राकेश सिन्हा

समानता देनी होगी भगवा को : राकेश सिन्हा

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राज्यसभा सदस्य प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा है कि कांग्रेस के बहुत सारे नेताओं की राजनीतिक रोटी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी पर अनर्गल बातें करके ही चलती है। वही काम पाकिस्तान प्रेमी दिग्विजय सिंह भी कर रहे हैं

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राज्यसभा सदस्य प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा है कि कांग्रेस के बहुत सारे नेताओं की राजनीतिक रोटी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी पर अनर्गल बातें करके ही चलती है। वही काम पाकिस्तान प्रेमी दिग्विजय सिंह भी कर रहे हैं।

अपने गृह जिला बेगूसराय के प्रवास पर आए प्रो. राकेश सिन्हा ने मंगलवार को कहा कि दिग्विजय सिंह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर उंगली उठाकर लोगों को दिग्भ्रमित कर रहे हैं। उन्हें याद होना चाहिए कि गुजरात में हुए दंगे में नरेन्द्र मोदी ने कड़ा एक्शन लिया और पुलिस को गोली चलानी पड़ी। उस गोली में यह नहीं देखा गया कि किस पर चल रही है, सिर्फ हिंसा करने वालों को लक्ष्य किया गया था।

दिग्विजय सिंह चाहते हैं कि किसी खास धर्म के हिंसात्मक और आतंकवादी व्यवहार को सिर्फ माफ ही नहीं किया जाए, बल्कि उसे मेहमान बनाकर रखा जाए। दिग्विजय सिंह तो कसाब के भी पक्ष में खड़े हो गए थे। तभी तो तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा था कसाब को मुक्त कराने के लिए दिग्विजय सिंह ने जो अभियान किया, वह मानवाधिकार का चरम है।

आतंकवादियों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने और पाकिस्तान के प्रति लगातार सहानुभूति दिखाने वाले दिग्विजय सिंह बताएं कि बाटला हाउस में जब आतंकवादी मारे गए तो सोनिया गांधी के आंखों में आंसू क्यों आए थे। इसी देश में जब पाकिस्तान का झंडा और पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगता है तो दिग्विजय सिंह उसमें क्या कहते हैं।

उन्होंने कहा कि हम भारत को एक समृद्ध, शक्तिशाली और सेक्यूलर डेमोक्रेसी बनाकर रखना चाहते हैं। जिसमें सभी धर्मों के साथ बराबर का व्यवहार हो। लेकिन सभी धर्म को भी संविधान के साथ बराबर का व्यवहार करना होगा। कोई धर्म यह नहीं कहे कि संविधान उसके लिए विशेषाधिकार दे। उसके लिए अलग कॉलेज और इंस्टिट्यूशन दे।

इस देश में रहना है तो वंदे मातरम और जन-गण-मन को स्वीकार करना पड़ेगा। देश में रहना है तो नायक महाराणा प्रताप से लेकर शिवाजी से होते हुए वीर कुंवर सिंह तक को स्वीकार करना पड़ेगा। सुभाष चंद्र बोस और भारत की शान तिरंगा को स्वीकार करना ही पड़ेगा। इस देश की संस्कृति में भगवा का काफी महत्व है। उस सांस्कृतिक ध्वज के प्रति समानता का भाव रखना पड़ेगा।

जो यह भाव नहीं रखते हैं, रामायण, महाभारत, पुराण और गीता से अपने को अलग रखते हैं। ऐसे लोग भारतीय संस्कृति और इतिहास, भारत के वर्तमान और भविष्य से ही नहीं, बल्कि स्वयं से अलग कटना चाहते हैं। भारत वह भूमि नहीं है, यह सिर्फ भोगने की भूमि नहीं है। भारत तो मां है, मां और पुत्र का जो संबंध रखते हैं, वही सच्चे अर्थ में भारतीय हैं। सिर्फ संविधान की प्रस्तावना बढ़ने से कोई भारतीय नहीं बन जाता है।

 

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